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युग पुरुष परिपूर्णानन्द पैन्यूली जी को उनकी पुण्यतिथि पर शत शत नमन

Pahado Ki Goonj

कुछ व्यक्ति ऐसे महान होते हैं, जिनका पूरा जीवन समाज के लिए ,वंचितों के लिए संघर्ष करते हुए सदैव गुजरता है,आज ऐसे ही एक महान विभूति की पुण्यतिथि हैं।मैं बात कर रहा हूँ महान स्वतन्त्रता सेनानी,टिहरी राजशाही के खिलाफ बुलंद आवाज उठाने वाले प्रजामण्डल के प्रथम अध्य्क्ष पूर्व साँसद स्व श्री परिपूर्णानन्द पैन्यूली जी के बारे में,श्री परिपूर्णानन्द जी नाम के मुताबिक ही अपने में परिपूर्ण थे,वो एक जुझारू राजनेता,विद्वान तेज तर्रार पत्रकार और क्रान्तिकारी थे।

    (जन्म19  नवम्बर 1924-12 अप्रैल 2019 पुण्यतिथि)

अंग्रेजों के खिलाफ गांधीजी के नेतृत्व में 1942 को भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय भाग लेने वाले परिपूर्णानन्द पैन्यूली जी तब काशी विद्यापीठ के छात्र थे।छात्र जीवन से ही क्रांतिकारी परिपूर्णानन्द पैन्यूली का जन्म पुरानी टिहरी के पास खास पट्टी के छोल गॉव में 19 नवम्बर 1924 को हुआ था,इनके पिता स्व श्री कृष्णानन्द पैन्यूली जी जूनियर इंजीनियर थे,टिहरी तब एक रियासत थी,इनके दादाजी स्व श्री राघवानन्द पैन्यूली जी राजा के दीवान थे,पैन्यूली वंश के कई अन्य लोग भी समय समय पर विभिन्न राजाओं के शासन में दीवान पद पर कार्यरत रहे,यही कारण है कि कई लोग अभी भी पैन्यूली कुल के किसी भी व्यक्ति को दीवान जी कहकर संबोधित करते हैं।परिपूर्णानन्द जी के दादाजी स्व राघवानन्द जी लिखवार गॉव भदूरा के मूलनिवासी थे,जहाँ से वे और उनके पुत्र यानि कृष्णानन्द पैन्यूली जी बगल के गॉव बनियाणी में जाकर रहने लगे,चूँकि लिखवार गॉव के दीवानों की तत्कालीन समय में बहुत बड़े क्षेत्र में अपनी खेती बाड़ी थी तो उन्होंने लिखवार गॉव के बजाय बनियाणी में रहना शुरू किया,लिखवार गॉव और बनियाणी के बीच महज आधा किमी का फासला है।चूँकि दीवान साहब,और इनके इंजीनियर पिताजी का टिहरी दरबार में ही रहना होता था या काम लगातार वहीं होता था,या यूँ कहे लगातार आना जाना होता था,इसी को देखते हुए दीवान साहब ने पुरानी टिहरी के नजदीक छोल गॉव में रहना शुरू किया,जहाँ इतिहास पुरुष ,राजशाही को मात देने वाले परिपूर्णानन्द पैन्यूली जी का जन्म 19 नवम्बर1924 को मंगसीर के महीने हुआ था।इनकी माता का नाम स्व श्रीमती एकादशी देवी था।बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि के परिपूर्णानन्द जी पढाई लिखाई में होशियार थे।महात्मा गांधी से बनारस में मुलाकात के बाद ये जब टिहरी लौटे तो इन्होंने राजशाही का विरोध करना शुरू किया उस वक्त श्रीदेव सुमन जी भी टिहरी राजशाही के खिलाफ आंदोलन छेड़े थे।

परिपूर्णानन्द जी और इनके भाई सच्चिदानन्द पैन्यूली जी भी आंदोलन में कूद पड़े नतीजतन दोनों भाइयो को जेल हुई,टिहरी जेल में रहकर परिपूर्णानन्द जी ने राजशाही के खिलाफ आवाज बुलंद जारी रखी, उन्होंने अपने से मुलाकात करने वालों से कहा कि तुम केले के अंदर कीलें लेकर आना, जब उन्हें 6,7 कीलें मिली तो उन्होंने टिहरी जेल के अंदर ही जेल की दीवारों को लोहे की किल के सहारे फांदकर,वहाँ से भिलंगना में छलांग लगाई और नदी के वेग के साथ फिर भागीरथी तट की तरफ निकले नदी की विपरीत धारा में तैरकर,राजशाही को चकमा देकर ये क्रन्तिकारी सिंराई से पैदल चलकर ,काफलपानी के रास्ते और कद्दूखाल से निकलकर मालदेवता पार कर देहरादून निकले,चूँकि अब वो टिहरी राजशाही से बाहर जा चुके थे तो अब वो एक तरह से राजशाही के विरुद्ध बड़े आंदोलन की तैयारी करने लगे,देहरादून से वो दिल्ली गये और वहाँ एक पत्रिका में काम कर टिहरी आंदोलन के लिए रण नीति बनाने लगे और वेश बदलकर और नाम बदलकर रहने लगे।परिपूर्णानन्द पैन्यूली जी ने फिर टिहरी जाकर राजा के खिलाफ आंदोलन को तेज किया उन्हें प्रजामण्डल का अध्य्क्ष चुना गया,देश की आजादी के बाद टिहरी की आजादी का आंदोलन तेज हुआ और टिहरी के राजा ने जनता के भारी विद्रोह के बाद भारतीय गणराज्य में टिहरी रियासत को मिलाने का निर्णय लिया।

