विश्व में भारत ही ऐसा देश है जिसे माँ का दर्जा प्राप्त है क्योंकि यहाँ माँ बच्चों को संस्कारित कर संस्कार वान बनाती है।
नास्ति मातृसमा छाया नास्ति मातृसमा गतिः।
नास्ति मातृसमं त्राणं नास्ति मातृसमा प्रपा॥
माता के समान कोई छाया नहीं, कोई आश्रय नहीं, कोई सुरक्षा नहीं।
माता के समान इस विश्व में कोई जीवनदाता नहीं
भारत मे रोज मातृ दिवस मनाते आये हैं ।यहाँ माँ ने बच्चों को संस्कारित बनाया है।पति के मरने पर भी अपने बच्चों के
पोषण के लिए मेहनत मजदूरी कर के लालन पालन किया है यह मातृ दिवस मनाने का प्रचलन विदेशी लोगों मे है क्योंकि उनकी माताएं जीवन भर अपने भौतिक उपभोग की दुनिया में बिचरित कर कई मालिक के घर अपनी अय्यासी की निशानी छोड़कर साल में इस दिन चर्च में होटल में अपने कोख से पैदा की गई संतानों से मिलने का नाटक ढोंग करते हैं । वहां पर माँ नहीं मिलने पर उसका बच्चा इंतजार करने के बाद अपनी माँ के नहीं आने पर अपने द्वारा लाई गई भेंट गुलदस्ता चर्च में उक्त लिफाफे पर छोड़कर चला जाता है। यहां ऐसा मिलने के
स्थान नहीं है ।फिर भी विदेशी संस्कृति को हम अपनाएं उसके लिए कोई कोर कसर नहीं छोड़ते चाहे जन्मदिन हो तो घर में गणेश पूजन भूल जाते हैं ।20 रुपये की उड़द की दाल की 4 पकौड़ी बनाना भूल जाते हैं और 1000 रुपये का केक लाना नहीं भूलते हैं।
इसके लिए कुछ हद तक सता में बैठे लोगों ने सांस्कृतिक विरासत को खराब करने के लिए अपने घर परऐसे उत्पाटाँग आयेजन कर संस्कृति को बिगाड़ने में होड़ लगी हुई रहती है
इस देखा देखी और मालिक की कमाई से भारत के लड़कियों के द्वारा लड़कों के संस्कार खराब करके देश में नई संस्कृति को जन्म दे दिया है।जिन माँ, बापों ने बच्चों को बड़ी मुसीबत में पाला पोसा है ।उनको इतना खराब कर दिया है।
अब अपने मा बापों से बुढापे जब बच्चों के सहारे की जरूरत होती है ।
तब बुरे हाल में छोड़कर देश मे समाज सेवा की नसीहत अपने मौजूदा निवास के लोगों से बांटते फिर रहे हैं। हमारे उत्तराखंड में यह संस्कार वर्ष 19 72 -73 से देखने को मिला है ।
जब न्याय पंचायत में मा बाप ने लड़के से अपने भरण पोषण की बात के लिए न्याय की गुहार लगायी है।और चौधरी चरण सिंह ने पंचायत न्यायालय को समाप्त करने का काम किया।
उस समय से यह प्रचलन चला कि बापके पास मुकदमे लड़ने के लिए धन नहीं होता ,लड़के अपने वकील को धन देकर तारीख पर तारीख लगवाने के कारण घर के परिवार के संस्कार व संस्कृति को खराब करने के काम हुए है।
तब से मा बाप को जीवित रहने का संकट होगया है। इसके लिए न्याय पंचायत सुरु होजाय तो कुछ जो संस्कार खराब हुये हैं उन्हें पुनः सामाजिक दबाव की संजीवनी से समझौता करने पर वापिस लौट कर आसक्ति है।
इसके लिए समाज मे ग्रामपंचायत से पंच चुने जाने की आवश्यकता है।
से संकट हुआ है माता के समान इस विश्व में कोई जीवनदाता नही है मातृ दिवस की शुभकामनाए ,शत शत नमन!🙏
नास्ति मातृसमा छाया नास्ति मातृसमा गतिः।
नास्ति मातृसमं त्राणं नास्ति मातृसमा प्रपा॥
माता के समान कोई छाया नहीं, कोई आश्रय नहीं, कोई सुरक्षा नहीं।
माता के समान इस विश्व में कोई जीवनदाता नहीं॥
मातृ दिवस की शुभकामनाएं💐 शत शत नमन!🙏