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टिहरी गढ़वाल का राजा वास्तव में भगवान बदरीनाथ के अवतार है, टिहरी नरेश की गाथा… मेरी गंगा होली, त मैंमु औली
देवभूमि उत्तराखंड का वो प्रतापी सम्राट, जिसके लिए मां गंगा ने अपनी धारा बदल दी थी
Likhwargaon BhaDura men 12 vrs tak raha raja इस गावं के बीच पैन्यूली राजा के दीवान के बड़े मकान पर नाबालिक राजा को सुरक्षित बालिक होने तक रखे गये. यह धारोहर मरोमत के आभाव में टूटने का इंतज़ार कर रही है मरोमत 1करोड़ मे होसकती है , सांसद से thdc, ongc, श्री बद्रीनाथ केदारनाथ मन्दिर समिति से मरोमत करने की गुजारिश है यह सम्पति मोटर सड़क पर होने से केदारनाथ जाने वाले यात्रियों के रुकने के उपयोग के लिये लाई जासकती है.2x100x40=8000वर्ग फिट एरिया के इस ऐतिहासिक धरोहर को चिरस्थाई रखना इसलिए जरूरी है कि इस माकन में बोलन्दा बद्रीनाथ राजा की हिफाज़त का एकमात्र स्थान रहा है, इसके बाद ही राजा ने कुंभ मे कहा था “सच्ची होली मेरी गंगा माई मेरे पास चांदी घाट आयेगी “
उत्तराखंड में एक राजा हुए थे पृथ्वीपति शाह। उनके पुत्र का नाम था मेदिनीशाह। बताया जाता है
श्रीमती माला राज्य लक्चमी श्रीमान महाराजा मनुजेंद्र शाह
कि मेदिनीशाह 1667 के आसपास राजा बने थे। माना जाता है कि मेदिनीशाह की औरंगजेब से मित्रता हो गयी थी और इसलिए उन्हें अपनी दादी रानी कर्णावती या पिता पृथ्वीपति शाह की तरह मुगलों से जंग नहीं लड़नी पड़ी थी। मेदिनीशाह को इसलिए याद किया जाता है क्योंकि कहा जाता है कि एक बार उनके लिये गंगा नदी ने भी अपनी धारा बदल दी थी। इसमें कितनी सच्चाई है कहा नहीं जा सकता। गढ़वाल के राजा को तब बदरीनाथ का अवतार भी माना जाता था और हो सकता हो कि राजा ने लोगों के सामने खुद को ‘भगवान’ साबित करने और अपने खिलाफ किसी भी तरह के विद्रोह को दबाने के लिये के लिये ये किस्सा गढ़कर फैलाया हो। ये भी हो सकता है कि राजा के पास तब ऐसे कुछ कुशल कारीगर रहे हों जिन्होंने रातों रात गंगा की धारा बदल दी हो
वास्तव में तब क्या हुआ था इसकी सही जानकारी किसी को नहीं है।जिसके बारे में कहा जाता है कि मेदिनीशाह के राज्यकाल के दौरान इस तरह की घटना घटी थी। हरिद्वार में जब कुंभ मेला लगता था तो गढ़वाल का राजा हरी जी के कुंड में सबसे पहले स्नान करता था। उसके बाद ही बाकी राजाओं का नंबर आता था। जिस साल की ये घटना हुई, उस साल कहा जाता है कि कई राजा हरिद्वार पहुंचे थे।
उन सभी ने सभा करके तय किया कि पर्व दिन पर सबसे पहले गढ़वाल का राजा स्नान नहीं करेगा। सभी राजा इस पर सहमत हो गये। यहां तक कि गढ़वाल के राजा को किसी तरह की जबर्दस्ती करने पर जंग के लिये तैयार रहने की चेतावनी भी दी गयी। बाकी सभी राजा एकजुट थे और गढ़वाल का राजा अलग थलग पड़ गया। मेदिनीशाह ने कहा कि ये पुण्य क्षेत्र है, यहां कुंभ मेला जैसा महापर्व का आयोजन हो रहा है इसलिए रक्तपात सही नहीं है। दूसरे राजा ही पहले स्नान कर सकते
उन्होंने अन्य राजाओं के पास जो संदेश भेजा था उसमें आखिरी पंक्ति ये भी जोड़ी थी कि, यदि वास्तव में गंगा मेरी है और उसे मेरा मान सम्मान रखना होगा तो वो स्वयं मेरे पास आएगी। बाकी राजा इस पंक्ति का अर्थ नहीं समझ पाये। वो अगले दिन गढ़वाल के राजा से पहले कुंड में स्नान करने की तैयारियों में जुट गये। कहा जाता है कि गढ़वाल के राजा ने चंडी देवी के नीचे स्थित मैदान पर अपना डेरा डाला और मां गंगा की पूजा में लीन हो गये। बाकी राजा सुबह हरि जी के कुंड यानि हरि की पैड़ी में स्नान के लिये पहुंचे लेकिन वहां जाकर देखते हैं कि पानी ही नहीं है। मछलियां तड़प रही थी। गंगा ने अपना मार्ग बदल दिया था। वो गढ़वाल के राजा के डेरे के पास से बह रही थी। राजा मेदिनीशाह ने गंगा पूजन करने के बाद स्नान किया। जब अन्य राजाओं को पता चला तो उन्हें अपनी गलती का अहसास हुआ। उन्हें भी लगा कि गढ़वाल का राजा वास्तव में भगवान बदरीनाथ के अवतार है ।
श्रीबद्रीनाथ के बोलंदा स्वरूप की मान्यता को जारी रखते हुए आज भी बसन्त पंचमी के पावन अवसर पर श्री बद्रीनाथ के कपाठ खुलने की तिथि महाराज के श्री मुख से घोषित कीजाती है