भारतीय संविधान पर संसद के दोंनो सदनों में चर्चा हो चुकी हैं, इस चर्चा से क्या हुआ व देशवासीयो को उससे क्या प्राप्त हुआ इस पर मैं प्रकाशन के लिए आपको साइंटिफिक-एनालिसिस भेज रहा हूं | यह विज्ञान के तर्को पर आधारित हैं इसलिए कटु सत्य ही होगा | इसमें भूतकाल, वर्तमान के साथ भविष्य भी होगा इसलिए किसी स्वार्थ या लालच में आकर में परिवर्तित हो जाऊ ऐसी कोई भी सम्भावनाए रहेगी ही नहीं. …..
….. संविधान चर्चा की जगह भविष्य के लिए क्या व क्यों जरूरी हैं वो इसके पहले वाले साइंटिफिक-एनालिसिस में तर्क के साथ प्रस्तुत कर चुका हूं | आप उसे भी ले सकते हैं। मेरे साइंटिफिक-एनालिसिस हर रोज देश में किसी न किसी मीडिया प्लेटफार्म पर प्रकाशित होते रहते | इनकी छोटी सी डिटेल व मेरा व्यक्तिगत रिकार्ड भी मेरे आधिकारिक फेसबुक पेज (http://www.facebook.com/ shailendrakumarbirani) पर मौजूद है |
प्रकाशन के बाद मुझे उसकी सॉफ्टकॉपी व्हाट्सअप पर अवश्य भेजे ताकि आगे कही प्रतिक्रिया देने में मुझे ध्यान रहे | एक बार आपका नम्बर सुरक्षित हो जाने पर राष्ट्रपति भवन से आने वाली जानकारी को मैं तुरन्त आपसे साझा कर पाऊंगा |
26 नवम्बर 2024 के संविधान दिवस पर मैंने ही साइंटिफिक-एनालिसिस के आधार पर बताया था कि राष्ट्रपति व मुख्य न्यायाधीश के मध्य संवैधानिक दरार पड गई हैं | यह मेरे नाम से ही राष्ट्रपति-सचिवालय में स्वीकार हो गई | इसे राष्ट्रपति के संज्ञान में ला दिया गया हैं। राष्ट्रपति इस पर जो फैसला लेगी वो मुझे सुचित करा जायेगा |
धन्यवाद
शैलेन्द्र कुमार बिराणी
युवा वैज्ञानिक
मोबाइल व व्हाट्सअप नम्बर 7801946252
350 वर्ष से पुरानी आधुनिक सुई आधारित डिस्पोजल शल्य चिकित्सा विज्ञान (सर्जिकल) में भारत को अग्रणी बनाने वाला
व्यक्तिगत आधार पर बिना किसी ऐजेंट के भी पेटेंट हासिल करने वाला मध्यप्रदेश इतिहास का प्रथम व्यक्ति
आविष्कार के लिए व्यक्तिगत रूप से संयुक्त राष्ट्र संघ, अन्तर्राष्ट्रीय रेड क्रॉस सोसायटी, द ग्लोबल फण्ड, अमेरिका के राष्ट्रपति, द क्लिंटन फंड, बिल एण्ड मैलेना गेट्स फाउंडेशन इत्यादि-इत्यादि से प्रतिक्रिया व बधाई प्राप्त करने वाला
साइंटिफिक-एनालिसिस
संविधान पर चर्चा : बन्दर क्या जाने अदरक का स्वाद!
