साइंटिफिक-एनालिसिस
संसद का मानसून सत्र यानि “लोकतंत्र” की अग्निपरीक्षा ?
मणीपुर में करीबन 2 माह से जारी हिंसा, महाराष्ट्र सरकार की उठापटक और राज्यपाल का खेला, अमेरिका से MQ-98 ड्रोन सौदा, UCC (यूनिफार्म सिविल कोड) का बखेरा, अन्तर्राष्ट्रीय मेडल प्राप्त महिला पहलवानों का धरना, आदिवासी व्यक्ति पर मूत्र विसर्जन की घटना और उसके छींटे राष्ट्रपति के दामन पर गिरने का विवाद, राष्ट्रपति पद और नाम से किसी और के भारत-सरकार को हथिया के देशवासियों पर गुलामियत थोपने का दुष्कर्म, मीडिया के संवैधानिक चेहरे के अभाव में राष्ट्रपति की लंगडी कुर्सी को ठीक करने की मांग,
आपको जानकारी देते हैं कि
मीडिया को संवैधानिक अधिकार देने के लिए संपादक 30 मई 2021 से धरना प्रदर्शन मोन व्रत लेते आरहे है।फ़ाइल फोटो
सरकार ने Korona काल में धरना-प्रदर्शन की इजाजत नहीं दी उसके बाद टिहरी जिले में अपने निवास स्थान ऐतिहासिक लिखवार गाँव प्रतापनगर गंगोत्री धाम से केदारनाथ के यात्रा मार्ग के 166km पर स्थित स्थान परधरना-प्रदर्शन मोन व्रत जीत मणि पैन्यूली संयोजक उत्तराखंड पत्रकार संघठन समन्वय समिति ने दिया। इस खबर का संज्ञान माननीय सुप्रीम कोर्ट ने लिया है। फ़ाइल फोटो
7 जून 2023 से देहरादून गांधी पार्क गेट पर धरना-प्रदर्शन मोन व्रत जीत मणि पैन्यूली संयोजक उत्तराखंड पत्रकार संघठन समन्वय समिति और श्रीमती सबनम चौहान (अनु) ने जारी किया है। फ़ाइल फोटो
कई राज्यों के विधानसभा व लोकसभा चुनाव को पास आते देख राजनैतिक दलों के दांव-पेच व कानूनी जोड़-तोड़. ….
….. नये संसद-भवन के उद्घाटन को राष्ट्रपति से न करवा के प्रधानमंत्री द्वारा म्यूजियम से लाये गये भूतकाल की धार्मिक सत्ता के प्रतिक राजदंड सेंगोल को विपक्ष के बायकाँट में दण्डवट प्रणाम कर लोकसभा अध्यक्ष की कुर्सी के पास रख स्पीकर पर कागज फेंकने वाले, स्पीकर व मंत्रियों हाथ से कागज छिनने-फाड़ने, कानूनी मसौदों पर काली स्याही फेंकने व उलेड़ने वालों, गैलेरी व लोकसभा स्पीकर की कुर्सी के पास जाकर शोर-शराबा करने वालों, सत्ता पक्ष के व्यक्तियों द्वारा अध्यक्ष पद के कान में जाकर दिशानिर्देश देने वालों, अध्यक्ष के माध्यम से सभी सदस्यों एवं लाईव टेलिकास्ट की अनुकम्पा से देशवासीयों को अप्रत्यक्ष रूप से गाली-गलौच निकालने वालों को नया चैंलेज व टारगेट जैंसे कई महत्तवपूर्ण मुद्दों पर जनता के लिए चन्द मिनटों में बिना तार्किक बहस कर टेबलों पर हथोडा नहीं हाथ पटक व उठा कर सहमति के मामूली काम से इतिहास गढने और कानूनी छत्र-छाया में रिकार्डिंग को काट-छाट कर एडिटिंग भी करने से पहले लोकतंत्र की अग्निपरीक्षा होने वाली हैं |
