केन्द्रीय जलशक्ति मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत ने की मुख्यमंत्री से भेंट
देहरादून,। मुख्यमंत्री ने केन्द्रीय मंत्री से सौंग बांध परियोजना हेतु रू. 1290 करोड़ तथा जमरानी बहुउद्देशीय बांध परियोजना हेतु 2584.10 करोड़ की स्वीकृति का किया अनुरोध। राज्य बाढ़ प्रबंधन कार्यक्रम के तहत संचालित 38 बाढ़ सुरक्षा योजनाओं के लिये रूपये 1108.37 करोड़ तथा प्रस्तावित जलाशयों एवं झील निर्माण योजनाओं के निये रू. 589.25 करोड़ धनराशि स्वीकृत करने का भी मुख्यमंत्री ने किया अनुरोध। केन्द्रीय जलशक्ति मंत्री ने राज्य की सिंचाई व पेयजल योजनाओं व बाढ़ सुरक्षा योजनाओं के लिये अपेक्षित धनराशि स्वीकृत करने का दिया आश्वासन।
मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत से शुक्रवार को मुख्यमंत्री आवास में केन्द्रीय जल शक्ति मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत ने भेंट की। उन्होंने मुख्यमंत्री से राज्य में संचालित सिंचाई, पेयजल, बाढ़ सुरक्षा से सम्बन्धित विभिन्न योजनाओं के संचालन एवं राज्य में निर्मित होने वाले सौंग व जमरानी बांध के साथ ही प्रस्तावित जलाशय व झील निर्माण से संबंधित योजनाओं के संबंध में चर्चा की। केन्द्रीय जल शक्ति मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत ने केन्द्रीय स्तर पर राज्य की लम्बित योजनाओ पर समुचित कार्यवाई किये जाने का आश्वासर मुख्यमंत्री को दिया, उन्होंने पानी बचाने की व्यापक मुहिम संचालित करने पर बल देते हुए स्कूल व कॉलेजों में भी इसके लिए जनजागरण की बात कही। इस अवसर पर सचिव सिंचाई भूपेन्द्र कौर औलख, सचिव वित्त अमित नेगी तथा सचिव पेयजल अरविन्द सिंह हयांकी भी उपस्थित थे।
मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र ने केन्द्रीय मंत्री को अवगत कराया कि देहरादून में सौंग नदी पर 109 मीटर ऊंचा कंक्रीट ग्रेविटी बांध बनाया जाना प्रस्तावित है। इससे देहरादून की वर्ष 2051 तक की आबादी हेतु पेयजल की उपलब्धता सुनिश्चित होगी। इसमें भूजल स्तर में सुधार के साथ ही रिस्पना एवं बिंदाल के पुनर्जीवीकरण में मदद मिलेगी। योजना की लागत 1290 करोड़ है। इसके साथ ही मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र ने गोला नदी पर 130.60 मीटर ऊंचा कंक्रीट ग्रेविटी बांध बनाया जाना प्रस्तावित है। इसमें नैनीताल व हल्द्वानी की पेयजल समस्या का समाधान होने के साथ ही उत्तर प्रदेश व उत्तराखण्ड के 150027 हे. कमाण्ड में 57065 हे. अतिरिक्त सिंचन क्षमता की वृद्धि होगी। इसके साथ ही इस योजना से 14 मेगावाट विद्युत उत्पादन, मत्स्य पालन व पर्यटन योजनाओं का विकास होगा। इसके लिये जल संसाधन मंत्रालय की एडवाइजरी कमेटी द्वारा स्वीकृति प्रदान की जा चुकी है योजना की लागत 2584.10 करोड़ है।
मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र ने केन्द्रीय जल शक्ति मंत्री को अवगत कराया कि उत्तराखण्ड राज्य का 86 प्रतिशत भू-भाग पर्वतीय है साथ ही राज्य का लगभग 63 प्रतिशत क्षेत्र वन भूमि से भी आच्छादित है तथा राज्य को प्रतिवर्ष विभिन्न प्राकृतिक आपदाओं यथा बाढ़, अतिवृष्टि, बादल फटना आदि से जूझना पड़ता है। दैवीय आपदा से राज्य में निर्मित नहरों को अत्यधिक क्षति पहुँचती है एवं राज्य की वित्तीय स्थिति के दृष्टिगत सभी नहरों का जीर्णोद्धार, सुदृढीकरण किया जाना सम्भव नहीं है जिस कारण सृजित सिंचन क्षमता को बनाये रखना संभव नहीं हो पा रहा है। पर्वतीय क्षेत्रों में अधिकांश जल स्त्रोंतों, जिनमें सिंचाई हेतु नहरों का निर्माण संभव है, किया जा चुका है एवं संतृप्ता की स्थिति में है। अन्य क्षेत्रों में लिफ्ट नहर योजनाओं का निर्माण कर सिंचाई सुविधा प्रदान की जा रही है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य की भौगोलिक पर्वतीय स्थिति एवं अत्यधिक वनाच्छादन के कारण सीमित वित्तीय संसाधनों को दृष्टिगत यह आवश्यक है कि पी.एम.के.एस.वाई.- हर खेत को पानी योजना के अन्तर्गत पर्वतीय राज्यों हेतु मानकों में परिवर्तन या शिथिलीकरण प्रदान किया जाये। सरफेस माइनर इरिगेशन स्कीम में नहरों की पुनरोद्धार जीर्णोद्धार, सुदृढीकरण तथा विस्तारीकरण की योजनाओं को भी स्वीकृति प्रदान करने के साथ ही पर्वतीय क्षेत्रों में नहर निर्माण की लागत अधिक होने के कारण वर्तमान प्रचलित गाईड लाईन रू0 2.50 लाख प्रति हे. लागत की सीमा को बढ़ाकर रू. 3.50 लाख प्रति हे. किये जाने का अनुरोध मुख्यमंत्री ने किया। मुंख्यमंत्री ने बाढ़ प्रबन्धन कार्यक्रम के तहत जी.एफ.सी.सी पटना द्वारा बाढ़ प्रबन्धन कार्यक्रम के अन्तर्गत उत्तराखण्ड की 38 बाढ़ सुरक्षा योजनायें जिनकी लागत रू. 1108.37 करोड़ है, की इन्वेस्टमेंट क्लीयरेंस तथा वित्तीय स्वीकृति प्रदान करने तथा कृषि सिंचाई योजना-त्वरित सिंचाई लाभ कार्यक्रम के तहत केन्द्रांश की धनराशि रू. 77.41 करोड़ स्वीकृत करने का भी अनुरोध किया।
मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र ने केन्द्रीय मंत्री से जल जीवन मिशन योजना के तहत योजना की लागत में ग्राम के आन्तरिक कार्यों की लागत के सापेक्ष उपभोक्ता से 5 प्रतिशत अंशदान लिए जाने की शर्त पर्वतीय ग्रामों में भवनों के दूर-दूर स्थित होने और इस कारण आन्तिरिक कार्यों की भी योजना लागत अधिक आने के साथ-साथ ग्रामवासियों की आर्थिक स्थिति भी ठीक न होने के दृष्टिगत पर्वतीय राज्यों को उपभोक्ता अंशदान से मुक्ति प्रदान करने का अनुरोध किया। पर्वतीय एवं दुर्गम क्षेत्रों में ग्राम स्तरीय पेयजल एवं स्वच्छता समितियों के पास कार्यों से सम्बन्धित अधिप्राप्ति करने तथा तकनीकी कार्यों को सम्पादित कराने की दक्षता का अभाव होने के कारण बहुल गांव की योजना तथा पम्प आधारित सभी योजनाओं का निर्माण पेयजल निगमध्जल संस्थान जैसी तकनीकी संस्थाओं के माध्यम से ही कराये जाने की अनुमति प्रदान करने का भी अनुरोध मुख्यमंत्री ने किया। मुख्यमंत्री ने केन्द्रीय मंत्री से यह भी अपेक्षा की कि पर्वतीय क्षेत्रों में सतही वर्षाजल को रोककर लघु जलाशयों (नद्यताल) का निर्माण आसपास के क्षेत्रों में भूजल के संवद्ध नध्रिचार्ज, कम लागत की पम्पिंग योजनाओं के निर्माण तथा क्षेत्र में पर्यटन गतिविधियों के विकास हेतु अति आवश्यक है, किन्तु यह कार्य काफी व्ययसाध्य है। इस महत्वपूर्ण कार्य के लिए भारत सरकार द्वारा पृथक से केन्द्र पोषित योजना निरूपित कर राज्य सरकारों को वित्तीय सहायता सुलभ करायी जाय।