“जब तोप मुकाबिल हो, तो अखबार निकालो”
बड़ी ताकत होती थी साहब कभी अखबार की
थोड़ी देर के लिए चलो मान लिया कि
चौकीदार सो गया था
मगर पत्रकार /अखबार ये क्या बाद में लकीर पीटने के लिए ही बने हैं .. ??
कोई भी मामला हो चाहे आशाराम, रामपाल, राम-रहीम हनीप्रीत,
बाद में मसालेदार कहानियों में तो सारे सीरियल प्रसारित होते हैं ।
मगर पहले से ये एपिसोड वीडियो कहां छुपाए रखते हैं ।
दिखाए तो मजबूरी में जाते है वरन् असल माल तो छिपाने पर ही हाथ लगता है।
अखबार आज छपने से ज्यादा छिपाने का खेल तमाशा बन गया है।
यहां भी मामला कुछ ऐसा ही है
चोरी करो मिल बांट कर ।
हीरे बांटो छांट छांट कर
चोर को भगाकर शोर मचाओ
चौकीदार चोर को पकड़ा क्यों नहीं।
चौकीदार स्तीफा दो , चौकीदार जबाब दो।
चोर ने चोरी कब की कैसे की किसके साथ मिलकर चोरी को अंजाम दिया वो सब दरकिनार करके, उल्टे आरोप थोप दो। चौकीदार से सवाल तो आपने पूछ लिया
मेरा सवाल मीडिया से है
कि २००७ से लकर २०१३ तक देश की अर्थव्यवस्था को जम कर लूटा गया था तब आप कहां सो रहे थे जनाब..
क्या तब मामा भांजे मेहुल- नीरव की हीरे की झालर वाली पार्टी या फेयरवेल पार्टी में हैंग ओवर कुछ ज्यादा ही लम्बा हो गया था..?
या तैमूर की पॉटी कवरेज में ही सारी टॉयलेटी टैलेंट घुस गई …?