,काठमांडू । नेपाल में सियासी संकट के बीच भारतीय न्यूज चैनलों का प्रसारण रोका दिया गया है। नेपाल के केबल टीवी प्रोवाइडर ने समाचार एजेंसी एएनआई से कहा कि देश में भारतीय समाचार चैनलों के सिग्नल को बंद कर दिया गया है। हालांकि, अभी तक नेपाल सरकार की तरफ से ऐसा कोई आदेश जारी नहीं हुआ है। वहीं, नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (एनसीपी) ने भारतीय मीडिया पर नेपाल सरकार और वहां के प्रधानमंत्री के खिलाफ आधारहीन दुष्प्रचार (प्रोपेगेंडा) करने का आरोप लगाया है। नेपाल की मीडिया ने यह जानकारी दी। देश के पूर्व उप प्रधानमंत्री और सत्तारूढ़ एनसीपी के प्रवक्ता नारायण काजी श्रेष्ठा ने कहा कि नेपाल सरकार और हमारे प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली के खिलाफ दुष्प्रचार करने की सभी सीमाओं को भारतीय मीडिया ने लांघ दिया है। यह बहुत हो गया। इस बकवास को यहीं खत्म करो।दूसरी ओर, नेपाल की सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी (एनसीपी) के भीतर पैदा हुए मतभेद समाप्त होते नहीं दिख रहे हैं। बृहस्पतिवार (9 जुलाई) को आई मीडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली और पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष पुष्प कमल दहल श्प्रचंडश् के बीच सप्ताह भर में आधा दर्जन से अधिक बैठकें होने के बाद भी कोई आम सहमति नहीं बन सकी है।
बुधवार (8 जुलाई) को एनसीपी की 45 सदस्यीय स्थायी समिति की एक महत्वपूर्ण बैठक शुक्रवार (10 जुलाई) तक के लिए टाल दी गई। यह लगातार चैथा मौका था जब पार्टी की बैठक टाल दी गई थी, ताकि पार्टी के दो अध्यक्षों को मतभेदों को दूर करने के लिए पर्याप्त समय मिल सके। उम्मीद की जा रही है कि 68 वर्षीय ओली के राजनीतिक भविष्य के बारे में शुक्रवार को स्थाई समिति की बैठक के दौरान फैसला किया जा सकता है।
इस बीच नेपाल में चीनी राजदूत होउ यान्की की सक्रियता बढ़ गई है, ताकि ओली की कुर्सी को बचाया जा सके। प्रचंड खेमे को वरिष्ठ नेताओं और पूर्व प्रधानमंत्रियों माधव कुमार नेपाल तथा झालानाथ खनल का समर्थन हासिल है। यह खेमा ओली के इस्तीफे की मांग कर रहा है और उसका कहना है कि ओली की हालिया भारत विरोधी टिप्पणी ष्न तो राजनीतिक रूप से सही थी और न ही राजनयिक रूप से उचित थी।
नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के दो धड़ों के बीच मतभेद उस समय बढ़ गया जब प्रधानमंत्री ने एकतरफा फैसला करते हुए संसद के बजट सत्र का समय से पहले ही सत्रावसान करने का फैसला किया। काठमांडो पोस्ट की खबर के अनुसार ओली और प्रचंड के बीच कई दौर की बातचीत होने के बाद भी कोई सहमति नहीं बन सकी। इस बीच विरोध प्रदर्शनों के लिए निर्देश नहीं देने के संबंध में प्रचंड के साथ समझौता होने के बावजूद बुधवार (8 जुलाई) को देश भर में ओली के समर्थन में छिटपुट प्रदर्शन हुए।