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मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीरामचन्द्र जी की जय

Pahado Ki Goonj

उत्तरकाशी,असत्य पर सत्य की जीत का प्रतीक दशहरा, विजयदशमी पर्व सिखाता है कैसे आप शक्ति के साथ भी मर्यादित रहें, धर्मनिष्ठ जीवन जियें इसी अखिल कोटी ब्रह्माण्ड नायक जगतपिता जगदीश्वर करूणानिधान मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीरामचन्द्र जी ने लंकापति रावण का वध किया तो मांँ भगवती दुर्गा देवी जी ने महिषासुर का संहार किया था।*

*देश भर में आज दशहरा (Dussehra) बहुत धूमधाम से मनाया जा रहा है, इसी दिन को विजयदशमी या विजया दशमी भी कहा जाता है. यह पर्व शरद नवरात्र के 10वें दिन पड़ता है। इसी दिन शारदीय नवरात्र के नौ दुर्गा पूजन का आखिरी दिन होता है, इस दिन को बुराई पर अच्छाई की जीत के पर्व के तौर पर मनाया जाता है, इसी दिन मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्रीराम जी ने लंकापति रावण का वध किया था तो मांँ दुर्गा ने महिषासुर का संहार किया था, तबसे लेकर अब तक हर वर्ष बुराई के तौर पर रावण का पुतला जलाया जाता है. देश भर में रामायण मंचन का इसी दिन रावण दहन के साथ समापन होता है।*

*गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित श्रीरामचरितमानस के अनुसार, लंकापति राक्षस राज रावण ने वनवास के दौरान भगवान श्रीराम की पत्नी सीता का अपहरण कर लिया था। वह उन्हें अपने राज्य लंका ले गया और बंदी बनाकर रखा. भगवान राम ने लक्ष्मण जी के साथ सीता जी की खोज शुरू की. रास्ते में उन्हें जटायु ने बाताया कि रावण सीता जी का हरण करके लंका ले गया था।*
*इसके बाद श्रीराम जी को बजरंग बली हनुमान, जामवंत, सुग्रीव और तमाम वानर मिले. इन सबको मिलाकर उन्होंने एक सेना बनाई जिसके साथ रावण से युद्ध किया‌। दस सिर वाले दशानन कहे जाने वाले राक्षस रावण को युद्ध के दसवें दिन मार दिया तब से  दशमी को विजयदशमी के तौर पर मनाया जाता है. देश भर में दस (10) सिर वाले रावण का पुतला दहन किया जाता है।*

*लंकापति रावण दहन के अलावा इसी दिन देवी दुर्गा ने राक्षस महिषासुर का वध भी किया था, दुर्गा सप्तशती में मांँ दुर्गा और महिषासुर के वध की कथा बताई गई है, मांँ दुर्गा ने आश्विन शुक्ल की दशमी तिथि को महिषासुर का वध किया था. इसके बाद सभी देवताओं ने मांँ दुर्गा की विजय पर उनकी पूजा अर्चना की थी. इसलिए इस तिथि को विजयदशमी या विजया दशमी भी कहते हैं।*

*शक्ति और मर्यादा का प्रतीक चूंकि दशहरा के दिन मांँ दुर्गा ने महिषासुर का वध किया और श्रीराम जी ने रावण पर जीत हासिल की इसलिए इस दिन को बुराई पर अच्छाई की जीत का पर्व मानते हैं। श्रीराम मर्यादा और आदर्श के प्रतीक हैं तो वहीं मांँ दुर्गा शक्ति का प्रतीक हैं। इस पर्व से लोगों को शक्ति के साथ मर्यादित, धर्मनिष्ठ और उच्च आदर्शों के साथ जीवन जीने की सीख मिलती है।*

*भारतीय सनातन धर्म की परंपरा में पर्वों, नदियों और तीर्थ स्थलों का कफी महत्व है। पर्व गन्ने के गाठों की तरह अपने अगले और पिछले भाग के बीच पुल का दायित्व निभाते हैं। पूर्व से रस ग्रहण करके आगे रहने वाले को प्रगति प्रदान करने का न केवल प्रशिक्षण देते हैं बल्कि इस दायित्व को निभाने के लिए खुद अपने पास शक्ति को संचित भी रखते हैं।*

*पर्व, अखंड काल धारा के अटूट प्रवाह का व परम पवित्र महत्ता संवलित तथा लोक शास्त्र द्वारा स्वीकृत बिंदु हैं, जिनके साथ प्राकृतिक, मानवीय, सांस्कृतिक, पर्यावरणीय एवं नैतिक परंपरा का ऐतिहासिक संबंध होता है। वह प्रत्येक मनुष्य को जल, थल, पर्वत, वृक्ष, जड़, चेतन के मध्य आत्मीयता स्थापित करता है। यही कारण है कि सभी तीर्थ नदियों के किनारे पर स्थित हैं। इससे सिद्ध होता है कि तीर्थों और पर्वों का परस्पर घनिष्ट संबंध है।*

*‘स्वर्गादपि गरीयसी‘ भारत भूमि में प्रत्येक आश्विन मास के शुक्ल पक्षीय दशमी तिथि को मनाया जाने वाला विजय दशमी का पर्व यहांँ के मुख्य पर्वों में से सर्वश्रेष्ठ है। श्री वाल्मीकीय रामायण, श्री रामचरितमानस, कालिका उप पुराण एवं अन्य अनेक धार्मिक ग्रंथों के अनुसार भारतीय जनता के प्राण, मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीरामचन्द्र जी के साथ इस पर्व का गहरा संबंध है। विद्वानों के अनुसार श्रीराम ने अपनी विजय यात्रा इसी तिथि को आरंभ की थी। इसलिए विजय यात्रा के लिए यह पर्व शास्त्र सम्मत माना जाता है।*

