अभिवादन से आयु, विद्या, यश और बल की प्राप्ति होती है ।
मुकुन्दानन्द ब्रह्मचारी
शास्त्रों में बताया गया है कि जब कोई बड़ा हमारे सामने आ जाता है तब हमारे प्राण ऊपर की ओर जाते हैं और अगर हम बैठे ही रह जाएं तो हमारे प्राण हमारे हृदय में जाकर ठोकर मारते हैं। और ठोकर मारने से अशुभ हो जाता है इसलिए हमें अपने बड़ों के सामने आने पर तत्काल पहले तो उत्थान करना चाहिए और फिर नमन करना चाहिए। हमारे प्राण उत्क्रमण कर जाते हैं। जैसे ही छोटे के सामने बड़ा पड़ जाता है और अगर वह अब उत्थान करके नमन करता है उसके प्राण अपने स्थान पर आ जाते हैं नहीं तो प्राणों की क्षति होती है । आंशिक रूप से ही सही लेकिन होती है ।इसलिए भारतीय संस्कृति में प्रणाम, नमन, वंदन इसका बहुत विचार किया गया है। अपने आप को छोटा दिखाना कि मैं छोटा हूं ऐसा सिद्ध करने का मतलब है आप बड़े हैं। दूसरों को बड़प्पन देना । दूसरों को बड़ा सिद्ध करने के लिए अपने को छोटा दिखाने का जो शारीरिक व्यापार है।जो हाथ जोड़ा जाता है ।जो सिर झुकाया जाता है या और दूसरी क्रियाएं हैं वह सब नती हैं। शंख स्मृति में बताया गया है कि नमस्कार हर समय किया जा सकता है और किसी भी परिस्थिति में वहां पर नमस्कार परिस्थिति के अनुसार का होगा लेकिन नमस्कार जरूर होगा। देवता को, विप्र को और गुरु इनको देख कर अगर कोई व्यक्ति वहकावे में आ करके इनको प्रणाम नहीं करता है तो उसको कॉलसतर आज का नरक मिलता है। जो ब्राह्मण को देख कर के गुरु को देख कर के नमन नहीं करता वह जब तक जीवन है तब तक के लिए अशुद्ध हो जाता है और मरने के बाद अन्य संस्कृति में जन्म लेता है।देवता का स्थान देखने के बाद, दंडी सन्यासी को देखने के बाद जो व्यक्ति नमस्कार नहीं करता है उसको दोष लगता है। अतः उसको प्रायश्चित्त करना चाहिए। इसी का नाम है नमन, वंदन, प्रणाम अभिवादन या यूं कहिए अभिवादन मायने अभीमुख करने के लिए बादन।जिसको हम प्रणाम कर रहे हैं वह हमें देखने लगे हमारी तरफ उसका ध्यान आकर्षित हो जाए इसके लिए नाम उच्चारण पूर्वक कि मैं आमुख आपको प्रणाम कर रहा हूं।इस तरह से जब नाम उच्चारण करेंगे और आपको प्रणाम कर रहे हैं यह कहेंगे तो जिस को प्रणाम कर रहे हैं तो आप तक उसका ध्यान आ जाएगा। ध्यान आ जाए यह सोच कर के जो प्रणाम किया जाता है उसी का नाम है अभिवादन। इसीलिए बच्चे का जब यज्ञोपवीत होता है सबसे पहले उसे अभिवादन कैसे होता है यह सिखाया जाता है। प्रणाम करने की जो परंपरा है उसमे अपने बारे में बता करके तब प्रणाम किया जाता है यह बोल करके की *अहम् अभिवादये* इसी का नाम है अभिवादन है। गुरु को देखकर के आसन से खडा हो जाए और पहले अभिवादन करें ताकि वह कुछ कहना चाहे या उपदेश देना चाहे वह दे सकें। अभिवादन का बड़ा माहात्म्य है। अभिवादन करने से आयु, विद्या, यश और बल बढ़ जाते हैं। जैसा कि सभी जानते हैं मार्कण्डेय जी की अल्प आयु थी वह दीर्घायु कैसे हो गए । क्योंकि उनको नारद ने यही सिखाया था कि जो संत महात्मा मिले दौड़ करके प्रणाम करो अभिवादन करने मात्र से उनको कितना बड़ा लाभ हो गया। मनु महाराज जी ने और भी कहां है कि यह मैं हूं ऐसा कह कर के अपने नाम का उच्चारण करते हुए जो अपने से बड़ा हो उसे प्रणाम करें यह विधि मनु महाराज ने बताई है और उसका आज भी पालन होता चला आ रहा है। जो लोग मनुस्मृति नहीं जानते वहभी प्रणाम कर रहे हैं अंतर यही है कि वह विधि से नहीं कर रहे हैं।
यमस्मृति में बताया है किस को प्रणाम करना चाहिए किसको नहीं। 11 नाम बताएं हैं यह 11 लोग गुरु समान है। अध्यापक , पिता , जेष्ठ भ्राता , राजा जिसका वेद मंत्रों से अभिषेक हुआ हो, जिसने हमें कन्या दी हो ससुर , मामा, जिसने कभी हमारी रक्षा की हो, नाना, अपने परिवार में जो बंधु जेष्ठ हो और चाचा यह हमारे पूजनीय हैं इनको प्रणाम करना चाहिए। स्त्रियों में माता, माता की माता और माता पिता की बहने , ससुर और पिता की माता , जो हमसे बड़ी बहन और जिसने हमारा पालन किया हो यह स्त्रियां भी गुरु समान हैं इनको भी प्रणाम करना चाहिए ।
जिसके पास पैसा हो वह हमारा आदरणीय है, बंधु जो उम्र से बड़ा हो कर्म जिसके आचरण अच्छे हो और जिसके पास विद्या हो उनको भी प्रणाम करना चाहिए।
अगर राजा और विद्वान एक साथ आ जाए तो पहले विद्वान को ही प्रणाम करना चाहिए।
कई पूजनीय विराजमान हो तो पहले किस को प्रणाम करना चाहिए तो बताया गया है की शिक्षा दीक्षा देने वाले गुरु को पहले अभिवादन करना चाहिए ।
भगवत्पाद आदिशंकराचार्य भगवान हमें बताते हैं कि हमें भगवान श्री गणेश जी की अराधना करनी चाहिए। उनकी शरण में जाना चाहिए। भगवान श्री गणेश जी को प्रणाम करने वाले के अशुभो का नाश भगवान स्वयं कर देते हैं। उसका जो बिगाड़ हो रहा हो।उस बिगाड़ को भगवान समाप्त कर देते हैं।