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राज्यपाल श्रीमती बेबी रानी मौर्य  द्वारा डॉ मुरलीमनोहर जोशी , लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी जी को डी लिट (मानद) की उपाधि प्रदान की गयी

Pahado Ki Goonj

डी लिट की उपाधि ! ….नेगी दा नहीं अब डाॅ नरेंद्र सिंह नेगी कहिए !
ग्राउंड जीरो से
दून विश्वविद्यालय में आयोजित प्रथम दीक्षांत समारोह में  राज्यपाल श्रीमती बेबी रानी मौर्य  द्वारा प्रख्यात लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी जी को डी लिट (मानद) की उपाधि प्रदान की गयी। इस अवसर पर सूबे के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत सहित कई गणमान्य लोग उपस्थित रहे। नेगी दा नहीं अब डाॅ नरेंद्र सिंह नेगी बन गये हैं। नेगी दा को डी लिट की उपाधि से नवाजे जाने पर ढेरों बधाईया।

गौरतलब है कि .. जिनके गीतों में पहाड़ बसता है, गीतों के हर बोल में पहाड़ की लोकसांस्कृतिक विरासत झलकती है, आवाज में ऐसा जादू की बच्चों से लेकर बुजुर्ग और बेटियों से लेकर दादी तक हर किसी की आँखे छलछला जाती है, 41 बरसों की गीतों की गीतांजली में उन्होंने पहाड़ के हर विषय को अपनी आवाज दी, हमारी पीढ़ी तो उनके गीतों को सुनकर ही बड़ी हुई है, पूरे पहाड़ को एक जगह बैठकर देखना हो तो उनके गीतों को सुनकर देखा जा सकता है, वे उत्तराखंड के सांस्कृतिक विरासत के पुरोधा हैं, उनके गीत, खुद के गीत नहीं बल्कि जनगीत बने, जिन्होंने समाज को नई दिशा दी और समाज में अपनी अमिट छाप छोड़ी, उनके ब्यक्तिव को शब्दों में नहीं उकेरा जा सकता है।

पूरा देश अपनी आजादी की तीसरी वर्षगांठ मानाने की तैयारी बड़े जोर शोर से कर रहा था, ठीक उससे पहले १२ अगस्त १९४९ को गढ़वाल की सांस्कृतिक नगरी पौड़ी जिले के पौड़ी गांव में सुमुद्रा देवी और उमराव सिंह जी के घर एक अनमोल बालक ने जन्म लिया, माता पिता ने बड़े प्यार से बालक का नाम नरेंद्र रखा, माता पिता को आस थी की बड़ा होकर उनका पुत्र जरुर लोक में उनका नाम रोशन करेगा, बचपन से ही विलक्षण प्रतिभा के धनी नरेन्द्र सिंह नेगी जी को अपनी लोकसंस्कृति और अपने पहाड़ से असीम लगाव पर प्यार था, उन्हें अपने पहाड़ की हर वस्तु बेहद प्रिय लगती थी, जब भी घर गांव में कोई भी कार्यक्रम होता तो नरेंद्र सिंह नेगी जी उसमें बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते, नेगी जी का बचपन बेहद कठनाइयों में बीता और संघर्षमय रहा, १२ वीं तक की पढाई के बाद भी उन्होंने गायन और लेखन के बारे में नहीं सोचा था, १९७० के दशक में उनका झुकाव गायन की और हो गया, १९७४ के एक प्रशंग- जिसमे देहरादून के एक अस्पताल में चारपाई पर लिखे गीत – सैरा बस्ग्याल बणू मा, रूडी कुटण मा—– से शुरू हुआ सफ़र आज भी अविरल जारी है, नेगी जी ने शुरुआत गढ़वाली गीतमाला से की जो 10 अलग अलग भागों में थी, अपने पहले एल्बम का नाम भी उन्होंने पहाड़ के खुबसूरत फुल –बुरांश के नाम पर रखा, अब तक नेगी जी १००० से भी अधिक गीतों को अपनी आवाज दे चुकें हैं, इनके गाये हर गीत ने धूम मचाई, जिसके बाद आकाशवाणी लखनऊ नें 10 अन्य लोककलाकारों के साथ नेगी जी को सम्मानित किया, नेगी जी के जितने प्रशंसक पहाड़ में है उससे भी ज्यादा विदेशों में भी, वे अब तक कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, युएई, मस्कट, सहित कई देशों में अपनी प्रस्तुती दे चुकें हैं।

