पहाड़ की बेटियाँ आज जबरदस्त खतरे का सामना कर रही हैं| निकम्मे बेटों, ताश के खेल में मशगूल युवा और रोजाना शराब के लिए लालायित रहने वाला पुरुष वर्ग इसके लिए काफी हद तक जिम्मेदार है| अन्यथा क्या मजाल कि जिस कौम में वीर गब्बर सिंह गढवाली जैसे जाँबाज पैदा होते हों, जो कि अकेले ही असंख्य दुश्मनों को ठिकाने लगा दें, वहाँ किसी की भी क्या मजाल कि यहाँ की माँ-बेटियाें की ओर आँख उठाकर भी देख सके| बहरहाल गिनती के ही लाल हों, पर जो पहाड़, पहाड़ की अस्मत और यहाँ की गौरवशाली संस्कृति के लिए मर-मिटने का जज्बा रखते हों ; उन्हें अब आगे आने का प्रण करना चाहिए| मुझे पूरा यकीन है कि उत्तराखंड पर आ रही आँच पर पहाड़ चुप नहीं बैठेगा| इस यकीन के साथ अपने प्रण को पुन: दोहरा रहा हूँ…*_
डमरू की थाप बजेगी
तांडव ही तांडव होगा
हिम ओस नहीं पहाड़ की बेटियाँ
दुर्गानाद अब छिडेगा
हमारी अस्मत पर हाथ डालोगे
घर घर पंडो नचेगा
शास्त्र बाँचने वालों के हस्त
शस्त्र संविधान उठेगा
क्रुंदन करेंगी रूह
कालपिशाच छलेगा
डमरू की थाप बजेगी
तांडव ही तांडव होगा|
डमरू की थाप बजेगी
तांडव ही तांडव होगा
चुप्पी टूटेगी
चौकीदार चौंकेगा
गढ-कुमौं-गुरखा की धरती पर
केदार-नंदा-पशुनाथ भभकेगा
जौनसार-रवाँई-जौनपुर
मंडाण थिरकेगा
देवों की हुकूमत
राक्षस अब मरेगा
डमरू की थाप बजेगी
तांडव ही तांडव होगा|
डमरू की थाप बजेगी
तांडव ही तांडव होगा
दुश्मन को रोकें हिम बेटे
दुश्मन धर्म तुम निभाओगे
सिया अपहरण दंड
लंका जली-खानदान मिटा
पूजन कन्या होतीं अगवा
कभी दुष्कर्म, तो कभी दुर्दात हत्या
वज्र क्यों नहीं अब उठेगा
कर शंखनाद, बजा रणभेरी
डमरू की थाप बजेगी
तांडव ही तांडव होगा|