देहरादून ,लिखवार गाँव , प्रतापनगर टिहरी गढ़वाल प्रसिद्ध कोटेश्वर महादेव मंदिर पुजार गाँव भदुरा प्रतापनगर में स्थित है ।वहाँ पर साफ सुथरे आचरण करने वाले भरपुरिया गाँव के पंवार लोगों के बीच पुरुष पर देवता अबतारित किया जाता है।जब वह समझने लगते हैं कि अब मेरा शरीर महादेव की सेवा के लिए साथ नहीं दे रहा है।तो वह देवता की निशानी कोडेथ नामक जंगल में5,7 साल पहले छोड़ देंते हैं।अब जब उनका देहान्त होजाता है।पुनः देवता के पश्वा के लिए आवह्यन किया जाता है इस प्रकार से जनि जिन पर देवता का वास होता है वह रात्रि में मंदिर में सोते हुए देवता आते दिखाई देते हैं।वह रात्रि में कहीं चले भी जाते हैं वापस आकर अपने स्थान पर आजाते हैं ।अब देवता के साथ साथ जनता उनको साथ लेकर उक्त जंगल में भेजकर वह निशानी ढूंढ़ कर लानी होती है। इसमें कई दिन लगजाते हैं।जब वह निशाना लेकर आते हैं।तब उनके ऊपर देवता के लिए तैयार हो ने पर परीक्षा की जाती है ।कोई भी आदमी अपनी हाथ की मुठी में कोई निशानी रखने के बाद उनको उस निशानी का नाम पूछ कर बताया जाता है।उसके बाद असली परीक्षा देवता के लिए बने हुए चांदी के कड़ों को चावल के ऊपर रखा जाता है।जिस व्यक्ति को देवता पश्वा चुनता है ।उसके हाथ मे वह कड़े अपने आप कड़े के ऊपर हाथ रखने से पराया जाता है उनके पहने की आवाज आती है।जो दिखाई देने के साथ साथ दूरवालों को सुनाई देती है। यह सुअवसर के हम लोग दर्शक वर्ग के गवाह हैं।देवता कीमहिमा का बर्णन हमारे बीच के लोगों प्रचलित है कि लैंसडाउन मोटर सड़क निर्माण में कार्य करने के लिए आज कोटेश्वर के वर्तमान पश्वा के स्व दादा श्री काम करने के लिए गये थे ।शिवरात्रि के समय उनकी मजदूरी ठेकेदार को भुगतान ना होने से नही मिल पाई ।उन्होंने अपने घर भी भुगतना की बिलम्ब से दिन बीत ते गये ।इतनी जल्दी पैदल कैसे पहुंच पाते। वह शिवरात्रि के पहले दिन समय पर घर नहीं पहुँचने से मुल्क के लोगों में सनसनी फैल गई। शिवरात्रि के बाद लोग अपने घर में वर्त कस पूजन करते हैं। दूसरे दिन सादी के नये जोड़े अपने इष्टदेव का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए जाते हैं।इस असबसर लडकियां अपने मायके आजाती हैं।घर में जो दुल्हन आई है वह भी अपने पति के साथ मन्दिर में भेंट चढ़ाने जाते हैं।अब दूसरा पश्वा इतनी जल्दी नहीं बनाया जाता है ।अब ठीक शिवरात्रि के पहले दिन रात्रि में वहां पर जागरण होता है। उस रात्रि को लैंसडाउन में देवता के पश्वा के ऊपर देवता अबतरित हुआ और वहाँ से एक सबल देवता के बस में लेकर230 किलो मीटर दूर रात्रि में मंदिर में पहुंच कर सबको आश्चर्य चकित कर दिया। इतना प्रसिद्ध देवता हैं।