“फ्योंली”
प्रदेश में आमतौर से जिन पथरीली चट्टानों पर घास भी नहीं उग पाती है, वहां आसानी से फ्योंली नाम का फूल खिल जाता है।बसन्त के आगमन के साथ ही पहाड़ों में किसी भी स्थान पर खिलने वाले पीले रंग के फूल को फ्योंली कहा जाता है। फ्योंली पीले रंग का होता है. इसके नाम के पीछे कई कहानियां सुनने को मिलती हैं। कहा जाता है कि देवगढ़ के राजा की इकलोती पुत्री का नाम फ्योंली था जो अत्यधिक सुन्दर व गुणवान थी, लेकिन गंभीर बीमारी के चलते उसकी असामयिक मौत हो गई।राजमहल के जिस कोने पर राजकुमारी की याद में राजा द्वारा स्मारक बनाया गया था उस स्थान पर पीले रंग का यह फूल खिला जिसका नाम फ्योंली रखा गया। साहित्यकार कांति डिमरी का कहना है कि पहाड़ों में फ्यूंली का खिलना बंसन्त के आने की सूचना देता है तो कवियों के लिए उनकी रचना का विषय भी देता है जिसकी सुन्दरता से कवि अपनी कविता की रचना करते हैं।साहित्यप्रेमी व आयुर्वेद के जानकार शिवराज सिंह रावत की माने तो पहाड़ों में बसन्त के आगमन का संदेश लाने वाली फ्योंली न सिर्फ अपनी सुन्दरता के लिए प्रसिद्ध है बल्कि यह एक आयुर्वेदिक औषधि भी है, जो कि कई प्रकार के रोगों के इलाज में प्रयुक्त की जाती है।फ्योंली की सुन्दरता को लेकर आज भी पहाड़ों में खूब गीत गाए जाते हैं। पहाड़ों में खूबसूरत पीले रंग की फ्योंली का खिलना बसन्त के आने की निशानी तो है ही यदि इसके साथ लाल बुरांश भी खिलने लगे तो फिर प्रकृति की सुन्दरता चार-चांद लग जाते हैं।