कल किसान दिवस मनाया गया है। किसान दुनिया की भूख मिटाता है।किसान का सीधा मतलब हमे भोजन मुहैया कराने वाला , सीधे तौर पर कहें तो अन्नदाता है।सभी सरकारें किसानों को आत्मनिर्भर बनाने की बड़ी बड़ी बातें करती है लेकिन बड़े दुखी मन से कहना पड़ रहा है कि ,किसानों की स्थिति दिनों दिन बदतर होती जा रही है,किसानों की आत्महत्या के साल दर साल बढ़ते आंकड़े एक खौफनाक तस्वीर पेश करते है।किसानों की दयनीय स्थिति के लिए कांग्रेस,बीजेपी,सपा, बसपा आदि सभी को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है क्योंकि केंद्र में और राज्यों में लगभग सभी दल या तो सरकार में शामिल रहे हैं, या उनकी सरकारें रही है।
आज चीख चीख कर कहा जा रहा है कि हमने कर्ज माफी कर दी,हमने बिजली फ्री कर दी,हम 5000 रुपये देंगे,अरे किसानों को ये सब नही चाहिए ,किसान की वास्तविक पीड़ा को समझये, किसान की कर्जमाफी तो आप चिल्ला चिल्ला कर कह रहे हैं, लेकिन क्या कभी आपने ये भी सोचा कि हमारे देश के किसान आखिर क्यों दिनों दिन दयनीय हालात की तरफ बढ़ रहा है?आखिर स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक सरकारें किसानों के हित में फैसले क्यों नही लेती है? आखिर हरित क्रांति को हम क्यों भूलते जा रहे हैं। कितनी बड़ी विडंबना है कि बड़े जोर शोर से एक तरफ किसानों की कर्जमाफी,MSP बढ़ाने की बात होती है लेकिन दूसरी तरफ धरातल पर किसानों की फसलें सड़ रही होती है,किसानों के गन्ना,आलू,प्याज,धान ,गेहूँ,आदि का उन्हें समय पर सही रेट नही मिलता है,दूसरी विकट स्थिति उत्पादन के बाद बाजार के प्रबंधन की है,किसान पैदावार तो अच्छी करते हैं लेकिन सरकार द्वारा सही समय पर उनकी फसलों को नही खरीद जाता या उन्हें बाजार उपलब्ध नही हो पाता है,जिसका कारण है किसानों का दुखी होकर कृषि से ऊब जाना।आज उत्तरप्रदेश,बिहार,पंजाब,हरियाणा
महाराष्ट्र,बंगाल,मध्य्प्रदेश,आदि सभी कृषि प्रदान राज्यों में किसानों की दयनीय हालात है,देश में कभी सूखे,तो कभी भारी वर्षा तो कभी मानसून का समय पर न आना तो कभी समय पर बीज, खाद न मिलने से किसान बेहद दुखी होते हैं, ऊपर से सरकारों द्वारा भी किसानों को उचित सहयोग नही मिल पाता है,अपनी जमापूंजी लगाकर और कर्ज लेकर फसल उगाने वाले किसानों को जब उनकी पैदावार की दुर्दशा दिखती है,और सरकार से जब उनकी अनदेखी होती है तो मजबूरन उन्हें आत्महत्या जैसा वीभत्स कदम उठाना पड़ता है,हालाँकि किसान भाइयों को समझना चाहिए कि आत्महत्या किसी भी समस्य का हल नहीं है
पहाडोंकीगूँज ने किसानों को फसल छति पूर्ति के लिए 50000 प्रति हेक्टेयर एंव 30000 हजार रुपए प्रोत्साहन भाता देने की बात किसान परिवार के मुखिया होने के नाते होने वाली परेशानियों को देखते हुए ।देश के किसानों की पीड़ा को बार बार उठाया गया।जिसके फलस्वरूप भारत वर्ष लगातार सभी सरकरों को पत्र भेजकर समस्या सुलझाने के लिए कहा गया है किसान अन्न दाता है उसको राजनीतिक पार्टीयों को राष्ट्रीय हित को देखते हुए समझने की जरूरत महसूस करते हुए उनको प्रोत्साहित करना उद्देश्य सभी होना चाहिए।इस बात को देश मे मात्र दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने संज्ञान लिया और वहां किसानों को 50000 रुपये प्रति पूर्ति दिया है ।उसके बाद उत्तराखंड में मुख्यमंत्री हरीश रावत ने अपने राज्य के संसाधनों से छति पूर्ति दिया।लगातार इस मांग को उठाया जारहा है। अब केन्द्र सरकार ने 6000 रुपए किसानों को देने का कार्य किया है।केंद्र सरकार कृषि को बढ़ावा देने के लिए 50000 हजार रुपए प्रति हेक्टेयर फसल छति पूर्ति देने का कार्य करना देश को आगे बढ़ाने की ओर सार्थक प्रयास होगा जिससे जहां 60 करोड़ रोज भूखे सोने वाले लोगों की भूख मिटाने में मदद मिलेगी। रोजगार के अबसर बढेंगे। गावँ का पलायन रुकेगा ।अपराधियों में कमी आएगी। देश का जी डी पी में इजाफा होगा।
केंद्र सरकार को एक पंचवर्षीय योजना में किसानों को सीधा लाभ देने के लिए कार्य करना चाहिए। आज बीमा कम्पनीयां मलोमाल हो रही है किसानों को सरकार द्वारा दिया गया रुपये भी नहीं मिल रहे हैं। पत्र के लिए यह किसानों की चिंता बनी हुई है।जिसके लिए हरबार पत्र के माध्यम से उठाया जाता है।आगे भी उठाया जाता रहेेेगा। शेष अगले सप्ताह (जीतमणि ,चन्द्रशेखर पैन्यूली)