कोई भी शादीशुदा आदमी अपनी पत्नी का मालिक नही,न ही पत्नी ,पति की जागीर है,ये मैं नही कह रहा हूँ माननीय सुप्रीम कोर्ट ने आज व्यभिचार ,यानि एडल्ट्री पर निर्णय देते हुए धारा 497 को असंवैधानिक करार दिया,माननीय न्यायलय में आदरणीय प्रधान न्यायाधीश समेत अन्य न्यायधीशों ने कहा कि धारा 497 महिलाओं को उनकी पसंद से वंचित रखती है,साथ ही धारा 497 सँविधान द्वारा दिए गए अधिकार जिनमे धारा 14-समता का अधिकार,15- धर्म जाति, लिंग अथवा जन्मस्थल के आधार पर भेदभाव,21 -दैहिक स्वतन्त्रता का अधिकार का उल्लंघन ,आदि में महिलाओं के साथ भेदभाव करता है,साथ ही ये कहा गया कि ये महिलाओं के सम्मान को नष्ट करती है,महिला की गरिमा से वंचित रखती है,इसमें सबसे बड़ी बात आज ये कही गयी कि शादी के बाहर सैक्स सम्बन्ध यानि यौन संबंध अपराध नही है,बल्कि शादी के बाद उपज असंतोष हो सकता है,साथ ही कहा गया कि शादी के बाहर सम्बन्धों पर पति ,पत्नी का बराबरी का हक है।जिससे स्प्ष्ट है कि हम अपने ऋषि मुनियों के आदर्शों के बजाय पश्चिमी सभ्यता,फूहड़ता की तरफ जा रहे है,अब चूंकि माननीय न्यायलय ने धारा 497 में 158 वर्षो से चली आ रही व्यवस्था को बदल दिया है तो ये ऐतिहासिक ही कहलायेगा। मैं माननीय उच्चत्तम न्यायलय के इस फ़ैसले से थोड़ा हैरान हूं क्योंकि जो देश ऋषि ,मुनियों के आदर्शों को मानता हो,जहाँ पर पति पत्नी के रिश्ते को एक पवित्र रिश्ता माना जाता है,और साथ ही हर पति पत्नी 7 जन्मों तक रिस्ते निभाने की बात करते हो कसमें लेते हो,जहाँ पर पत्नी, पति को भगवान और पति, पत्नी को देवी के रूप में देखते है वहाँ पर ऐसे निर्णय थोड़ा सा मन को पीड़ा जरूर देते हैं। हमारे देश में अहिल्या,सीता,सती अनुसुइया, दुर्गावती,रानी लक्ष्मीबाई,तीलू रौतेली,रामी बौराण जैसी पतिव्रता नारी रही है, उसी देश में इस तरह के फैसले हैरान जरूर करते हैं, जहाँ पर मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम जी के आदर्शों को माना जाता हो ,जहाँ पर अनेकों देवी देवताओं ने उच्च आदर्श सबके सामने रखे हों, ऐसे देश में पति, पत्नी का पराये पुरुष,या पराई महिला के साथ सैक्स के लिए स्वतन्त्रता की बात कुछ हजम सी नही होती,हम आने वाली पीढ़ी को क्या आदर्श देना चाहते हैं? क्या सच में आज इतनी आधुनिकता मेरे भारत में आ गयी कि यहाँ पर यौन सम्बन्ध के लिए पति ,पत्नी के पवित्र रिस्ते को भी नजरअंदाज किया जाये?क्या आज के समय की सबसे बड़ी समस्या सैक्स समस्या है जिसके लिए ऐसी खुली छूट दी जाये?खैर क्योंकि ये फैसला मेरे देश के सर्वोच्च अदालत ने दिया है तो मैं इसको गलत नही कह सकता हूँ,क्योंकि शायद हमारे विद्ववान न्यायधीशों को ऐसी कुछ बड़ी समस्या दिखती हो। हमारे भारत देश की संस्क्रति,यहाँ के आदर्श,यहाँ के रिवाजों की विदेशों में बड़ी सराहना होती है और विडंबना तो देखिये धारा497 के लिए चीन,जापान और ब्राजील का उदाहरण दिया जा रहा है कि इन देशों में धारा 497अपराध नही है तो हमारे देश में भी इसको अपराध न माना जाये। अरे हम ये क्यों भूल गए कि हम स्वामी विवेकानन्द,राजा राम मोहन राय,स्वामी रामकृष्ण परमहंस,आर्यभट्ट,महर्षि अरविन्द,आचार्य श्रीराम शर्मा के वंशज है जिन्होंने देश दुनिया को एक नई राह दिखाई,शांति और भाईचारे की नयी मिशाल पेश की,ऐसी क्या आफत आन पड़ी कि हमे दूसरे देशों की संस्क्रति को अपनाना पड़ रहा है?आज के फैसले से तो एक तरह से छूट ही मिल गयी ,इस तरह से अवैध सम्बन्ध बनाने की,मैं यही कहूंगा कि भले ही माननीय न्यायलय ने धारा 497 को खत्म ही कर दिया हो लेकिन कोई भी शादीशुदा भाई बहन किसी भी गलत भावना या गलत सम्बन्धो को न तो पनपने दे और न बढ़ावा दे,हमारे देश या समाज में इस तरह के सम्बन्ध हमेशा ही अवैध कहे गए है है और हमेशा इन सम्बन्धो को नकारा ही जायेगा,पति, पत्नी के बीच में आपसी प्रेम और विश्वास बना रहे यही कामना करता हूँ। मै महिलाओं को समान अधिकार देने का प्रबल समर्थक हूँ,महिलाएं आज किसी भी क्षेत्र में कम नही है,हर क्षेत्र में अपना लोहा मनवा चुकी है,जो कि सुखद है,लेकिन इस तरह की स्वतंत्रता न पुरुष के लिए सही होगी न महिला के लिए कि शादी के बाहर आप यौन सम्बन्ध के लिए स्वतंत्र है। महिला की निजता बनी रहे,महिलाओं को उचित सम्मान मिले,महिला एक आदर्श पत्नी,आदर्श माँ,आदर्श बहन,आदर्श बेटी बनकर हम सबका मार्गदर्शन करती रहे,हमे स्नेह देती रहे,और हम सब भी उनको देवी रूप में देखें न कि हर महिला पुरुष के रिश्ते में सिर्फ यौन सम्बन्ध को ही प्रमुखता हो,इस तरह के सम्बन्ध परिवार में बिखराव ही ला सकते हैं,अतः सभी भाई ,बहन माननीय सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर आजादी की खुशी मनाने के बजाय इस पर मंथन जरूर करें, सभी के सुखद और खुशहाल परिवारिक जीवन की कामना करता हूँ।
नोट-ये सिर्फ मेरे मन में उपजे विचार हैं,जिन्हें किसी का विरोध न समझा जाये।
भारत माता की जय।
जय हिन्द।
चन्द्रशेखर पैन्यूली।