मोहन बिष्ट (फाइल फोटो)

दीपक पाठक, बागेश्वर
पहाड़ की पीड़ा और ज्वलंत मुद्दों को उजागर कर आवाज देने वाले लोकप्रिय मोहन बिष्ट ‘मोहनदा‘ कोरोना से जंग हार गए। जनपद बागेश्वर के गोमती घाटी के मैगड़ीस्टेट के रहने मोहन बिष्ट का गत दिवस कोरोना संक्रमण के चलते दिल्ली के अपोलो अस्पताल में असामयिक निधन हो गया।
कोरोना संक्रमण के चपेट में आने के बाद मोहन बिष्ट का आक्सीजन लेबल अचानक गिरने लगा। बताया गया है कि उन्हें समय पर दिल्ली के अस्पतालों में बेड नहीं मिल पाया। बमुश्किल अपोलो अस्पताल में बेड मिल सका, तो तब तक काफी हो चुकी थी। उनका आक्सीजन लेबल काफी नीचे गिर गया था। उपचार के दौरान गत दिवस अपोलो अस्पताल में कोरोना संक्रमण से संघर्ष में वह हार गए और उनका असामयिक निधन हो गया। स्व. बिष्ट अपने पीछे बूढ़े माता-पिता, पत्नी व दो बच्चों को रोता-बिलखता छोड़ गए हैं।
उल्लेखनीय है कि स्व. मोहन बिष्ट ने मासिक पत्रिका ‘म्यर पहाड़’ का संपादन किया और ‘क्रिएटिव उत्तराखंड संस्था‘ की स्थापना की। पत्रिका एवं संस्था के माध्यम से पूरे उत्तराखंड और पहाड़ की पीड़ा व ज्वलंत मुद्दों को उठाने का भरसक प्रयास किया। राज्य आंदोलन में युवाओं को लामबंद कर उन्होंने सक्रियता से कार्य किया और अलख जगाने का कार्य किया। इतना ही नहीं उन्हें अपनी माटी से इतना प्यार था कि दुबई में नौकरी के दौरान भी उन्होंने दुबई में प्रवासी उत्तराखंड परिषद बनाकर हर साल उत्तराखंड महोत्सव आयोजित किया। जहां प्रवासी उत्तराखंडी लोक कलाकारों को मंच प्रदान किया। दरअसल उनकी मंशा अपने पहाड़ की आवाज को देश से बाहर भी सुर देने की थी। गरुड़घाटी के निवासी मोहन बिष्ट के लोगों का इतना लगाव व जुड़ाव रहा कि आम तौर पर अपनों के बीच ‘मोहनदा‘ या ‘मोहन भाई‘ के नाम से लोकप्रिय रहे।
वर्तमान में मोहन बिष्ट परिवार सहित दिल्ली में रहे थे। वह पेशे से मैकेनिकल इंजीनियर थे। विशाल सामाजिक दायरा होने से उन्हें बचाने के प्रयासों में अनके साथियों ने अथक प्रयास भी किए, मगर सब प्रयास व्यर्थ चले गए। संगीत, संघर्ष और समाधान का विलक्षण समन्वय बिठाने की अनूठी कला जैसे मोहनदा के अंदर कूट-कूट कर भरी थी। जैसे ही गृह क्षेत्र में उनके निधन का समाचार पहुंचा, तो सभी स्तब्ध रह गए। तमाम लोगों को उन्हें खोने का काफी मलाल है।