पौराणिक मान्यताओं के अनुसार सृष्ठि के आरंभ से ही त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश उसकी रक्षा करते आ रहे हैं। जब सावन के प्रारंभ होने से ठीक पहले विष्णु जी देवशयनी एकादशी पर योग निद्रा में चले जाते हैं, ओर सृष्टि के पालन की सारी ज़िम्मेदारियों से मुक्त होकर पाताललोक में विश्राम करने के लिए चले जाते हैं। तब उनका सारा कार्यभार महादेव भोले शंकर संभाल लेते हैं। सावन का प्रारंभ होते ही भगवान शिव जाग्रत हो जाते हैं।और माता पार्वती के साथ पृथ्वी लोक का सारा कार्यभार संभाल लेते हैं। इसलिए सावन का महीना शिव के लिए बेहद खास होता है। इसी लिए इस माह में उनकी पूजा का महत्व भी बढ़ जाता है।
प्रचलित है कई कथायें
सावन के महीने में भगवान शिव जी ने समुद्र मंथन से निकला विष पीकर सृष्टि की रक्षा की थी। यहीं कारण है कि इस महीने को शिव जी का प्रिय महीना माना जाता है। इसी के चलते ही सावन का महीना शिव जी की पूजा के लिए शुभ माना जाता है। साथ ही सावन का महीना शिव जी का प्रिय होने की आैर भी वजह हैं। जैसे इस महीने में सबसे ज्यादा वर्षा होती है और अधिक वर्षा होने से विष से तप्त हुर्इ शिवजी की देह को ठंडक प्राप्त होती है। इसके अलावा आैर भी कर्इ पौराणिक कथाआें में ये जिक्र आता है कि सावन में शिव जी कामहत्व क्यूं है आैर उन्हें यह माह इतना प्रिय क्यों हैं। कहते हैं कि अपनी विष तप्त देह से जुड़ी कहानियों का जिक्र करते हुए भगवान शंकर ने स्वयं सनतकुमारों को सावन महीने की महिमा बताईऔर कहा कि उनके तीनों नेत्रों में से सूर्य दाहिने में, बांए में चन्द्र और मध्य नेत्र में अग्नि है।
पार्वती से जुड़ी कथा
इसी तरह सावन महीने के बारे में सबसे प्रचलित पौराणिक कथा के अनुसार बताते हैं कि देवी सती ने पिता दक्ष के घर योगशक्ति से शरीर त्यागने से पूर्व शिव जी को हर जन्म में पति के रूप में पाने का प्रण किया था। इसीलिए उन्होंने अपने दूसरे जन्म में पार्वती के रूप में भगवान शिव जी की पूजा की और सावन के महीने में कठोर तप किया आैर उन्हें शिवजी की पत्नी बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। तभी से ये महीना शिव जी का प्रिय हो गया। यही कारण है कि अन्य पौराणिक कथा के अनुसार कहा जाता है कि सावन से प्रारंभ कर सोलह सोमवार के व्रत करने से कन्याओं को सुंदर पति मिलते हैं तथा पुरुषों को सुंदर पत्नियां मिलती हैं।
नक्षत्रोंऔर चंद्रमा का महत्व
इसके अलावा सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि हिन्दू वर्ष में महीनों के नाम नक्षत्रों के आधार पर रखे गये हैं। जैसे पहला माह चैत्र होता है, जो चित्रा नक्षत्र से संबंधित है। इसी तरह सावन महीना श्रवण नक्षत्र से संबंधित है। श्रवण नक्षत्र का स्वामी चन्द्र होता है और चन्द्रमा शंकर जी के मस्तक पर सुशोभित है। जब सूर्य कर्क राशि में प्रवेश करता है, तब सावन महीना प्रारम्भ होता है। गर्म सूर्य पर चन्द्रमा की ठण्डक होती है, इसलिए सूर्य के कर्क राशि में आने से वर्षा होती है। जिससे विष को ग्रहण करने वाले महादेव को ठण्डक मिलती है ये प्रमुख कारण है कि शिवजी को सावन का महीना अत्यंत प्रिय है।