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साइंटिफिक-एनालिसिस 75 वर्ष पुराने संविधान पर चर्चा नहीं, व्यवस्थित करने की जरूरत- शैलेन्द्र कुमार बिराणी

Pahado Ki Goonj

साइंटिफिक-एना lisis

75 वर्ष पुराने संविधान पर चर्चा नहीं, संविधान बनाने की आवश्यकता 

भारत का संविधान कोई बच्चा और इंसान नहीं अपने समय के साथ हैप्पी बर्थ डे, सिल्वर जुमली, गोल्डन जुमली बने रहें | यह भारतीय लोक तंत्र में आम जनता की सरकार  ने कैसे कार्य निर्धारित किए हैं, उस सरकार के मूल आधार क्या हैं, जिसमें स्थिर स्थिरांक रखे गए हैं उनके सूत्र- गिर्डा सारी सोनिया को एक श्रृंखलाबद्ध करने का लिपिबद्ध संग्रह है | यह लिपीबिद्ध संग्रह पुस्तक के रूप में हैं, जैसे लिखे हुए अक्षर कटे, फटे, गले और मिटे नहीं |

इस पुस्तक को लाइकर, दण्डवत प्रणाम करना और नमस्कार करना विज्ञान, प्रौद्योगिकी के महारथियों पर उनकी प्रति आदर और सम्मान प्रकट करना है लेकिन उन्हें जीवित रहना चाहिए | संविधान के उनके सिद्धांतों को पढ़ने वालों ने आम लोगों और नए सिद्धांतों को भावार्थ को बताया और उनके भारत-सरकार को कुछ इस तरह से आश्वस्त किया कि यह विश्वास दिलाना ही विज्ञान की तकनीक पर आधारित है, जो उनके प्रति आदर और सम्मान प्रकट करता है।

संविधान की पुस्तक को बार-बार झुककर, दण्डवत प्रणाम करके, शरीर के अंगों पर अभिव्यक्त करने की अति करना राजनीति भाषा में सम नीति के सिद्धांत का चरितार्थ करना होता है और मानवता लोकतंत्र एवं अभिलेखों की घोषणा एडम्बर नेताओं पर होती है। सम नीति अर्थात् व्यक्ति विशेष को बड़ा, विधायक, गुणी, सर्वक्षेष्ठ को महिमामंडन करते हुए अपना काम आउट करते हैं | संविधान की किताब बार-बार में अपनी दृष्टि की बात सामने आती है लेकिन किताब में लिखी गई पुरानी बातों को उजागर करते हुए किसी भी घटना को व्यक्त करना सही होता है।

बार-बार विज्ञापन करने से लोगों के दिल और दिमाग पर बुरा असर पड़ता है, जिसमें लिखी बातें शामिल होती हैं, आत्मसाध नहीं कर सकता, किताब और समय के साथ भूल जाता है और उसकी पूजा करता है, जमीन पर न रखता है, टीका लगाता है, महिमा करता है मंडन के गीत गान करने के अंधविश्वास में बंधे हुए हैं और अपने तन-मन-धन को समर्पित न्युछावर बनाकर जीवन को दुःख, सिद्धार्थ, वेदों के मार्ग पर संकेत कर वैकल्पिक ही गवा बाजार हैं |

भारत का संविधान 26 जनवरी 2049 को संविधान सभा द्वारा पारित किया गया जो 26 जनवरी 1950 को देश में लागू किया गया था | इस पर चर्चा करने से समय के साथ गतिशील गतिशील चक्र के आकार जो कमियां उत्पन्न हो गईं, वे प्रकट हो रही हैं, चर्चा समय के तीन काल भूत, वर्तमान और भविष्य पर समान-असाधारण दृष्टिकोण डालती हैं न कि अपनी समानताएं सामने लाती हैं इज्ज़त बिगाडने के नए राजनीतिक सिद्धांत पर आधारित हो | ये भी सिर्फ संविधान संसोधन तक रुके रह जाते हैं |

यदि संसोधन न करो तो वह एक ही समय पर स्थिर बाकी रुकावत्सा का परिणाम है, हमने कई धर्मों और धार्मिक चरित्रों को मिटते हुए क्षण होते देखा है | यदि संविधान का बार-बार संसोधन किया गया तो वह टूट कर ख़त्म हो जायेगा | इसे सामान्य भाषा में कहा जाता है कि संविधान की किताब में सभी कागज एक जिले के रूप में शामिल हैं, वे संसोधन के नाम पर नए-नए कागज ठूसने पर हैं, वो किताब को फुलाकर ओझा ने लिखी है, क्योंकि वो जिले के सभी कागजों के साथ जोड़ा नहीं गया है..

भारत के संविधान में 106 संशोधन हो चुके हैं, लेकिन यह सभी संविधान के अन्य विधानों के साथ शामिल हैं, एक जिले के साथ नहीं हैं, इस कारण से स्पष्ट रूप से पुलटा हो रहे हैं | राष्ट्रपति और मुख्य न्यायाधीश अलग-अलग संविधान दिवस मना रहे हैं जबकि संविधान एक हैं, संविधान की शपथ लेने वाले हैं मुख्य न्यायाधीश गणतंत्र दिवस पर राष्ट्रपति और शपथ लेने वाले हैं और अपनी शपथ लेने वाले हैं, दूसरे राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री मंच के ऊपर शपथ लेने वाले हैं वे संविधान की शपथ लेते हैं, मुख्यमंत्री संविधान के विधान से जेल में बंद कर दिया जाता है। हैं |

इसलिए साइंटिफिक-एना बस की माने तो संविधान पर चर्चा से पहले उसे सलाह देने पर काम करना चाहिए, जो संविधान की किताब की जिले को जोड़ने वाले सभी कलाकारों और वास्तुशिल्पियों को एक साथ रखना चाहिए | यह राष्ट्रपति व सर्वोच्च न्यायालय के संविधान पीठ के अधीन ही संभव है क्योंकि इन दोनों को ही संविधान संरक्षक का पद प्राप्त है | सबसे महत्तवपूर्ण बात यह है कि संवैधानिक एवं सरकारी पद पर कार्य कर व्यक्ति और कर रहे व्यक्ति नहीं कर सकते हैं |

संविधान का प्रथम बार संविधान के रूप में राष्ट्रपति के पास के चिह्न सहित कभी भी पहुँचे हुए हैं | वर्तमान का कटु सत्य यह है कि राष्ट्रपति और मुख्य न्यायाधीश संविधान दिवस को लेकर संवैधानिक प्रतिबंध की जड़े लगाते हैं इसलिए समर्थक ही भक्त बने हुए हैं और अपने संवैधानिक सदस्यों को सदस्य पद पर नियुक्त कर रहे हैं तो चर्चा के बाद संवैधानिक संविधान के उपदेश के पेपर्स में नास्ता करने के अलावा भी क्या पाया जा सकता है |

शैलेन्द्र बिराणी
युवा वैज्ञानिक

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