अनंत श्री विभूषित जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी श्री स्वरुपानंद सरस्वती जी महाराज द्वारा रचित प्रस्तुति ।
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||हमारी श्री जगन्माता, हमें प्राणों से प्यारी है||
हमारी श्री जगन्माता, हमें प्राणों से प्यारी है|
हमारी देवी त्रिपुराम्बा, हमें जीवन से प्यारी हैं || टेर ||
यही ललिता ,महाविद्या ,यही राधा ,यही सीता |
विश्व उद्धार करने को अनेकों रूप धारी है
यही दुर्गा महाकाली,यही बाला कुमारी है। कभी नर रूप धारण कर,बनी मोहन मुरारी है ।।
सुधा के सिंधु के भीतर,मनोरम द्विप में उनका।
महल मणि का बना सुंदर निपवन की मंझारी।।
हिर्दय करुणा प्रपुरित है, मनोरम वस्त्रभूषण हैं।
मधुर मुस्कान की शोभा, परमशिव ने निहारी है।।
विराजी दिव्य आसन पर बने ब्रम्हा मुरारी हर ।
सदाशिव ईश पद बनकर,शक्ति निज की सवारी है।।
भण्ड नामा असुर ने जब,जगत को त्रास पहुंचाया।
यज्ञ की अग्नि से होकर, प्रकट विपदा निवारी है।।
भयंकर सैन्य लेकर के, दैत्य जब रण में आया था।
चक्र रथ बैठकर माता, असुर दल को संघारी है।।
शरण में इनकी जो आता,मनोरथ पूर्ण करती है।
दिव्य मंदिर में श्रीवन के, मणिपुर से पधारी है।।
मेरे गुरुदेव कहते हैं, परमहंसी चले आओ।।
मेरे गुरुदेव कहते हैं, माँ ललिताम्बा की शरण में चले आओ।।
कि ललित का स्मरण,वंदन, सदा कल्याणकारी है।।
कि त्रिपुरा का स्मरण,वंदन, सदा कल्याणकारी है।।