नई टिहरी । जिस विकास के लिए फलते-फूलते टिहरी शहर को जलमग्न करने के साथ ही एक समृद्ध संस्कृति को दरबदर कर दिया गया हो, वह टिहरी बांध बनने के एक दशक बाद भी दूर-दूर तक नजर नहीं आ रहा। विकास के मायने सिर्फ देश का सबसे ऊंचा बांध बनाना और झील को वोटिंग के लिए खोलना ही नहीं, बल्कि क्षेत्र में आधारभूत ढांचे की मजबूती को लेकर भी है। इस लिहाज से देखें तो टिहरी बांध से न तो स्थानीय लोगों को बिजली-पानी मुहैया हो रहा और न सही ढंग से बांध प्रभावितों का विस्थापन हो पाया है। और तो और प्रतापनगर क्षेत्र तो झील की वजह से अलग -थलग पड़ गया है। 2006 में टिहरी बांध परियोजना के अस्तित्व में आने के बाद इसकी झील की जद में आने वाले टिहरी विस क्षेत्र के 1200 परिवारों को अभी विस्थापन का इंतजार है तो प्रतापनगर क्षेत्र के आठ गांवों की व्यथा भी ऐसी ही है। प्रतापनगर की डेढ़ लाख की आबादी को तो एक अदद पुल भी अब तक नसीब नहीं हो पाया है। इन मसलों का क्षेत्रवासी लगातार सियासतदां को ध्यान दिलाते आ रहे, मगर मजाल क्या कि किसी ने इसे गंभीरता से लिया हो। अब फिर से सियासी समर में उतरे सूरमा क्षेत्र की जनता के बीच हैं। जाहिर है, उन्हें भाग्यविधाताओं के ऐसे सवालों से जूझना पड़ेगा। बांध की झील के कारण टिहरी विस क्षेत्र के उत्थड़, नंदगांव, पिपोला, कैलबागी, भटकंडा व चोपड़ा गांवों में भूस्खलन और भूधंसाव की दिक्कत आने लगी है। घरों की बुनियाद हिलने के साथ ही दीवारों में दरारें पड़ चुकी हैं।यह भी पढ़ें: यहां पेयजल की बूंद-बूंद को तरस रहे हैं ग्रामीण स्थिति तब नाजुक हो जाती है, जब बरसात में झील का जलस्तर बढ़कर इन गांवों के करीब तक आ जाता है। यहां के 1200 परिवारों के विस्थापन के आदेश सुप्रीम कोर्ट भी कर चुकी है, मगर अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हुई।