देहरादून। आराध्य देव गणपति की पूजा के साथ बुधवार से गणेश महोत्सव शुरू हो जाएगा। ढोल नगाड़ों के साथ नगर परिक्रमा के बाद गणपति बप्पा स्थापित होंगे। दो साल बाद इस महोत्सव को लेकर आयोजकों में भी खासा उत्साह है। घरों में जहां लोग तैयारी में जुटे हैं वहीं शहर के विभिन्न जगहों पर पांडाल सज चुके हैं। गणेश पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 11रू 24 से दोपहर 1रू54 बजे तक रहेगा।भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को भगवान गणेश की पूजा की जाती है। इस बार बुधवार को गणेश चतुर्थी के साथ 10 दिवसीय महोत्सव की शुरुआत होगी। देहरादून की बात करें तो यहां पटेलनगर, मन्नूगंज, प्रेमनगर, क्लेमेनटाउन आदि क्षेत्रों में पांडाल सजाकर इस महोत्सव को उल्लास और श्रद्धाभाव के साथ मनाया जाता है। गणपति के भजन और झांकियां प्रस्तुत की जाती हैं।गणेश उत्सव मंडल सर्राफा बाजार के कोषाध्यक्ष संतोष माने ने बताया कि इस बार 16वां गणेश महोत्सव धामावाला मोहल्ला में मनाया जाएगा। शाम 7.30 बजे गणपति की स्थापना होगी। महोत्सव में भंडारा, रक्तदान शिविर का आयोजन होगा।
श्रीगणेश भगवान जय
शिवपुराण के अनुसार एक बार माता पार्वती ने स्नान से पूर्व शरीर पर हल्दी का उबटन लगाया था। इसके बाद जब उन्होंने उबटन उतारा तो इससे एक पुतला बना दिया और उसमें प्राण डाल दिए। इस तरह भगवान गणेश की उत्पत्ति हुई। इसके बाद माता पार्वती स्नान करने चली गई और गणपति को आदेश दिया कि तुम द्वार पर बैठ जाओ और किसी को भी अंदर मत आने देना।
कुछ देर बाद वहां भगवान शिव आए और कहा कि उन्हें पार्वती जी से मिलना है। द्वारपाल बने भगवान गणेश ने उन्हें अंदर जाने से रोक दिया। इसके बाद शिवगणों और भगवान गणेश के बीच भयंकर युद्ध किया लेकिन कोई भी उन्हें हरा नहीं सका फिर क्रोधित शिवजी ने अपने त्रिशूल से बालक गणेश का सिर काट डाला। जब माता पार्वती को इस बात का पता चला तो रोने लगीं और प्रलय करने का निश्चय कर लिया। इससे देवलोक भयभीत हो उठा फिर देवताओं ने उनकी स्तुति कर उन्हें शांत किया। भगवान शिव ने गरुड़ जी से कहा कि उत्तर दिशा में जाओ और जो भी मां अपने बच्चे की तरफ पीठ कर के सो रही हो उस बच्चे का सिर ले आओ। गरुड़ जी की काफी देर बाद तक ऐसा कोई नहीं मिला। अंततः एक हथिनी नजर आई। हथिनी का शरीर ऐसा होता है कि वो बच्चे की तरह मुंहकर नहीं सो सकती। तो गरुड़ जी उस शिशु हाथी का सिर काट कर ले आए।शिव ने उसे बालक के धड़ पर रखकर उसे पुनर्जीवित कर दिया। पार्वती उसे पुनः जीवित देख बहुत खुश हुई और तब समस्त देवताओं ने बालक गणेश को आशीर्वाद दिए।
भगवान शिव ने उन्हें आशीर्वाद दिया कि किसी भी मांगलिक कार्य की शुरुआत अगर गणेश पूजा से होगी तो वो सफल होगा। उन्होंने गणेश को अपने समस्त गणों का अध्यक्ष घोषित करते हुए आशीर्वाद दिया कि विघ्न नाश करने में गणेश का नाम सर्वोपरि होगा। इसीलिए भगवान गणेश को विघ्नहर्ता भी कहा जाता है।