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गैरसैण हेतु लम्बे समय से आन्दोलन कर रहे ??

Pahado Ki Goonj

(दिनाँक 20 सितम्बर18 को बाल व्यास ने पहाड़ों की गूंज के सम्पादक जीतमणि पैन्यूली से अखण्ड आशीर्वाद प्राप्त करदिया है।)

देहरादून,उत्तराखण्ड की स्थायी राजधानी के लिए गढ़वाल कुमाऊँ के केन्द्रबिन्दु,गैरसैण (भराड़ीसैण)हेतु लम्बे समय से आन्दोलन कर रहे आंदोलनकारियों का पहाड़ों की गूंज राष्ट्रीय साप्ताहिक समाचार पत्र हमेशा से समर्थन करते आया है , कारण यह सोच वीर चन्द्रसिंह की है।उनकी सोच को जिंदा रखने के लिए देश को बचाये रखने केलिये जरूरी है।पहाड़ में राजधानी होने से सभी प्रकार की समस्या का समाधान होगा ।उत्तराखंड में आज इच्छा शक्ति का अभाव है ।पत्र का मानना है कि हाथी के पांव में सबके पाँव । उत्तराखंड को कलंकित होने से बचाने के लिए राजधानी गैरसैण लेजानी आवश्यक है । हो क्या रहा कि ऐसा लगता ही नहीं है कि हम उत्तराखंड देव भूमि के लोग हैं।चोर चकों की फ़ौज मौज ले रही है आम आदमी उत्तराखंड का पलायन करने को मजबूर हैं ।इन 18 बर्षों में कोई भी विभाग नहीं बचा हुआ है जिसमें भ्रष्टाचार नहीं किया गया हो। इतना तक कि फाइल गोल होरही है।उस पर कार्यवाही शून्य होगई क्योंकि लगता है पहाड़ो में राजधानी बनेगी तो यहाँ की परिस्थियों से अभी तक देहरादून में ही बैठकर विभिन्न जाल बुन कर अपने हित के अनुसार नीतियां बना रहा है। वह नीति बनाने वाले अफसर सीधे तौर से पहाड़ की समस्यओं से वाखिफ होंगे और इससे पहाड़ के विकास की एक नई राह खुलेगी,जब वो पहाड़ में ही बैठेगें, यहाँ से आना जाना करेंगे,वो हिचकोले खाते संकरी सड़कों के बारे में सोचेंगे, अस्पताल में डॉक्टरों के जॉइनिंग के बारे में सोचेंगे,वो स्कूलों में मास्टरों के बारे में सोचेंगे,वो स्कूलों के बन्द होने के कारण समझ पाएंगे,वो पहाड़ के खेती किसानों के लिए विकट जीवन को नजदीक से देख पाएंगे, जानेंगे ये सब तब ही होगा जब वो स्वयं पहाडों में बैठेंगे,यानि राजधानी गैरसैण में काम करेंगें ।यहां पहाड़ पर चढ़ कर अधिकारी को मोटी पागर लेकर जरूर अपने कर्तव्य करने का अहसास होगा ।उसके अंदर नकारात्मक ऊर्जा को हटाने केलिये राजधानी लेजानाजरूरी है ।इन 18 वर्षों में हरिद्वार,उधमसिहनगर, देहरादून तक ही अधिकांश बजट खत्म हो रहा है,मैदानों के हिसांब से ही नीतियां बन रही है,पहाड़ी राज्य में ही पहाड़ के विकास की नीति कहीं खो सी गयी है। उत्तराखंड के दस जिले इन तीन जिलों के उपनिवेश होगये। आज उत्तराखंड की समस्या विकास की समस्या गैरसैण के बगैर विनाश की बनगई। जिसने कम समय काम करके वेइमानि से ज्यादा कमा लिया वह देश भगति ईमानदारी की बात करता है। उत्तराखंड आर्ट आफ अर्निग का केंद्र देहरादून बन गया है । गैरसैण राजधानी लेजाने का मतलब यह है कि देश की आजादी के महान क्रांतिकारी योद्धा वीर चन्द्रसिंह गढ़वाली की पहाड़ के विकास की सोच एवं देश की रक्षा की सोच को जिंदा बनाये रखना है।क्योंकि पहाड़ का रहनेवाला ,जैसलमेर की सीमाओं पर58 डिग्री ताप मान में दुश्मन के साथ लड़ने को तैयार है कारगिल के युद्ध में ऊपर से गोले बरषे नीचे से सैनिक खड़ी चढ़ाई चढ़ते हुए विजय हासिल की ।सियाचिन ग्लेशियर में देश रक्षा के लिए रहना ।यह सब पहाड़ पर जीवन यापन करने वालों से ही विजय सम्भव है।वर्ष 1974 जून मे मेरी मुलाकात वीर चन्द्रसिंह गढ़वाली जी से पौड़ी बस स्टैंड पर हुई थी उनके हाथ पर चदर का बना भौंपू ,कहीं पर भी भीड़ में भोम्पू से राज्य बनाने के लिए राजधानी गैरसैण की बात करते थे।यह क्रम उन्होंने अपने चलते फिरते तक बनाये रखा ।
यह सोच वीर चन्द्रसिंह की है।उनकी सोच को जिंदा रखने के लिए देश को बचाये रखने केलिये जरूरी है। जिन्होंने चन्द्रसिंह गढ़वाली को देखा उनको समझा है उनको देखा हुआ मनुष्य ,वह मनन कर राज धानी गैरसैण के लिये अपने प्राण भी त्यागने मे अपना अहोभाग्य समझेगा कि उसके नाश्वर शरीर की मिट्टी प्रदेश ,देश के लिए काम आएगी।मनन करने वाले को मनुष्य कहते हैं जो मनन नहीं कर सकते हैं वह मनुष्य रूप मे नर पिचास ,राक्षस ,पशुओं का जीवन जी रहे हैं उनसे अच्छे कार्य करने की आशा करना भारी भूल साबित होरही है। इसके लिए जगह जगह धरने जनजागरण कर उनकी सोच बदलने की जन हित में आवश्यकता है।

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