पुरोला उत्तरकाशी :ब्रिटिश शासन काल में सन् 1889 में जनपद उत्तरकाशी के तहसील मोरी में टोंस वन प्रभाग पुरोला की सान्द्रा रेंज में टोंस नदी पर बना झूला पुल उच्च गुणवत्ता तथा निर्माण कला का सबक सीखता नजर आता है ।
130 वर्ष पुरानी इस ऐतिहासिक धरोहर को संरक्षित करने,सबक लेने और पुनर्जीवित करने की आवश्यकता है ।लेकिन वन विभाग के पास फिलहाल ऐसी कोई कार्य योजना नहीं है।
बताते चलें कि अंग्रेजों के जमाने में सान्द्रा में टोंस नदी पर 71मीटर स्पान का लकडी का बना यह झूला पुल जीर्ण-शीर्ण हो चुका है और मरम्मत के नाम पर विभाग द्वारा समय समय पर धन खर्च किया जाता रहा है । लेकिन उसकी हालत में कोई खास सुधार होता नजर नहीं आ रहा है ।वर्तमान समय में इसके ऊपर से गुजरना खतरे से खाली नहीं है । लेकिन यह इंजीनियरों तथा ठेकेदारों को कला तथा कार्य की गुणवत्ता की सीख जरूर देता नजर आता है।
बहरहाल वन विभाग ने इसके ऊपर से भारी वस्तु या सामान ले जाना प्रतिबंधित कर दिया है । अब इस पुल से गुजरने वाले ग्रामीणों के लिए मौताड लोह सेतू से होते हुए वन सम्पर्क मार्ग की व्यवस्था की है। लेकिन पुल के ठीक उस पार 200मीटर की दूरी पर वन विभाग का विश्राम गृह भी है यदि यह पुल टूट जाता है तो टोंस नदी के बायें छोर पर स्थित वन विभाग कार्यालय और वन चेतना केन्द्र से महज 200मीटर की दूरी पर टोंस नदी के दायें छोर पर स्थित वन विश्राम गृह तक पहुंचने के लिए लगभग 5किमी की अतिरिक्त दूरी तय करनी पडेगी। पहले सान्द्रा से मौताड लोह सेतू वहाँ से सान्द्रा विश्राम गृह पहुँचना होगा । और यही अतिरिक्त दूरी सान्द्रा तथा सरला गांव के ग्रामीणों को तय करनी पड़ती है ।
टोंस वन प्रभाग के उप वन संरक्षक आर पी मिश्रा कहते है कि विगत वर्ष पुल की मरम्मत की गई थी पुल काफी जीर्ण-शीर्ण हो चुका है जिसकी मरम्मत करना भी काफी खतरनाक है ।पशुओं तथा भारी सामान ले जाना प्रतिबंधित कर दिया गया है । सान्द्रा तथा सरला के ग्रामीणों की सुरक्षित आवाजाही के लिए मौताड लोह सेतू से नदी के किनारे वन सम्पर्क मार्ग का निर्माण किया गया है ।यदि भविष्य में प्रस्तावित मौताड सालरा मोटर मार्ग का निर्माण हो जाता है तो पुल का भविष्य में कोई औचित्य नहीं रह जायेगा ।