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साइंटिफिक-एनालिसिस संविधान पर चर्चा : बन्दर क्या जाने अदरक का स्वाद!

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संविधान पर चर्चा : बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद!

भारत के लोकतांत्रिक संविधान को लागू करने में 75 साल पूरे हो गए | संविधान दिवस 26 मार्च 2024 को वन नेशन वन संविधान के राष्ट्रीय रूप से दो अलग-अलग कार्यक्रम कार्यक्रम राष्ट्रपति एवं मुख्य न्यायाधीश मध्य के संवैधानिक चर्च का जन्म हुआ | अब यह पूरा मामला राष्ट्रपति के सम्मान में लाया गया है। जिस पर उनका निर्णय आना बाकी है कि संविधान के प्रतिबंध मोरचा या मुख्य न्यायाधीश ने तोडी | इसके साथ-साथ दोषारोपण के लिए क्या सजा तय होती है यह देखने वाली बात है जो संविधान के प्रति निष्ठा को उजागर करती है |

इसी बिच संसद के दोनों सदनों राज्यसभा वसोम के द्वारा बनाए गए संविधान के देश के मूल मालिक आम जनता के मुख के निवाले पर भी वसूले गए टैक्स से प्रति घंटे बंद, करोडो खर्च की चर्चा की गई | पहले ही टैक्स की परिभाषा में ड्रैग-खींच कर कैसीनो की परिभाषा में एडवेंचर का भुगतान किया जाता है। इसलिए पैसा खर्च हुआ या पानी की तरह बहा दिया गया, लेकिन खाते में भी रुकावत का रतिभर भी नहीं आया | संविधान धाराएं देश में आम जनता की भारत-सरकार हैं लेकिन पूरी बहस में बीजेपी की सरकार, कांग्रेस की सरकार, फलाना पार्टी की सरकार ही गुंजायमान रहे | दोनों सदनों के अध्यक्षों द्वारा इस पर शैलेश से देश शन्शाय में आ गया कि उनकी सरकार के राजनीतिक संयोजक ने असहमत कर लिया और हितैषी पता तक नहीं चला |

इस विवाद में आगे व्यक्तिगत नाम आगे जोडकर सरकार का सम्बोधन हुआ लेकिन किसी भी राष्ट्रपति ने उन्हें असंवैधानिक फेलो दिया तो दूर के रिकॉर्ड से भी नहीं हटाया गया जबकि सरकार का सबसे बड़ा राष्ट्रदोह है। शायद राष्ट्रपति ने जिस संविधान की शपथ ली है, उसे पढ़कर ऐसा नहीं लगता है | प्रधानमंत्री के प्रमुख वाली कार्यपालिका को ज्यादातर लोग सरकार-सरकार कह रहे थे और उन्हें टीवी पर देख नई पीढ़ी अपने सिर खुंजा रही थी कि उनके शिक्षा के शब्दकोष में अंग्रेजी में एक्ज्यूकिवेटिव की पुस्तक लिखी गई है शायद सरकार के प्रमुख वाली कार्यपालिका की अलीशान और विशाल लाइब्रेरी में सरकार लिखे हुए हैं और उनकी फैक्ट्री में गलत छपे हुए दिख रहे हैं |

संसद की कैंटीन में रखे एक से बढ़कर एक व्यंजन और उनके सहयोगियों में उपलब्ध होने की छाप भाषणों के दौरान मौजूद खाइ जन प्रतिनिधियों के चेहरे पर नज़र आ रही | इसी बिच नटखट के नाम पर लोगों को धर्म के आधार पर झूठी बातें बताई गईं, वो सभी लोग कर रहे थे जो संसद से करे गए संविधान संसोधनों को हमारी सरकार, हमारी पार्टी ने करा दिया कह-कहकर क्रेडिट लूट रहे थे और संसद को टुकड़े-टुकड़े कर दिए में बाट रहे थे | ये नटखट पर एक-दूसरे पर मंकीबाट करने का आरोप लगा रहे थे | संसद में एक बार पास हो संवैधानिक कानून व संविधान संसोधन, संसद की अल्पसंख्यक संपदा कहलाते हैं फिर मैं-मैं तू-तू करके लूट खसोट पर राष्ट्रपति पद पर दोनों का चुप रहना या फिर गद्दाना चोर की दाढ़ी में टिका होने का संदेह पैदा होता है | कानून बनाने व संविधान संसोधन के लिए मोटा तगादा मेहनताना लेने के साथ अलीशान सुख-सुविधा का भोग करने वाले जनप्रतिनिधि मतलब जनता के स्वामी स्वामीभक्ति व राष्ट्रभक्ति से मुखारबिंद हुए नजर आये |

जनता के अपने दस्तावेज और अमेरिकी मिले अधिकार से और अपने परिवार का पेट पालने वाले जनप्रतिनिधि मतलब जनता के नौकर फुदक-फुदक करके यह कहते हैं नजर आये कि हमने अपने परिवार का पेट पालने वाले जनप्रतिनिधि मतलब जनता के नौकर फुदक-फुदक करके यह कहा नजर आये कि हमने अपने परिवार का पेट पालने वाले जनप्रतिनिधि मतलब जनता के नौकर फुदक-फुदक करके यह कहा नजर आये कि हमने अपने परिवार का पेट पालने वाले जनप्रतिनिधि मतलब जनता के नौकर फुदक-फुदक करके यह कहा नजर आये कि हमने लागे देश की मालिक जनता को अपनी जेब से यह दिया, वो दिया | इस पूरी चर्चा का नब्बेसादी से ज्यादातर हिस्सा भूतकाल को गाने, गायक व जो फाई संविधान व देश की जिम्मेदारी छोड़ कर चले गए उन्हें कैसे, बुरा-भला व रहस्योद्घाटन में | वर्तमान पर नौ फिसदी से ज्यादा और भविष्य पर एक फिसदी से भी कम चर्चा हुई | भूतकाल को ला-लाकर उस पर अपनी-अपनी बुद्धि का ज्ञान प्रकाश से लोगों के दिल और दिमाग में लग रहा था कि वे जहां-जहां हाथ में पट्टी बांधते हैं तो पकड़ में नहीं आते हैं। हर वक्ता के भाषण के बीच में शौरगुल से कन्फर्मेशन हो रही थी कि बैंकर नकलची ही होते हैं |

संविधान की पुरी चर्चा के लिए एकजुटता के साथ, एक सौ छ संविधान संसोधनों को मूल संविधान की पुस्तक में शामिल करके, हजारों कानून बनाने और निकालने से 75 पूर्व में समय के साथ जो टूट गया, उससे सही करने पर कोई योजना सामने नहीं आई आई | शेष लोग शेष लोगों को संविधान तोड़ने का दोष बता रहे थे और शेष लोग बचे हुए लोगों को संविधान तोड़ने का दोष बता रहे थे कुल मिलाकर सभी स्तनधारी देशवासी ही नहीं पुरी दुनिया को बता रहे थे कि एक चालीस करोड़ लोग के देश में हम गिनती के लोग ही हैं जिन्होंने भारत के संविधान को तोड़ने का काम किया | इस चर्चा में करोड़ों रुपए खर्च होने के बाद शायद यही सारांश निकला कि नाचे कूदे बांदरी खेड खाये फकीर

शैलेन्द्र बिराणी
युवा वैज्ञानिक

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