देहरादून, आज अपने नबर बढ़ाने के लिए उत्तराखंड में कई प्रकार के हथकण्डे अपनाए जाते हैं शिव प्रसाद सेमवाल की गिरफ्तारी को भी इसी कड़ी में जन मानस देखने लगा है उनको कोर्ट में पुलिस कर्यवाही कर शुक्रवार बार को लेजाते तो बेल दिलाई जासकती, परन्तु जानकरों का कहना है कि शनिवार जमानत मिल जाती तो भी सेमवाल को सहसपुर पुलिस ने अपने लकउप मे 24 घण्टे तो रख ही दिया है।अब उनको जेल भेजकर पत्रकार जगत के लिए फैसला आने तक गलत बात उछलने से समाज मे सत्य को लेकर प्रकाशन करना जारी रहेगा। इस प्रकार के प्रकाशन से पुलिस विभाग के लिए अवश्य अपनी सोच बदलने के लिए बाताबरण सृजन कर कार्य वाही करने का आवश्यकता होजयेगा । इस गलत तरीके पर पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने अपनी बात सहज पोर्टल यूट्यूब के मध्य से आपके बीच रखी है पत्रकार अपने हित के लिए लड़ते रहे
*अमित अमोली वरिष्ठ पत्रकार व सहमीडिया प्रभारी उत्तराखंड वेब मीडिया एशोसिएशन की कलम से जीवन
सूचरनीददसुसियासी साज़िश का शिकार हुए पर्वतजन के संपादक शिवप्रसाद सेमवाल!
शिवप्रसाद की गिरफ्तारी खड़े कर रही कई सवाल
देहरादून। उत्तराखंड में पत्रकारिता को एक अलग मुकाम तक पहुँचाने और कभी किसी के आगे न झुकने वाले इंसान कम ही हैं। ऐसे ही कुछ लोगों से हमने पत्रकारिता सीखी तो कुछ ऐसे ही लोगों को हमने काम करते देखा भी है। इन लोगों को जब हम काम करते देखते हैं तो लगता है कि हम लोग तो सिर्फ पत्रकारिता में समय ही बर्बाद कर रहे हैं। ऐसे ही एक इंसान है पर्वतजन के सम्पादक तथा उत्तराखंड वेब मीडिया एसोसिएशन के अध्यक्ष शिव प्रसाद सेमवाल। उत्तराखंड में शायद ही ऐसा कोई पत्रकार हो जो इनके बारे में न जनता हो, ऐसा ही हाल राजनेताओं का भी है और शासन से जुड़े अधिकारीयों का भी।
काफी लम्बे समय से अपनी कलम के दम पर प्रदेश के बड़े-बड़े घोटालों का खुलासा करने के लिए शिव प्रसाद सेमवाल चर्चा में बने रहते हैं। उनके ऐसे कार्यों को लेकर आम जनता तो खुश है लेकिन कुछ ऐसे लोग भी हैं जिनको उनके इन कामों से आपत्ति होती आई है। इसका केवल एक ही कारण है कि वो लोग भी किसी न किसी घोटालों का हिस्सा रह चुके हैं।
अभी हाल ही में एक वाक्या नजर में आया है जिसकी शुरुवात 3 माह पहले ही हुई थी। इसी वर्ष 6 दिसंबर को नीरज कुमार नामक व्यक्ति ने सहसपुर थाने में एक रिपोर्ट दर्ज करवाई थी। ये रिपोर्ट शिव प्रसाद सेमवाल के खिलाफ लिखी गयी थी। रिपोर्ट में नीरज ने कहा है की शिव प्रसाद सेमवाल के द्वारा मुझे ब्लैकमेल कर पांच लाख की मांग की गयी है। रिपोर्ट के बाद अगले तीन महीने तक पुलिस ने कोई कारवाई नहीं की, और फिर अचानक से पुलिस को तीसरे महीने में अपना फर्ज याद आ गया और बीती सुबह उन्होंने शिव प्रसाद सेमवाल को गिरफ्तार कर लिया। अब मुद्दे की बात ये है की यदि पुलिस ने अपने कार्य के हिसाब से या फिर नियमों के अनुसार शिव प्रसाद सेमवाल को गिरफ्तार किया है तो तीन महीने तक क्यूँ नहीं किया। साथ ही इस मामले का दूसरा पहलु ये भी है कि कहीं पुलिस किसी घोटालेबाज का साथ तो नहीं दे रही ! अक्सर ऐसे मामले सामने आते रहते हैं जब पुलिस का कोई शख्स किसी घोटालेबाज से पैसे लेकर किसी बेगुनाह व्यक्ति पर जुल्म ढाने लगता है।
दरअसल शिव प्रसाद को पुलिस सुबह लेकर गयी तो थी पर उन्हे हिरासत में नहीं लिया गया था। लेकिन पुलिस द्वारा ले जाने की बात सुनते ही वेब मीडिया असोसिएशन के कुछ लोग भागे-भागे सहसपुर थाने में पहुँच गये। बात-चीत करते करते कब शाम के पांच बज गये पता नहीं लगा। इसके बाद पुलिस ने शिव प्रसाद को ऑफिशियली हिरासत में ले लिया। इसमें साफ़-साफ़ पुलिस की चतुराई दिख रही है। क्यूंकि पांच बजे के बाद किसी भी हिरासत में लिए गये व्यक्ति को जमानत नहीं मिल सकती। अब इस सब में सोचने वाली बात यह है कि पुलिस ने आख़िरकार शिव प्रसाद के साथ ये चालाकी क्यूँ दिखाई? क्या पुलिस भी घोटालेबाजों से मिल चुकी है ? शिव प्रसाद की गिरफ्तारी को लेकर और भी कई सारे सवाल उठ रहे हैं। अब देखना यह है कि आगे क्या फैसला होता है ! सच्चाई की जीत होती है या एक बार फिर घोटालेबाजों का कद बढेगा ?
