पैन्यूली द्वारा इष्ट देव श्री बटुक भैरव के साथ साथ श्री नागराजा की पूजा करना श्री नागराजा की कृपा से जुड़ा है।
श्री बटुक भैरव मंदिर आचार्य पीताम्बर दत की रेख देख में बनाया गया निचे से ऊपर 5वीं लाइन पर स्थित है।
सन 1963-64मे निर्मित श्रीनागराजा मंदिर (फाइलफोटो)
टेहरी गढ़वाल (रियासत देश) मे पैन्यूली जाति का इतिहास पनियाला रौनन्द रमोली में480वर्ष पूर्व बसावट का माना जाता है और पनियाला से लिखवार गावँ भदूरा आने का 408 वर्ष का है वहां प्रातः स्मरणीय श्री ब्रह्मदेव जी अपने शिष्य ब्रह्मनाथ के साथ आये वहाँ घरों में पीने का पानी आदि पुरूष को न मिलने पर उन्होंने इष्ट बटुक भैरव की कृपा व अपने तप के बल से उस स्थान पर पानी निकाल लेना दैवीय अंश के चमत्कारी घटनाओं का बर्णन है। वह पानी आज भी बर्तमान में श्री पुरषोत्तम पैन्यूली पूर्व प्रधान के घर के बगल में बराबर आरहा है। तब उनकी दिनचर्या में ख्याति अर्जित होगई उनसे गुरु दीक्षा इलाके के यजमान रमोला,कलूड़ा ,राणा ,रावत आदि लेने लगे ।उनको साथ लेकर पूजा पाठ करते थे इस बीच बौसांडी में रावत लोगोँ के घर मे सावन के माह श्री सत्यनारायण की कथा का आयोजन था कथा के दिन उपरी इलाके में वर्षा होरही थी। कथा के बीच असमान में तेज वर्षा होने लगी।कथा के संम्पन होने पर पंडित जी को यजमान को सुफल देकर अपने घर आना था ।ऐसा करना यजमान केलिये फलदायी होता है ।यह मान्यता आजभी है।पूजा करने के बाद पंडित जी को मर्यादित यजमान घरतक छोड़ते हैं। उस समय जलकुर नदी में पुल नहीं था ।यजमान को बौसाडी के नीचे जलकुर नदी पार कर घर सकुशल जाने कीं काम ना लेकर यजमान के घरसे चले, पर नदी सातवें आसमान पर बह रही थी।अब यजमान के घर तो जाना नहीं था विकल्प घर पहुंचने का ही था। बाघ भी शिकार के लिये घूम रहा था। उसकी आवाज सुनाई देरही थी ।पर घर पनियाला जांय कैसे? तो जबाब दारी यजमान ने मानी।उनका इष्ट श्रीनागराजा है।पंडित से श्री नागराजा की स्तुति करा कर नदी का जलस्तर घटने लगा।नदी का जल स्तर उनके पार करने की सीमा पर आने पर उन्होंने नदी को पार किया।
पंडित जी अंधेरी रात्रि में सकुशल नागराजा की छत्र छया इष्ट बटुक भैरव की कृपा से पनियाला पहुंच गये।रात्रि में प्रकाश दिखा कर पहुंचने कीसूचना देदी। तबसे नागराजा भगवान की पूजा अर्चना से भगवान की कृपा हम सभी पर बनी रहती है। लिखवार गावँ में नागराजा मंदिर कोई 5फिट ऊंचाई का काफी जीर्ण शीर्ण होगया था लिखवार गावँ के पांडव नृत्य के निजा निशान भी वहीं रखे रखे पूर्ण होने जारहे थे।बंदनीय प्रातः स्मरणीय पुज्य माता श्रीमती स्व जानकी देवी के पेट के दर्द से बीमार रहने के चलते,उस समय जांच के साधन भी नही थे।तो पुज्य माता श्री के स्वास्थ्य ठीक होने की कामना श्री बटुक भैरव नागराजा से करते हुये प्रातः स्मरणीय पिता श्री स्व परमानंद जी ने माता श्री के ऑपरेशन देहरादून में कराने के लिए जाने से पहले नवम्बर वर्ष 1963से मंदिर ठेकेदारी में स्व खिला नद पैन्यूली,आदि बनयाणी निवासी से बनवाया। अब वर्तमान मन्दिर बटुकभैरव के नाम से प्रचलित हैं जिसमें प्रधान बटुक भैरव श्री राधाकृष्ण ,गणेश जी बाहर शिव मंदिर है इस प्रकार श्री नागराजा की कृपा हम सबके ऊपर बनी हुई है।आस्था के इसीक्रम को आगे बढ़ाते हुये 28जून2018 को बटुक भैरव की सामुहिक पूजा की बैठक में सामुहिक ढोल बनवाने के लिये संपादक जीतमणि पैन्यूली द्वारा किये गए अल्प प्रयास से मंदिर समिति ने दि0 4 -9-2018 को कृष्ण जन्माष्टमी में श्री नागराजा के नव निर्मित ढोल का सुधी करण की पूजा का आयोजन किया है ।सभी पर श्री कृष्ण भगवान की कृपा बनी रहे ।जय बटुक भैरव जय श्री नागराजा ।