देहरादून :राहुल सांकृत्यायन के स्मृति दिवस (14अप्रैल) के अवसर पर *’नौजवान भारत सभा’ और ‘स्त्री मुक्ति लीग’* द्वारा आज देहरादून में विचार-गोष्ठी *’भारतीय भौतिकवादी दार्शनिक परम्परा और राहुल सांकृत्यायन की विरासत’* विषय पर आयोजित की गयी।
गोष्ठी में अपनी बात रखते हुए वक्ताओं ने कहा कि भारत की जो दार्शनिक परम्परा है, उसको एकांगी रूप में प्रस्तुत किया जाता रहा है और एक बड़ा भ्रम यह है कि भारत शुरुआत से ही आध्यात्मिक देश रहा है जबकि छ: दर्शनों में तीन दर्शन सांख्य, न्याय, वैशेषिक भौतिकवादी दर्शन रहे हैं। भौतिकवादी धारा के प्रवर्तकों में गुरू वृहस्पति, कपिल मुनि, गौतम और कणाद ऋृषि मुनियों की पूरी परम्परा रही है। मध्यकाल में भी धार्मिक सुधार आन्दोलन के दौरान कबीर, नानक, दादू, रैदास, पल्टू जैसे विद्रोही कवियों की पूरी धारा ने धार्मिक आडम्बरों, पाखण्डों का पुरज़ोर विरोध किया था। इसी परम्परा को भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन के कई नायकों ने आगे बढ़ाया जिनमें राहुल सांकृत्यायन, राधामोहन गोकुल, गणेश शंकर विद्यार्थी, भगतसिंह प्रमुख रहे हैं। आज के दौर में प्रतिक्रियावादी ताकतें जिसतरह धार्मिक कर्मकाण्डों की आड़ में समाज को पीछे ले जाने का काम कर रही हैं और जनता की पिछड़ी चेतना होने के नाते एक हद तक वे इसमें सफल भी हो रही हैं। ऐसे में यह ज़रूरी है कि हम भारतीय दार्शनिक परम्परा के उन पहलुओं को जनता के बीच ले जायें जो इतिहास में दबा दी गयी हैं। इस काम को बखूबी तौर पर राहुल ने अपने समय में किया। उन्होंने अपने लेखन और व्यवहार से धार्मिक मूल्यों-मान्यताओं-पाखण्डों पर पुरज़ोर प्रहार किया।
गोष्ठी में अपूर्व, शिवम, राजेश सकलानी, सुभाष तारान, जितेन्द्र भारती,विजय पाहवा, गीता गैरोला आदि ने बात रखी। कार्यक्रम का संचालन कविता कृष्णपल्लवी ने किया।