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सुख हो या दु:ख ईश्वर का सुमिरन नहीं छोड़ना चाहिए : आचार्य अनिल देव – सरनौल गांव में श्रीमद्भभागवत महापुराण का आयोजन ।

Pahado Ki Goonj

सुख हो या दु:ख ईश्वर का सुमिरन नहीं छोड़ना चाहिए : आचार्य अनिल देव
– दिन-रात की तरह हैं सुख और दुख, आते हैं और चले जाते हैं
– नौगांव ब्लॉक के दूरस्थ गांव सरनौल में श्रीमद्भभागवत महापुराण का आयोजन

बड़कोट।    (मदनपैन्यूली)                                   नौगांव ब्लॉक के अंतिम गांव सरनौल मे आयोजित सात दिवसीय श्रीमद्भभागवत महापुराण यज्ञ में कथा का वाचन करते हुए कथा वक्ता आचार्य अनिल देव सेमवाल ने कहा कि मनुष्य को दुख हो या सुख प्रत्येक दशा में सदैव ईश्वर का सुमिरन करना चाहिए। सुख और दु:ख दिन-रात की तरह आते हैं और जाते हैं। कोई भी स्थाई नही है। मुश्किल घड़ी में भी ईश्वर का सुमिरन करना नही छोड़ना चाहिए।
सरनौल गांव में रेणुका मंदिर प्रांगण में इन दिनों श्रीमद्भभागवत महापुराण यज्ञ का आयोजन हो रहा है। आचार्य अनिल देव ने महाभारत का प्रसंग सुनाते हुऐ कहा है कि माता कुंती को जब भगवान श्री कृष्ण ने बरदान मांगने को कह था तब माता कुंती ने दु:ख मांगा था। जिस पर श्री कृष्ण ने सवाल किया था कि दुनिया में ऐसा कोई नहीं होगा जो अपने लिए दु:ख मांगता हो। तब माता कुंती ने कहा कि जब-जब मुझे दु:ख की प्राप्ति हुई है तब-तब मुझे ईश्वर के दर्शन हुए हैं । इसलिए मैं चाहती हूं कि मुझे दु:ख मिलता रहे। इसलिए कहते हैं। मनुष्य को जितना लाभ होगा उतना ही ज्यादा लोभ भी बढ़ता जाता है । यहां भगवान पर लागू हो चुका है। उन्होंने कहा कि हर युग मे मनुष्य की अलग अलग उम्र थी । सतयुग में मनुष्य की आयु एक लाख वर्ष थी। त्रेतायुग युग में एक सुन्या हट गई और दस हजार रह गई। द्वापर युग में एक हजार रह गई और कलयुग में महज सौ वर्ष मनुष्य की आयु रह गई है। इसमें से 50 वर्ष रात्रि यानी सोने में बीत जाते हैं और 25 वर्ष तक मनुष्य की उम्र अपनी पढ़ाई लिखाई मे बीत जाती है। महज 25 वर्ष रह जाते हैं जिनमें वह अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करने में लगा रहता है । इस समय में से ही भागवत नाम सुमिरन के लिए समय आवश्यक निकाले।
इस मौके पर कथा आयोजक विनीता राणा, अरविंद सिंह राणा, रेणुका मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष विजेंद्र सिंह राणा, उपाध्यक्ष राजेंद्र सेमवाल, महासचिव रणवीर सिंह राणा, प्रबंधक जगमोहन सिंह राणा, ग्राम प्रधान सरिता चौहान, बलबीर सिंह चौहान ,श्याम सिंह चौहान, हरिकृष्ण सेमवाल, केशवानंद सेमवाल, नीलमबर दत्त सेमवाल, कमलेश्वर सेमवाल, आचार्य मनोज सेमवाल, गणेश सेमवाल सहित बड़ी संख्या में ग्रामीण उपस्थित रहे।

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