उनकी अव्यबस्था के चलते पुजार गाँव में बड़ा आयोजन धन की आवक के अभाव से नहीं हो पाया।वर्ष 1967 में हमें भी ओणेश्वर देवता के मंदिर में जाने का अबसर मिला।वहां की अव्यवस्था को देखते हुए मन में बात आई कि श्री कोटेश्वर में भी इस प्रकार आयेजन किया जाय तो वहां पर आने जाने वाले लोगों को देवता के आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए दुभिधा होगी। 1967 में देवता की सेवा करने का मौका लाने के लिए धन का अभाव कारक बनता रहा।देवता की आज्ञा से पुनः 1973 में श्री कोटेश्वर महादेव मंदिर में मेले के आयोजन का अल्प प्रयास किया कि खर्चे की पूर्ति नहीं होगी तो सेवा की जाएगी इस कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए जूनियर हाईस्कूल के हेडमास्टर चन्दन सिंह पोखरियाल ,खुशाल सिंह राणा आदि मास्टर एवं पट्टी के सामाजिक कार्यकर्ता ओं का रहा प्रधान भरपुरिया गाँव जी को सारा हिसाब किताब रखने के लिए कहा 317 रुपये मेले में हुए वहां की व्यबहारिक व्यवस्था को देखते हुए कार्यक्रम पूर्ण रूप से सम्पन्न हुआ 32 रुपये बच गये उसका आगे मन्दिर संक्रांति अमावस्या के पूजन करने के लिए प्रधान जी को दिया गया है आज मंदिर में लाखों रुपए इकट्ठे होकर खर्चा किया जारहा है लोगों को रोजगार घर पर मिलने लगा है। 2006 की फरवरी में वहाँ पर जाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ मैंने सुझाव दिया कि प्रत्येक महीने की संक्रांति को देवता यहां पर आये तो जो लोग शिवरात्रि के अबसर पर नहीं आसकते वह इस तिथि के प्रचार प्रसार होने से अपने समय अनुसार असकते हैं। इस आयोजन का दोमाह का खर्चा की सेवा” पैन्यूली जी सन्देश” व “पहाड़ों की गूंज” राष्ट्रीय हिंदी पत्रिका ,पत्र के संपादक जीतमणि पैन्यूली की परंतु उनके हिसाब से यह व्यबहारिक नहीं लगने के चलते जहांरोजगार की कमी महसूस होरही है वहीं श्रद्धालुओं को असुभिधा होरही हैं ।देेवता की सेवा के करने
लिए हमारे जन प्रतिनिधि 2006 से प्रयास रत हैं।परन्तु देवता कीसेवा के लिए इच्छा से कर्म करने का सवाल है।
शिव ताण्डव स्तोत्रम / स्तोत्र
जटाटवीगलज्जलप्रवाहपावितस्थले, गलेऽवलम्ब्यलम्बितां भुजङ्गतुङ्गमालिकाम्।
डमड्डमड्डमड्डमन्निनादवड्डमर्वयं, चकारचण्डताण्डवं तनोतु नः शिवो शिवम् ॥१॥
जटाकटाहसंभ्रमभ्रमन्निलिंपनिर्झरी, विलोलवीचिवल्लरी विराजमानमूर्धनि।
धगद्धगद्धगज्ज्वलल्ललाटपट्टपावके, किशोरचंद्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं ममं ॥२॥
धराधरेंद्रनंदिनी विलासबन्धुबन्धुरस्फुरद्दिगंतसंतति प्रमोद मानमानसे।
कृपाकटाक्षधोरणीनिरुद्धदुर्धरापदि क्वचिद्विगम्बरे मनोविनोदमेतु वस्तुनि ॥३॥
