पहाड़ों की गूंज हिंदी पत्रिका ने देहरादून के अमन चैन को बढ़ावा दिया
देहरादून पहाड़ों की गूंज हिंदी पत्रिका ने देहरादून के शहर को राजधानी के रूप में विकसित होते शहर की आबोहवा एवं शांति, अमन चैन में बाहर से आने वाले लोगों खलल डालना सुरू करदिया आये दिन अपराध बढ़ने लग गए। मई2007 में रिलायंस कंपनी के 8 सब्जी मॉल खुल रहे थे हम शाष्त्री नगर हरिद्वार रोड़ पर रहते थे।हम सब्जियां तिवारी सब्जियों की ठेलि लगाने वाले से लेते थे शाष्त्री नगर गली न03में रिलाइंस के सब्जी मॉल का कार्य चल रहा था।जब सब्जी बेचने वाले तिवारी से मैंने 8 मॉल खुलने का जिक्र किया तो उन्होंने कहा कि साहब हमतो परिवार लेकर रह रहे हैं अबतो बालबच्चों को पालने के लिये ओर ध नदा करेंगे उसमें चोरी डकैती भी करने से नहीं डरेंगे।मेरा माथा उसकी बात सुनकर ठनका, सोचा कि इनकी मजबूरी को बढ़ावा दिया गया तो यहां का अमन चैन छिन जायेगा।इस बात को सोचना पड़ा।उस समय मंडी में जाकर सर्बे किया 2250 सब्जियों की ठेलि लगाने वाले देहरादून में थे बाकी गलियों में 3000 हजार के आसपास टोकरियों पर सब्जियां बेचने वाले अलग थे इनमें आधा आवादी चोरी डकैती तो जरूर करती। जो देहरादून की शांति भंग करने के लिये माफी थी। पहाड़ों की गूंज पत्रिका मे सब की पीड़ा ” बड़ी मछली तो छोटी को निगल ही जायेगी”को उठाया जिसके फलस्वरूप पत्रिका सड़क से संसद भवन तक अपनी बात पहुंचा ने में सफल हुई।ओर माल निर्माण कार्य आयुक्त गढ़वाल ने रोक दिया ।यह
पहाड़ों की गूंज परिवार की आपसी सद्भावना बढ़ाने में जिटिजगति मिशाल है।