संसद का मानसून सत्र अवश्मभावी रूप से गौमूख व ट्रोल कर ताबूत का टैग चिपकाने की कोशिश वाले, संग्रहालय की जगह नंदी का रूप लिये सेंगोल के नये आशियाने व परिवर्तित कर क्रूर एवं हिंसक चेहरे वाले चार शेरों की जगह पुन: स्वच्छंद, हल्की मुस्कान व सौम्य एवं सरल चेहरे वाले चार सामुहिक तन के शेर जो बैल, हाथी, घोड़े, पक्षी जैसें प्रतिकों के उभरे आकार वाले स्तम्भ पर टीके सारनाथ के अशोक स्तम्भ को शीर्ष पर राष्ट्रीय भावना की हवा से लहराते राष्ट्रीय ध्वज पताका की शीतल मानसून की मनमोहक नमी वाली हवाओं के तले धारण करने वाले नये संसद-भवन में होना हैं |
बीस से ज्यादा राजनैतिक दलों की राष्ट्रपति से उद्घाटन कराने की मांग के विपरित प्रधानमंत्री द्वारा नये संसद-भवन के उद्घाटन में अपने प्रतिनिधियों के रूप में करीबन आज का ही आधा भारत अनुपस्थित रहा | इस कार्यक्रम के वैचारिक द्वन्द के बाद पहली बार नये भवन में संसद सत्र लगने जा रहा हैं | देश के सभी महत्तवपूर्ण मुद्दों से पहले इसके सभी सांसदों को आपस में टोका-टाकी, बयानबाजी, अवक्षेप व निचा दिखाने की मंशा को रोक आत्मीयता, सौहाद्रता व समानता की भावना से अन्दर बैठा जनता के हित में सामुहिक रूप से काम शुरु करवाना ही लोकतंत्र की “अग्निपरीक्षा” हैं |
मानसून सत्र के पहले दिन सभी प्रतिनिधि अपने-अपने धर्म-सम्प्रदाय की परम्पराओं को निभाता हुआ मन्दिर-मज्जिद, गुरूद्वारों, गिरजाघरों, बौद्धालयों, जैंन स्थानकों सहित तमाम धार्मिक स्थलों पर वन्दन कर अपने पूर्वजों, गुरूओं एवं बड़े लोगों का आशीर्वाद ले जनता के आदेशों एवं निर्देशों को लेकर उनके प्रतिनिधि के रूप में निष्ठा के साथ कर्त्तव्य निभाने नये संसद-भवन के द्वार पर पहुंच जायेंगे | यहां अलग-अलग मानसिक सोच और वेशभूषा के आधार पर सामुहिक हो राजनैतिक दलों के नाम, झण्डों, क्षत्रपों के तले एकता की पहली कडी में बंध जायेंगे | अब ये सभी राजनैतिक दल एक साथ कंधा से कंधा मिलाये नये संसद-भवन में प्रवेश करेंगे तब ही अन्दर लोकतंत्र का छोटा सा स्वरूप बन जायेंगा | एक साथ सबको आत्मीय संतुष्टि के साथ बिना छल-कपट, लोभ-लालच, मोह-माया, भेद-भाव, ऊंच-नीच, बिना कुर्सी के अहंकार के लोकतन्त्र की आत्मा खत्म होने के आक्षेपों के मध्य कराना ही आज के लोकतंत्र की सबसे कमजोर कडी हैं |
इनकी एकता राष्ट्रीय झण्डे व उसकी शीतल राष्ट्रीय हवा में शीर्ष पर विद्यमान अशोक स्तम्भ से ही सम्भव हैं | इसके लिए हर माननीय सदस्य चाहेगा की इस नये संसद-भवन पर राष्ट्रीय ध्वजारोहण हो ताकि हर शहीद को सलामी मिले व राष्ट्रीय गीत के गायन से राष्ट्र की ऐकता, साहस, अखण्डता की महिमा का वर्णन हो व नया संसद-भवन राष्ट्र को समर्पित हो अन्यथा लोग समझेंगे की हम निष्ठुर, लालची, स्वार्थी, मुफ्तखोर, धर्म एवं सम्प्रदाय विरोधी और देश के लिए तन-मन-धन न्यौछावर करने वाले शहीदों का अपमान/तिरस्कार/निराधर करने वाले हैं | जनता जो सभी सदस्यों की असली मालिक हैं उसने अपना पेट काट टैक्स रूप में जोड़ उन पैसों को पानी की तरह बहा अपने प्रतिनिधियों को काम करने के लिए आलीशान, भौतिक सुविधाओं एवं सुरक्षा से परिपूर्ण करके नई संसद दी हैं | यदि उसे ही नई संसद समर्पित नहीं की गई तो नैतिकता व मर्यादा के तराजू में सभी सांसद गद्दार, राष्ट्रद्रोही, नमकहराम, पीठ में छुरा घोपने वाले नजर आयेंगे और कोई भी सांसद आंखो में ऐसी निर्लजता लेकर नये संसद-भवन में प्रवेश करना पसंद नहीं करेगा |