जटाभुजंगपिंगलस्फुरत्फणामणिप्रभा-कदंबकुंकुमद्रवप्रलिप्तदिग्वधूमुखे।
मदांधसिंधुरस्फुरत्वगुत्तरीयमेदुरे मनोविनोदद्भुतं बिंभर्तुभूतभर्तरि ॥४॥
सहस्रलोचनप्रभृत्यशेषलेखशेखर-प्रसूनधूलिधोरणी विधूसरांघ्रिपीठभूः।
भुजंगराजमालयानिबद्धजाटजूटकः श्रियैचिरायजायतां चकोरबंधुशेखरः ॥५॥
ललाटचत्वरज्वलद्धनंजयस्फुलिङ्गभा-निपीतपंचसायकंनमन्निलिंपनायकम्।
सुधामयूखलेखया विराजमानशेखरं महाकपालिसंपदे शिरोजटालमस्तुनः ॥६॥
करालभालपट्टिकाधगद्धगद्धगज्ज्वलद्धनंजया धरीकृतप्रचंडपंचसायके।
धराधरेंद्रनंदिनीकुचाग्रचित्रपत्रकप्रकल्पनैकशिल्पिनी त्रिलोचनेरतिर्मम ॥७॥
नवीनमेघमंडलीनिरुद्धदुर्धरस्फुरत्कुहुनिशीथनीतमः प्रबद्धबद्धकन्धरः।
निलिम्पनिर्झरीधरस्तनोतु कृत्तिसिंधुरः कलानिधानबंधुरः श्रियं जगंद्धुरंधरः ॥८॥
प्रफुल्लनीलपंकजप्रपंचकालिमप्रभा-विडंबि कंठकंध रारुचि प्रबंधकंधरम्।
स्मरच्छिदं पुरच्छिंद भवच्छिदं मखच्छिदं गजच्छिदांधकच्छिदं तमंतकच्छिदं भजे ॥९॥
अखर्वसर्वमंगला कलाकदम्बमंजरी-रसप्रवाह माधुरी विजृंभणा मधुव्रतम्।
स्मरांतकं पुरातकं भावंतकं मखांतकं गजांतकांधकांतकं तमंतकांतकं भजे ॥१०॥
जयत्वदभ्रविभ्रमभ्रमद्भुजंगमस्फुरद्धगद्धगद्विनिर्गमत्कराल भाल हव्यवाट्।
धिमिद्धिमिद्धिमिध्वनन्मृदंगतुंगमंगलध्वनिक्रमप्रवर्तित: प्रचण्ड ताण्डवः शिवः ॥११॥
दृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजंगमौक्तिकमस्रजोर्गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः।
तृणारविंदचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः समं प्रवर्तयन्मनः कदा सदाशिवं भजे ॥१२॥
कदा निलिंपनिर्झरी निकुञ्जकोटरे वसन् विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरःस्थमंजलिं वहन्।
विमुक्तलोललोचनो ललामभाललग्नकः शिवेति मंत्रमुच्चरन् कदा सुखी भवाम्यहम् ॥१३॥
निलिम्प नाथनागरी कदम्ब मौलमल्लिका-निगुम्फनिर्भक्षरन्म धूष्णिकामनोहरः।
तनोतु नो मनोमुदं विनोदिनींमहनिशं परिश्रय परं पदं तदंगजत्विषां चयः ॥१४॥
प्रचण्ड वाडवानल प्रभाशुभप्रचारणी महाष्टसिद्धिकामिनी जनावहूत जल्पना।
विमुक्त वाम लोचनो विवाहकालिकध्वनिः शिवेति मन्त्रभूषगो जगज्जयाय जायताम् ॥१५॥
इमं हि नित्यमेव मुक्तमुक्तमोत्तम स्तवं पठन्स्मरन् ब्रुवन्नरो विशुद्धमेति संततम्।
हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथागतिं विमोहनं हि देहनां सुशंकरस्य चिंतनम् ॥१६॥
पूजाऽवसानसमये दशवक्रत्रगीतं यः शम्भूपूजनपरम् पठति प्रदोषे ।
तस्य स्थिरां रथगजेंद्रतुरंगयुक्तां लक्ष्मी सदैव सुमुखीं प्रददाति शम्भुः ॥१७॥
॥ इति शिव ताण्डव स्तोत्रं संपूर्णम् ॥
महाशिवरात्रि की पहाड़ोंकी गूंज परिवार कीहार्दिक बधाई बधाई