उत्तराखंड टिहरी गढ़वाल के आखिरी गाँव मेड गावँ थाति कथूड टिहरी गढ़वाल एक लघु उद्योग ग्राम है आज भी अपनी संस्कृति की धरोहर जीवित रखे हुए है ।पांडव नृत्य पांडवों के उत्तराखंड आगमन के समय से मनाया जाता रहा है यह नृत्य अपने खुशहाली के लिये मनाने का रिवाज है इस आयोजन अपनो को एक साथ मिल बैठ कर अपने सुख को अपने जरूरत बंदों के बीच बांटने की परम्परा रही है। पारम्परिक पांडव नृत्य खुशहाली का प्रतीक भी है।पाण्डव नृत्य में उनके पश्वा अपने अदम्य साहस का परिचय देते हैंगांव के लोग एवं उनके रिश्ते दार आत्मीयता से पाण्डव नृत्य का आनंद ले रहे हैं। मेढ़ ,मारवाड़ी दो ग्राम जहाँ रिंगाल की टोकरी,चटाई, घिल्डे,सुल्टा बनाये जाते हैं उसके साथ साथ भेड़ पालन,आलू उत्पादन मेआगे हैं हमारी सरकार इनके परम्परा के व्यापार को बड़वा देंने में चूक कर रही है ।इनको व्यापारिक परीक्षन देकर ,यहाँ पर्यटकों को मानसर ताल के हतकुणी के भैरव आदि छेत्र से रोजगार के अबसर पैदा किये जासकते हैं ।दुनिया मे हम अपनी पहचान बनाये रखने से महान बन सकते हैं दूसरे की नकल से नही आज हमें अपनी रोजगार की पहचान बनाये रखने के लिये आधुनिक साधनों का उपयोग करने की आवश्यकता के लिये कार्य करने की भी कोशिश करनी चाहिए।