अब सांसद प्रमुख द्वार के प्रवेश न कर पाने की मजबूरी में आजादी के बाद परम्परा सी बन गई रीत की तरह अन्दर लगी महात्मा गांधी की मूर्ति के चरणों में बैठ धरना-प्रदर्शन भी नहीं कर पायेगा | इस कारण अब महात्मा गांधी के शहीद-स्थल पर ही जाना पडेगा | यहां ईश्वर-अल्लाह एक ही नाम सबको सदमती दे भगवान जैसी प्राथनाओं के मध्य किसी को धार्मिक एवं जातपात के आधार पर संकोच व शंशय नहीं होगा |
सभी धर्म एवं उनके स्थलों के माध्यम से आशीर्वाद लेकर आये जनता के प्रतिनिधियों को सर्वधर्म सम्भाव की भावना से बंधने के उपरान्त उच्चतम न्यायालय जाना पडेगा क्योंकि संविधान की मूल प्रति या प्रतिक कापी तो नये संसद-भवन के सभागार में रखी हैं | संविधान के अनुसार न्याय करने की जवाबदेही न्यायपालिका की हैं इसलिए यहां मुख्य न्यायाधीश से संविधान की प्रस्तावना की शपथ लेकर आगे बढना होगा | यदि मुख्य न्यायाधीश व्यस्त हैं या छुट्टी पर हैं तब नारेबाजी, मुकदमेंबाजी व धरने की जगह उन्हें सुप्रिम कोर्ट के बाहर लगातार दस-दस मिनिट के अन्तराल पर राष्ट्रगीत को गाना पडेगा ताकि हर न्यायाधीश को सबके साथ अपनी कुर्सी से खडा होना पडे़ व उन्हें एहसास कराये की राष्ट्र के लिए त्याग एवं समर्पण से बडा़ कोई काम नहीं होता |
अब धर्म, संविधान लेने के पश्चात् अमर जवान ज्योति समाहित करे नेशनल वार मेमोरियल जाना पडेगा क्योंकि राष्ट्र निर्माण एवं गौरव के लिए अपनी जान न्यौछावर करने वाले सभी शहीदों को श्रद्धांजलि देकर वहां से तिरंगा लिया जा सके | अब तिरंगे को राष्ट्रपति-भवन जाकर राष्ट्रपति को देना पडेगा ताकि उनके सान्निध्य में नये संसद-भवन को देश की जनता एवं राष्ट्र को समर्पित करने का अनुरोध किया जा सके |
धर्म, संविधान, शहारत एवं तिरंगा सभी साथ आ जाने पर भी नये संसद-भवन के राष्ट्र समर्पण में देरी हो सकती हैं क्योंकि आजकल राष्ट्रपति को अंजान रख कोई और ही उनके नाम व पद का इस्तेमाल कर अपनी मनमर्ज़ी से भारत-सरकार को चला रहा हैं | इसलिए ऐसे भ्रष्ट, देशद्रोही एवं संकुचित मानसिकता के लोकतंत्र विनाशकों को सही मार्ग पर आने तक यह परिक्रमा हर रोज करनी पडेगी ताकि पूरा मानसून सत्र भी खत्म हो जाये तब भी सांसदों की सदस्यता खत्म न हो सके | संवैधानिक रूप से जनप्रतिनिधी जनता के स्थान के अतिरिक्त किसी और जगह जाकर देशवासीयों के लिए कानून नहीं बना सकते क्योंकि वहां किसी दबाव, मजबूरी, डर, अत्याचार से छेड़छाड़, भेदभाव, शोषण होने की सम्भावना रहती हैं | महामहिम राष्ट्रपति को तत्काल नहीं तो देर-सवेर नये सत्र की शुरुआत करने अपनी गाडी व काफिले के आगे लहराते राष्ट्रीय ध्वज की परछाई में आना ही पड़ेगा | || सत्यमेव जयते ||
शैलेन्द्र कुमार बिराणी
युवा वैज्ञानिक