[11/23, 16:30] Ashish Negi Media प्रभारी: *सुनील गुप्ता, वरिष्ठ पत्रकार* ने लिखा है
*पत्रकार सेमवाल को नहीं मिली जमानत!*
देहरादून। गत दिवस थाना सहसपुर एसओ द्वारा पर्वतजन वेब पोर्टल के सम्पादक की उनके आवास से कल सुबह की गई अनुचित रूप से की गई गिरफ्तारी को थाने में चलकर आये अभियुक्त के रूप में दिखाने के प्रकरण में आज जुडिशल मजिस्ट्रेट विकासनगर ने जमानत नही दी।
ज्ञात हो कि पत्रकार शिव प्रसाद सेमवाल व अमित पाल के विरुद्ध चोरखाला लक्ष्मीपुर निवासी नीरज राजपूत ने मुकदमा अपराध संख्या 414/2019 दर्ज कराया था।
उल्लेखनीय है कि सहसपुर पुलिस के संदिग्ध व प्रीजुडिस रवैये के चलते ही उक्त गिरफ्तारी में नाटकीय रूप देखने को मिला क्योंकि सूत्रों व सेमवाल के अनुसार वह स्वयं थाने नहीं आया बल्कि एसओ ने बलपूर्वक बिना किसी वैधानिक सूचना/ वारंट के उन्हें गत दिवस सुबह 10 बजे करीब घर से गिरफ्तार किया और फिर थाने लाकर जबरन सीओ की मौजूदगी में बयानों हेतु बुलाबे के सफीने पर हस्ताक्षर करवा लिए और मनमर्जी से कुछ का कुछ दिखाकर थाने से ही गिरफ्तारी दिखा दी। वहीँ पुलिस के इस तरह से शातिर अपराधी की तरह से एक सभ्रांत पत्रकार की गिरफ्तारी से पत्रकार जगत में रोष व्याप्त है। ऐसे में उक्त विवेचना अधिकारी/एसओ की भूमिका पर सवालिया निशान लग रहा है। बताया तो यह भी जा रहा है कि उक्त प्रकरण की आड़ में सरकार को खुश करने का खेल भी पीछे से खेल जा रहा है क्योंकि TSR व आला अफसरों के विरुद्ध पत्रकार सेमवाल द्वारा समय समय पर मामलों को उजागर कर समाचार प्रसारित व प्रकाशित किये जाते रहे हैं!
खैर जो भी हो इस प्रदेश की सरकार पर पत्रकारिता और मीडिया के जबतब दमनात्मक कार्यवाही के मामले प्रकाश में आते रहे हैं!
? पत्रकारों के साथ दमनात्मक व उत्पीड़न की इस कार्यवाही सहित अन्य मामलों में पहले भी राजधानी के कुछ चाटुकार अपने आपको प्रतिष्ठावान कहलाने बाले दैनिक समाचार पत्रों और तथाकथित गंगा गए गंगादास और जमुना गए जमनादास जैसे दोमुँहे पत्रकारों की भूमिका भी खासी देखने को मिल रही है जो डिप्लोमेट की तरह ब्यूरोक्रेट्स के हाथों की कठपुतली बन कर TSR को खुश करने में तल्लीन दिखाई पड़ रहे हैं। फिलहाल जो भी हो इस देवभूमि में पत्रकारिता खतरे में है क्योंकि कोई भी निर्भीक और वेवाक पत्रकार सुरक्षित नहीं है! ऐसी भी आशंका विद्दयमान है कि पुराने चर्चित उमेश शर्मा कांड की पुनरावृत्ति हो रही है!
?मजे की बात तो यह भी है न ही सरकार और न ही पत्रकारों के किसी एक संगठन व एकजुटता का नारा देने बाले ठेकेदारों द्वारा पुलिस के इस अनुचित रवैये पर कोई प्रतिक्रिया व निष्पक्ष कार्यवाही की ही पहल अभी तक कि गयी है, और पुलिस के आला अफसरों व जिले के बड़े कप्तान की चुप्पी भी इस प्रकरण में छिपे खेल की ओर इशारा कर रही है?
पत्रकार सेमवाल के परिजनों का यह भी कहना है कि वे न्याय पाने के अपना संघर्ष जारी रखेंगे तथा जिला सत्र न्यायधीश का दरवाजा खटखटाएंगे।