बंदर का आतंंक गाँव मे खाने के लिये घरौं से ले जा रहे है
चन्द्रशेखर सुधीर पैन्यूली
लिखवारगावँ भदूरा( टेहरी):पिछले सप्ताह घर गया था लगभग 6 दिन गांव में रुका, पर पलायन के कारण गाँव में भारी सूनापन है,सोचकर ये गया था कि इस बार गाँव में ताजी कददू, लमेंडा,ककड़ी आदि का लुत्फ उठाऊंगा ,पर हैरानी की बात 6 दिन तक रुकने के वावजूद भी कोई भी चीज खाने को नही मिली,पता चला बंदर इनको उगते ही खा रहे हैं, बंदरो का उत्पात पिछले 4,5 साल से हमारे गाँव में कुछ ज्यादा ही हो गया है,ककड़ी खाने की इच्छा भी धरी रह गयी,अपने कई पुराने अडडों की तरफ रुख किया कि शायद कहीं कोई ककड़ी मिल जाये पर नही मिली ककड़ी कहीं भी सो बिना ककड़ी,कददू, लमेंडा,लौकी आदि घर की चीजों का स्वाद तक नही मिला,दुसरा इस सीजन में पहले गाँव में लोगों का खूब दूध होता था कारण अधिकतर लोग भैंस गाय पालते थे और लोगो की गाय भैंस इस सीजन में अच्छा दूध देती थी तो लोग इस सीजन में हर तीसरे दिन और कभी कभी तो प्रत्येक दिन खीर बनाते थे,लेकिन इस बार मुझे सिर्फ 1 टाइम ही 6 दिनों में खीर चखने को मिली,कुल मिलाकर गाँव में सन्नाटा है,असल कारण पलायन ही दिखा मुझे,जो लोग आर्थिक रूप से स्मृद्ध हुए वो गाँव छोड़कर गाँव को भूल से गये,बस हम जैसे ही आर्थिक स्थिति से कमजोर लोगों के परिवार ही गाँव में रह गए जो अब दूसरों की देखा देखी में अपनी खेती बाड़ी,पशुपालन की तरफ निराशा का भाव रखने लगे है,खेत बंझर होने की कगार पर है और जानवरों के ठिकाने सूने से हो गए हैं, इस सीजन में छानी की तरफ बिलकुल सन्नाटा हो गया है,कुल मिलाकर मुझे जितना दुःख पलायन का है उतना ही इस सीजन में ककड़ी,खीर आदि न खाने से है।