राजन डिमरी विचार
आजका विचार आचार्य विकाश जगूडी जी दिचली जग्गड गाँव उत्तरकाशी वालों को समर्पित..?
?♂️मित्रों जैसे वेदाध्ययन करते समय पहले बायें हाथ की मुठ्ठी पर दायें हाथ की कोहनी रखकर पाठ किया जाता है, तब ही उदात्त ,अनुदात्त,स्वरित आदि स्वर लगाये जाते हैं…
?♂️यह सब वेदमन्त्रों के अभ्यास के लिए होता है, अभ्यास के उपरान्त हमें कोहनी को बायें हाथ के ऊपर रखने की आवश्यकता नहीं होती है…
?ठीक इसी तरह मन्दिर में लगी भगवान की मूर्ति भी हमारे साधना के प्रारम्भिक अभ्यास के लिए ही है ..
?अभ्यास के उपरान्त मूर्ति की आवश्यकता नहीं होती है..
?फिर मनुष्य कहीं भी किसी स्थिति में रहे उसके लिए सर्वत्र मन्दिर ही है..
यही गीता में कहा हैकि–
“”” मां ध्यायस्व युद्ध्य च “””
?♂️मेरा ध्यान भी कर और युद्ध भी कर ,दोनों कार्य एक साथ तभी हो पायेंगे जब अभ्यास होगा ,और अभ्यास के बाद हम संसार के सभी कार्यों को करने के साथ भी उसका ध्यान कर सकते हैं ,फिर मन्दिर की कोई जरूरत नहीं रह जाती है…
?इसी को योग कहते हैं, और यही अजपा जप हो जाता है, यह अजपा जप तभी होगा, जब अभ्यास होगा…
?♂️तो सभी लोग हरि स्मरण के साथ कार्यों को करने का अभ्यास करें ,किसी भी साफ ,रमणीय स्थान पर..
?मन्दिरों को तो कमेटी वालों ने,अखाड़ा बना दिया है, देश के सभी मन्दिरों को अपवित्र कर दिया है, इन राजनीतिज्ञों ने ,अब तो रजस्वला भी मन्दिर में जा रही हैं …आदि-२
?मित्रों स्वयं विचार करें – क्या ऐसे में मन्दिरों की पवित्रता रह सकती है, अब तो शूद्र व महिला पुजारी रखे जा रहे हैं …
?इसलिए अब तो मन्दिर जाने पर व्यक्ति अपवित्र हो जाता है, घर में ही स्नान कर संध्या कर हरिस्मरण करना ही श्रेयस्कर है…
?♂️यह मेरा अपना विचार मात्र है ,जरूरी नहीं कि- आप लोग सन्तुष्ट हों ,क्योंकि- विचारों की स्वाधीनता है ,इसलिए मैंने यह विचार दिया है,हाँ इस बिषय पर वार्ता की जा सकती है…
??पँ॰ राजन डिमरी??
माघ कृष्ण पक्ष तृतीया ,बुधवार ,प्रातः–८–४५ ,पटियाला (पँजाब)
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