रवांई घाटी का सुप्रसिद्ध गंगानी बसंत मेला (कुंड की जातर )।
उत्तरकाशी / बडकोट । (मदन पैन्यूली)
उत्तरकाशी जनपद की रवाई घाटी अपनी पौराणिक मेलो त्योहार रीति रिवाज को आज भी समेटे हुए हैं । इन्हीं मेलों में यहां का एक सुप्रसिद्ध मेला है गंगानी बसंत मेला (कुंड की जातर )।
बड़कोट शहर से महज आठ किमी की दूरी पर स्थित गंगनाणी कुंड से गंगा की धारा निकलने की मान्यता के चलते इस स्थान का बड़ा धार्मिक महत्व है। गंगनाणी में कुंड से निकलने वाली गंगा की धारा पास में ही यमुना और केदार गंगा के साथ संगम कर त्रिवेणी बनाती है। इसी धार्मिक महत्व के चलते हर वर्ष कुंभ संक्रांति के पावन पर्व पर गंगनाणी में वसंत मेला ‘कुंड की जातर’ का आयोजन किया जाता है। यह मेला प्रतिवर्ष जिला पंचायत उत्तरकाशी द्वारा आयोजित किया जाता है । इस वर्ष भी यह मेला13 फरवरी से 15 फरवरी 2024 तक आयोजित किया जाएगा ।
क्या है कुंड की जातर
एक विचित्र भूगर्भीय घटना जिसमें गंगा नदी का जल अपने पारंपरिक प्रवाह से विपरीत जमीन के भीतर ही भीतर यमुना तट पर उदघटित होता है। यही गंगा जल का लघु जलाशय गंगनानी के कुंड के नाम से प्रसिद्ध है। पेयजल के स्रोत से बड़ा इस कुंड का एक आध्यात्मिक और सामाजिक महत्व है। गंगा स्नान और धार्मिक कर्मकांडों का यह यमुनाघाटी में मुख्य केंद्र है। यह यमुना के तट का पहला प्रयाग और मोक्षधाम है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार महर्षि जमदग्नि यमुना के तट पर बसे थान गांव से नित्य गंगा स्नान को रोज आया-जाया करते थे। वृद्धावस्था में यह नियमित रूप से कर पाना संभव ना था। इसलिऐ मुनि महाराज के तपोबल से गंगाजी की एक धारा यहाँ फूट पड़ी। गंगा जमुना के जल के संगम होने से इसका धार्मिक महत्व और बढ़ गया और यह एक तीर्थ हो गया। आज बच्चों के चूड़ा कर्म, विवाह, स्नान, और अंतिम संस्कार तक के सारे धार्मिक अनुष्ठानों का यह मुख्य केंद्र हैं।
उत्तरकाशी जिला पंचायत अध्यक्ष दीपक बिजल्वाण ने कहा है की 13 फरवरी को बाबा बौखनाग देवता और यमदग्नि ऋषि (मुनि) महाराज की उत्सव डोली के द्वारा मेले का शुभारंभ किया जाएगा । मेले में विभिन्न सरकारी एवं गैर सरकारी विभागों के स्टाल लगाए जाएंगे ।
स्टालों के माध्यम से सरकारी योजनाओं की जानकारी लोगों को दी जाएगी व स्थानीय कलाकारों के साथ प्रसिद्ध कलाकारों की सुंदर प्रस्तुति के साथ खेल प्रतियोगिताओं का आयोजन भी किया जायेगा।