भारत के अन्दर संविधान को लागू हुये 75 वर्ष पूरे हो गये | संविधान दिवस 26 नवम्बर 2024 को वन नेशन वन संविधान के अन्दर राष्ट्रीय रूप से दो अलग-अलग कार्यक्रम बनाकर राष्ट्रपति व मुख्य न्यायाधीश के मध्य संवैधानिक दरार को पैदा की गई | अब यह पुरा मामला राष्ट्रपति के संज्ञान में ला दिया गया हैं। जिस पर उनका फैसला आना बाकी हैं कि संविधान की मर्यादा उनसे टूटी या मुख्य न्यायाधीश ने तोडी | इसके साथ दोषी के लिए क्या सजा तय होती हैं यह देखने वाली बात हैं जो संविधान के प्रति निष्ठा को उजागर करेगी |
इसी बिच संसद के दोनों सदन राज्यसभा व लोकसभा के अन्दर संविधान के अनुसार देश की असली मालिक आम जनता के मुंह के निवाले पर भी वसूले गये टैक्स से प्रति घंटे करीबन डेढ करोड खर्च करके चर्चा कराई गई | पहले ही टैक्स की परिभाषा को खींच-खींच कर हिस्सेदारी की परिभाषा में अतिक्रमण कराया जा चुका है। इसलिए पैसा खर्च हुआ या पानी की तरह बहा दिया गया, उसमें कही पर भी रूकावट का रतिभर भी व्यवधान नहीं आया | संविधान कहता हैं देश में आम नागरिकों की भारत-सरकार बनती हैं परन्तु पुरी बहस में बीजेपी की सरकार, कांग्रेस की सरकार, फलाना पार्टी की सरकार ही गुंजायमान रहे | दोनों सदनों के अध्यक्षों द्वारा इस पर चुप्पी से देश शंशय में आ गया कि उनकी सरकार का राजनैतिक दलों ने अपहरण कर लिया और उन्हे पता तक नहीं चला |
इस बहस में आगे व्यक्तिगत नाम आगे जोडकर सरकार का सम्बोधन हुआ परन्तु किसी भी अध्यक्ष ने उसे असंवैधानिक मानना तो दूर रिकार्ड से भी नहीं हटाया जबकि सरकार का अपहरण करना सबसे बड़ा राष्ट्रदोह हैं। शायद राष्ट्रपति ने जिस संविधान की शपथ दिलाई उसे उन्हें पढने को दिया ही नहीं लगता हैं | प्रधानमंत्री के प्रमुख वाली कार्यपालिका को अधिकांश लोग सरकार-सरकार कह रहे थे और उन्हें टेलिविजन पर देख रहीं नई पीढी अपने सिर खुंजा रही थी कि उनके शिक्षा के शब्दकोष में कार्यपालिका को अंग्रेजी में एक्ज्यूकेटिव लिखा हुआ है शायद संसद की आलिशान व विशाल लाइब्रेरी में गवर्मेंट लिख रखा होगा और उनकी किताबों में गलत छप गया दिखता हैं |
संसद की कैंटीन में रखे एक से बढकर एक पकवान व उनके सस्ते में उपलब्ध होने की छाप भाषणों के दौरान मौजूद कही जनप्रतिनिधीयों के चेहरे पर नजर आ रही थी | इसी बिच आरक्षण के नाम पर लोगों को धर्म के आधार पर बांटने की बात वो सभी लोग कर रहे थे जो संसद से करे गये संविधान संसोधनों को हमारी सरकार, हमारी पार्टी ने करा कह-कहकर क्रैडिट लूट रहे थे और संसद को ही टुकड़े-टुकड़े में बांट रहे थे | यह आरक्षण पर एक-दूसरे पर बंदरबाट करने का आरोप लगा रहे थे | संसद में एक बार पास हो चुके कानून व संविधान संसोधन संसद की बौद्धिक सम्पदा कहलाते हैं फिर मैं-मैं तू-तू करके लूट खसोट पर दोनों अध्यक्षों का चुप रहना या मुस्कराना चोर की दाढी में तिनका होने का शंक पैदा करता हैं | कानून बनाने व संविधान संसोधन के लिए मोटा तगड़ा मेहनताना लेने के साथ आलिशान सुख-सुविधाओं का भोग करने वाले जनप्रतिनिधी यानि जनता के नौकर स्वामीभक्ति व राष्ट्रभक्ति से मुकर चुके हुए नजर आये |