उस समय टिहरी को भारतीय गणराज्य में मिलाने में परिपूर्णानन्द पैन्यूली जी ने ही मुख्य भूमिका निभाई,उस वक्त यदि परिपूर्णानन्द पैन्यूली चाहते तो तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और सरदार वल्लभ भाई पटेल जी से कहकर टिहरी रियासत को एक छोटा सा पहाड़ी स्टेट बनाते,और यदि टिहरी अलग जिले के बजाय तब एक अलग पहाड़ी राज्य के रूप में अस्तित्व में आता तो निसन्देह परिपूर्णानन्द पैन्यूली जी ही मुख्यमंत्री बनते ,लेकिन टिहरी अलग प्रदेश न बन सका हाँ एक जिले के रूप में तत्कालीन उत्तरप्रदेश राज्य के अधीन अस्तित्व में आया,बाद में टिहरी का एक बड़ा भूभाग पृथक होकर अलग रूप से उत्तरकाशी जिला बना।परिपूर्णानन्द जी सदैव जन संघर्षों के लिए लड़ते रहे,आजादी के बाद वो गरीबो और वंचितो की लड़ाई लड़ते रहे,सदैव सक्रिय रहे,उनके संघर्षों का ही परिणाम रहा कि 1971 में इंदिरा गाँधी ने सीटिंग साँसद पूर्व महाराजा मानवेन्द्र शाह जी के बजाय इन पर भरोसा जताया,और इन्होंने सिंडिकेट कॉंग्रेस से खड़े महाराजा मानवेन्द्र शाह को चुनाव में पराजित कर एक नया इतिहास लिखा ये पहले ऐसे व्यक्ति बने जिन्होंने टिहरी लोकसभा सीट राज परिवार से छीनकर एक नया अध्याय लिखा।1971-77तक के साँसद कार्यकाल में ये कई संसदीय समितियों के सदस्य भी रहे,श्री परिपूर्णानन्द पैन्यूली जी 6 वर्ष से अधिक समय स्वाधीनता और टिहरी जनक्रांति में टिहरी और मेरठ जेल में रहे,स्वतन्त्रता के बाद इन्होंने कई पत्र पत्रिकाओं में कार्य किया,परिपूर्णानन्द जी ने सदैव वंचितो,दलितों,पिछड़ो के लिए कार्य किया,शिक्षा के क्षेत्र में इन्होंने बहुत काम किया,जौनसार क्षेत्र में इन्होंने शिक्षा और सामाजिक क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण कार्य किये जौनसार में इनके कई अनुयायी है जो इनके परम् भक्त है,इनको लोग दादाजी के नाम से पहचानते थे,इनका अशोका आश्रम लोगो के जीवन स्तर को उठाने के लिए वर्षो से कार्य कर रहा है।परिपूर्णानन्द जी की धर्मपत्नी स्व कुंती देवी टीचर थी,इनकी 4 बेटियां है विजयश्री,राजश्री,इंदिरा और तृप्ति,इनके भतीजे सम्पूर्णानन्द पैन्यूली विवेक पैन्यूली ऋषिकेश में रहते हैं।

पहाड़ी  राज्य  हिमाचल प्रदेश के दो बार  कॉंग्रेस अध्यक्ष  रहे हैं। उनके अनुसार वहां का  विकास किया गया है। परिपूर्णानन्द जी ने दलितों को मन्दिर में प्रवेश की मजबूत वकालत भी की थी,उन्होंने आजीवन निर्धनों के लिए कार्य किया,गरीबो के लिए जीवन जिया,वो बेहद सादगी में जीवन जीते थे,उन्होंने राजनीति में उच्च आदर्श स्थापित किये,उनका जीवन हमारे लिए एक बड़ी प्रेरणा है और उनका आशीर्वाद हमारे लिए चिरंजीवी है।परिपूर्णानन्द पैन्यूली जी जैसे महापुरुष पैदा होते हैं बनाये  नहीं  जाते हैं। परिपूर्णानन्द पैन्यूली जी को उनकी पुण्यतिथि पर शत शत नमन।युग पुरुष परिपूर्णानन्द पैन्यूली अमर रहे।ॐ शांति,शांति ॐ
चन्द्रशेखर पैन्यूली।प्रधान, लिखवार गांव टिहरी Garhwal 

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