*‘‘आश्विनस्य सिते पक्षे दशम्यां तारकोदये‘।*
*स कालो विजयो नाम सर्वकार्यार्थ साधकः।।*

*भारतीय काल गणना के अनुसार इसका आरंभ आज से लगभग नौ लाख वर्ष पूर्व सिद्ध होता है। ज्योतिष के सिद्धांतो के अनुसार इस समय में ऐसे ग्रह नक्षत्रों का संयोग होता है, जिससे विजय यात्रा का श्रीगणेश करने पर यात्री को जय की प्राप्ति होती है। इसलिए सालों से इस तिथि में राजा लोग अपने राज्यों की सीमा का अतिक्रमण करते रहे हैं। यूं भी भगवान श्रीराम की विजय यात्रा के स्मरणार्थ मनाया जाने वाला विजय दशमी का पर्व आज भी अपने अनेक सदा रहने वाले मूल्यों के कारण प्रासंगिक है। इनसे मानव जाति को व्यापक लाभ की प्राप्ति तो होती ही है, साथ ही पूरा विश्व अनंत काल तक प्रेरणा लेता रहेगा। श्रीराम द्वारा रावण पर विजय दैवी एवं मानवीय गुणों- सत्य, नैतिकता और सदाचार की राक्षसी एवं अमानवीय दुर्गुणों- अनैतिकता, असत्य, दम्भ, अहंकार और दुराचार पर विजय है। यह पर्व न्याय की जीत और नारी जाति के अपमानकर्ताओं का संहारक है।*
*भक्तों के प्रति प्रेम, ऋषि-मुनियों एवं देवी-देवताओं के प्रति पूज्य भाव, जटायु तुल्य पक्षियों के प्रति आदर, शबरी और केवट जैसे उत्तम विचारों वाले लोगों के प्रति स्नेह, वनवासियों-उपेक्षितों के लिए प्रेम, अंगद, हनुमान, जाम्बवान और सुग्रीव जैसे सेवकों के प्रति प्रीति, नदियों के प्रति सम्मान और वनों-पर्वतों के प्रति कृतार्थता, त्रिजटा, लंकिनी एवं ऐसे अनेक राक्षसगण जो भगवान का सतत ध्यान करते थे, उन्हें मुक्ति प्रदान करने के भाव से चिर अनंत काल से प्रासंगिकता के द्वारा यह पर्व धन्य करता रहा है और करता रहेगा। क्योंकि इस तिथि की यह विजय यात्रा मात्र लंका या रावण पर की जाने वाली राजनीतिक जयमात्र नहीं है, बल्कि सनातन धर्म एवं मानवीय मूल्यों की संरक्षणात्मक पद्धति का मूलभित्यात्मक शिलान्यास है।*

*इस विजय के बाद प्राप्त किसी भी राज्य पर श्रीराम ने कभी स्वयं आधिपत्य नहीं रखा। उन्होंने रावण का राज्य विभीषण एवं बाली का राज्य उनके भ्राता सुग्रीव को लौटा दिया। यह यात्रा दुख में धैर्य धारण करने एवं सुख के समय कभी न इतराने के उपदेशों के साथ शुरू हुई थी। यह भगवान जानकीनाथ श्रीराम के पदचिह्नों पर चलने हेतु कृतसंकल्प लेने और कृतप्रयत्न होने का शुभ मुहूर्त है। दशहरा के नाम से लोक प्रख्यात यह बेला अकारण तथा निरपराध लोगों को सतत रुलाने वाले रावण के अहंकार रूपात्मक दस सिरों और पौरुष की दुरूपयोगिनी बीस भुजाओं के विनाश की प्रतीक है।*
*विजय दशमी की पूर्वपीठिका का आरंभ परमपावनी जगजननी जगदम्बिका की आराधनात्मक आश्विन शुल्क पक्ष की प्रतिपदा से ही हो जाता है, जिसे शारदीय नवरात्र भी कहते हैं। नौ दिनों तक आराधना, अर्चना तथा नियमित सेवादि व्रतों से जन्य शक्ति-संचय का मानो उद्देश्य ही यही होता है कि उस शक्ति की समुचित, संचित राशि के द्वारा सुमति से कुमति, मैत्री द्वारा निर्दयता और रिपुता (वैर भाव) को सरलता से जीता जा सके। एक ओर बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश का जनसम्मर्द भगवती की सपर्या में लीन होता है, नृत्य की झंकार, मृंदगों के ताल, भक्तों के मन्त्रोच्चारण एवं हवन का सुगंधिपूर्ण धूम- ये परिवेश को सात्विकता के रंग में रंग देते हैं। वहीं लोक हित के लिए विष पीकर अपने कंठ को नीला कर लेने वाले भगवान शिव के रूप में नीलकंठ का दशहरे के पर्व पर दर्शन करने से सभी लोग पुण्य की अनुभूति करते हैं।

 ॥ हम श्रीराम जी के श्रीराम जी हमारे हैंI ॥ 

 सियाराम जी की जय 

*भूपेश कुड़ियाल ( श्रीरामचरणानुरागी)*

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