जनता के पैसों व उनसे मिले अधिकारों से अपना व अपने परिवार का पेट पालने वाले जनप्रतिनिधी यानि जनता के नौकर फुदक-फुदक करके यह कहते नजर आये कि हमने कानून बनाकर देश की मालिक जनता को अपनी जेब से यह दिया, वो दिया | इस पूरी चर्चा का नब्बे फिसदी से ज्यादा हिस्सा भूतकाल को गाने, बजाने व जो इन्हें संविधान व देश की जिम्मेदारी सौंप कर चले गये उन्हें कौसने, बुरा-भला व दोषी बताने में लगाया | वर्तमान पर नौ फिसदी से ज्यादा और भविष्य पर एक फिसदी से भी कम चर्चा हुई | भूतकाल को ला-लाकर उस पर अपनी-अपनी बुद्धि का ज्ञान बांटने से लोगों को दिल व दिमाग से लग रहा था कि कहीं उन्होंने बन्दरों के हाथ में उस्तरा तो नहीं पकड़ा दिया लगता हैं। हर वक्ता के बोलने के बिच में शौरगूल से पुष्टि हो रही थी कि बन्दर नकलची ही होते हैं |
संविधान की पुरी चर्चा के अन्दर संवैधानिक ढांचे, एक सौ छ संविधान संसोधनों को करके मूल संविधान की किताब में सभी के समन्वय पर, हजारों कानून बनाने व हटाने से 75 सालों में समय के साथ जो बिखराव हुआ उसे सही करने पर कोई योजना सामने नहीं आई | आधे लोग शेष आधे लोगों को संविधान बर्बाद करने का दोषी बता रहे थे और शेष आधे लोग बचे लोगों को संविधान बर्बाद करने का दोषी बता रहे थे कुल मिलाकर सभी छाती ठोककर देशवासी ही नहीं पुरी दुनिया को बता रहे थे कि एक सौ चालीस करोड लोगों के देश में हम गिनती के लोग ही हैं जिन्होंने भारत के संविधान को बर्बाद करने का काम किया | इस चर्चा में करोड़ों रुपये खर्च होने के बाद शायद यही सारांश निकला कि नाचे कूदे बान्दरी खीर खाये फकीर
शैलेन्द्र कुमार बिराणी
युवा व वैज्ञानिक
देश प्रेम के लिए देश वासियों को चिन्तन करना चाहिए
साइंटिफिक-एनालिसिस
75 वर्ष पुराने संविधान पर चर्चा नहीं, व्यवस्थित करने की जरूरत
भारत का संविधान कोई बच्चा व ईंसान नहीं की उसका समय के साथ हेप्पी बर्थ डे, सिल्वर जुमली, गोल्डन जुमली बनाया जाये | यह भारतीय लोकतन्त्र में आम नागरिकों की सरकार कैसे कार्य करेगी उसको निर्धारित करे गये नियम व उस सरकार के मूलभूत मौलिक आधार क्या हैं जिन्हें स्थिर बनाये रखते हुए उसके इर्द-गिर्द सारी प्रक्रियाओं को एक श्रृंखलाबद्ध करने का लिपिबद्ध संग्रह हैं | यह लिपिबद्ध संग्रह किताब के रूप में संकलित हैं ताकि लिखे हुए अक्षर कटे, फटे, गले व मिटे नहीं |
इस किताब को झुककर, दण्डवत प्रणाम करना व नमस्कार करना विज्ञान की तकनीकी कसौटी पर उसके प्रति आदर व सम्मान प्रकट करना हैं परन्तु वह जीवित प्राणी होनी चाहिए | संविधान की संकलित किताब को पढकर आम लोगों व नई पीढी को उसके भावार्थ को समझाना एवं उनके एवं भारत-सरकार किस तरह सुरक्षित हैं यह विश्वास दिलाना ही विज्ञान की तकनीकी कसौटी पर उसके प्रति आदर व सम्मान प्रकट करना होता हैं |
संविधान की किताब को बार-बार झुककर, दण्डवत प्रणाम करके, शरीर के अंगोंं पर उसे लगाकर अभिव्यक्ति करने की अति करना राजनीति की भाषा में साम नीति के सिद्धांत को चरितार्थ करना होता हैं व मानवीय मूल्यों एवं नैतिकता की कसौटी पर आडम्बर कहलाता हैं। साम नीति अर्थात् व्यक्ति विशेष को बड़ा, ताकतवर, गुणी, सर्वक्षेष्ठ बताकर उसकी महिमामंडन करते हुए अपना काम निकाल लेना होता हैं | संविधान की किताब को बार-बार दिखाकर अपनी बात कहने की अति भी आडम्बर के दायरे में आती हैं लेकिन किताब में लिखे नियम को बोलते हुए किसी घटना को व्याखित करना पूर्णतया सही होता हैं।