नेगी जी के गीतों की बात करें तो अब कत्गा खैल्यु, उठा जागा उत्तराखंड, कारगिले लडैमा, कैथे कोज्याणी होली, खुद, घस्यारी, छिबडाट, छुंयाल, जय धारी देवी, टका छीन त टकाटका, टपकरा, ठंडो रे ठंडो, तू होली बीरा, तुम्हारी माया मा, दगडीया, नयु नयु ब्यो ची, नौछमी नारेंण, बरखा, बसंत ऐगी, रुमक, माया कु मुंडोरु, से लेकर अनगिनत एल्बम को अपनी आवाज दी, जिसमे हजारों गीत को अपनी आवाज दी,—- नेगी दा के गीतों की बड़ी लिस्ट है हर गीत अपने आप में बेजोड़ है लेकिन आज कुछ ख़ास गीत जिन्होंने अपनी अलग ही छाप छोड़ी,— ठंडो रे ठंडो मेरो पहाड़ कु हवा ठंडी, पाणी ठंडो – गीत के जरिये पहाड़ के मौसम और पानी की मिठास को उकेरा है,– मेरा डांडी कांठी कु मुलुक एई बसंत ऋतु मा ऐई — के जरिये पहाड़ की सुंदरता को जीविन्त कर दिया,– टिहरी डूबेण लगी च बेटा, अबरी दों तू लम्बी छूटी लेकी एई — के जरिये विस्थापन की त्रासदी को उकेरा,—- जब तलक वे साकी निभेजा –, में जीवन के संघर्ष की दास्तान तो –बीरू भड कु देश बावन गढ़ कु देश — गीत के जरिये उत्तराखंड के ५२ गढ़ों के बारे में बतलाया,– न दौड़ न दौड़ तें उन्द्यारू कु बाटू — गीत में बदस्तूर पलायन को चरितार्थ किया, तो भुला कख जाणा छा तुम लोग उत्तराखंड आन्दोलन गीत के जरिये राज्य आन्दोलन को घर गांव तक पहुँचाया —- तो — मेरो को पहाड़ी पहाड़ी मत बोलो में देहरादून वाला हूँ— के जरिये देहरादून के प्रति लोगो के मोह और देहरादून में रहने वाले लोगो की पहाड़ के प्रति धारणा को बड़े ही सुंदर ढंग से उकेरा है,——– वहीँ हाथ ने विस्की पिलाई, फुलू न पिलाई रम —- गीत से लेकर अब कत्गा खेलु — गीत के जरिये वर्तमान राजनीति पर तंज कसे ——-, तो नौछमी नारायण गीत ने तो पूरे देश में राजनीतिक भूंचाल तक ला दिया था, गीत ने सूबे के सरकार को ही बदल कर रख दिया था, इस गीत का इतना असर हुआ की तत्कालीन सरकार को इसे प्रतिबंधित करना पड़ा,  नेगी जी के द्वारा यह गीत उत्तराखंड के विकास के लिए अभिशाप भी जनता मानती है क्योंकि जो नीब तिवारी सरकार ने रखी है वह 5साल सरकार ओर चलती तो विकास के लिये राजस्व की कमी नहीं होती। आज नोयडा उत्तर प्रदेश की  रीड उनकी देन है ।उनके गीतों ने समाज में अपना ब्यापक असर डाला और इनके गीत जनगीत बन गये। 

नेगी जी के गीतों ने समाज को एक नई दिशा दी साथ ही भाषाओँ के बंधन को भी तोडा, उत्तराखंड की सांस्कृतिक विरासत की बानगी हैं नेगी दा के गीत। नेगी दा को डी लिट की उपाधि से नवाजे जाने पर एक बार फिर ढेरों बधाईया।लोक और पूरा पहाड़ गौरवान्वित हुआ।

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