किताब को लेकर बार-बार आडम्बर करने से लोगों के दिल व दिमाग पर बुरा असर पड़ता हैं वह उसमें लिखी बातों को आत्मसाध नहीं कर पाती व समय के साथ भूल जाती हैं और उसे पूजने, जमीन पर न रखने, टीका तिलक करने, महिमामंडन के गीत गान करने के अंधविश्वास में जकड़ जाती हैं और अपने तन-मन-धन को समर्पित एवं न्यौछावर करके जीवन को दुख, परेशानियों, पीडाओं के मार्ग पर धकेल कर व्यर्थ ही गवा देती हैं |
भारत के संविधान को 26 नवम्बर 2049 को संविधान सभा ने पास किया जो देश में 26 जनवरी 1950 को लागू किया गया था | इस पर चर्चा करने से उसमें खूबियों के साथ समय के गतिशील बढ़ते चक्र के अनुरूप जो कम्मीयां उत्पन्न हो गई वो दिखाई देने लगती हैं परन्तु चर्चा समय के तिनों काल भूत, वर्तमान व भविष्य पर बराबर-बराबर दृष्टिकोण डालती हो न कि अपनी इज्जत बनाने के लिए सामने वाले की ईज्जत बिगाडने के नई राजनैतिक सिद्धांत पर आधारित हो | यह भी सिर्फ संविधान संसोधन तक जाकर रूक जाती हैं |
यदि संसोधन न करो तो वह एक ही समय पर स्थिर होकर रूक जायेगी जिसका परिणाम हमने कई धर्मों एवं धार्मिक सभ्यताओं को मिटते व क्षीण होते देखा हैं | यदि संविधान का बार-बार संसोधन कर अति करी गई तो वह बिखर कर खत्म हो जायेगा | इसे साधारण भाषा में समझे तो संविधान की किताब जिसमें सभी कागज एक जिल्ड के रूप में बंधे हैं उनमें संसोधन के नाम पर नये-नये कागज ठूसने पर वो किताब को फुलाकर बिखेर देगी क्योंकि वो जिल्ड के अन्दर सभी कागजों के साथ संकलित नहीं हो पाते हैं।
भारत के संविधान में 106 संशोधन हो चुके हैं परन्तु यह सभी संविधान की किताब में दूसरे कानूनों के साथ समाहित होकर एक साथ जिल्ड में नहीं बंधे हैं इस कारण सबकुछ उल्टा पुल्टा हो रहा हैं | राष्ट्रपति व मुख्य न्यायाधीश अलग-अलग संविधान दिवस बनाते हैं जबकि संविधान एक हैं, संविधान की शपथ दिलाने वाले मुख्य न्यायाधीश गणतन्त्र दिवस पर निचे बैठते हैं और उनसे शपथ लेने वाले राष्ट्रपति और उनसे आगे शपथ लेने वाले उपराष्ट्रपति, लोकसभा अध्यक्ष, प्रधानमंत्री मंच के ऊपर बैठते हैं, संविधान की शपथ लिया मुख्यमंत्री उसी संविधान के कानून से जेल में बन्द कर दिया जाता हैं, न्यायपालिका का प्रमुख रहा व्यक्ति कार्यपालिका व विधायिका में निचले पद पर बैठ जाता हैं, मुख्यमंत्री रहा व्यक्ति अपने निचे काम कर चुके व्यक्ति के निचे उपमुख्यमंत्री बन जाता हैं |
इसलिए साइंटिफिक-एनालिसिस की माने तो संविधान पर चर्चा से पहले उसे व्यवस्थित करने पर तुरन्त काम करना चाहिए, जो हैं संविधान की किताब की जिल्ड को खोलकर सभी कानूनों व नियमों को एक साथ संकलित करना | यह राष्ट्रपति व उच्चतम न्यायालय की संविधान पीठ के अधीन ही सम्भव है क्योंकि इन दोनों को ही संविधान संरक्षक का दर्जा प्राप्त हैं | सबसे महत्तवपूर्ण बात यह काम संवैधानिक एवं सरकारी पद पर कार्य कर चुके व्यक्ति और कर रहे व्यक्ति नहीं कर सकते हैं |
संविधान का पहली बार बना ग्राफिक्स रूप राष्ट्रपति के पास प्रमाण सहित कभी का पहुंच चुका हैं | वर्तमान का कटु सत्य यह हैं कि राष्ट्रपति और मुख्य न्यायाधीश में संविधान दिवस को लेकर संवैधानिक मर्यादा की दरार पड चुकी हैं इसलिए रक्षक ही भक्षक बन रहे हैं व अपने संवैधानिक कामों को चौकीदार भेजकर पूरा कर रहे हैं तो चर्चा के बाद बिखरे संविधान के नियमों के कागजों में नास्ता करने के अलावा हासिल भी क्या हो सकता हैं |
शैलेन्द्र कुमार बिराणी
युवा वैज्ञानिक
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