आज दुनिया भर में ‘महिला दिवस’ के ही चर्चे हैं। हर तरफ भाषण-प्रवचन हैं, स्त्री-शक्ति की स्तुतियां हैं, कविताई हैं, संकल्प हैं, बड़ी-बड़ी बातें हैं। आप यक़ीन मानिए यह सब सच नहीं, आपको बेवकूफ़ बनाने के सदियों पुराने नुस्खे है। आपने अपनी छवि ऐसी बना रखी है कि कोई भी आपकी प्रशंसा कर आपको अपने सांचे में ढाल ले जा सकता है। झूठी तारीफें कर हजारों सालों तक दुनिया के सभी धर्मों और संस्कृतियों ने इतने योजनाबद्ध तरीके से आपकी मानसिक कंडीशनिंग की हैं कि अपनी बेड़ियां और बेचारगी भी आपको आभूषण नज़र आने लगी हैं।
जाहिर इन सब बातों के बीच बुनियादी सवाल यह उठता है कि अगर स्त्रियां पुरूषों की नज़र में इतनी ही ख़ास हैं तो आपने यह सवाल कभी क्यों नहीं पूछा कि किसी भी धर्म और संस्कृति में सर्वशक्तिमान ईश्वर केवल पुरूष ही क्यों है? प्राचीन से लेकर अर्वाचीन तक हमारे तमाम धर्मगुरु और नीतिकार पुरूष ही क्यों रहे हैं? क्यों पुरुष ही आज तक तय करते रहे हैं कि स्त्रियां कैसे रहें, कैसे हंसे-बोले, क्या पहने-ओढ़े और किससे बोलें-बतियाएं? उन्होंने तो यहां तक तय कर रखा है कि मरने के बाद दूसरी दुनिया में आपकी कौन-सी भूमिका होगी। स्वर्ग या जन्नत में जाकर भी अप्सरा या हूरों के रूप में आप पुरुषों का दिल ही बहलाएंगी।
दरअसल, ये सब आपके व्यक्तित्व और स्वतंत्र सोच को नष्ट करने के औज़ार हैं, जिसे अपनी गरिमा मानकर आप स्त्रियों ने स्वीकार कर लिया है। स्वीकार ही नहीं कर लिया है, सदियों से अपनी आने वाली पीढ़ियों को इन्हें स्त्रीत्व की उपलब्धि बताकर गर्व से हस्तांतरित भी करती आई हैं।
यकीनन क्या आपने कभी सोचा कि प्रेम, ममता, करुणा, सृजनात्मकता में ईश्वरत्व के सबसे निकट होने के बावज़ूद आप दुनिया के ज्यादातर मर्दों की नज़र में उपभोग और मौज़-मज़े की वस्तु, नरक का द्वार, शैतान की बेटी और ताड़ना की अधिकारी ही क्यों हैं? आपको नहीं लगता कि दुनिया की आधी और श्रेष्ठतर आबादी को अपने इशारों पर चलाने की यह हम शातिर मर्दों की चाल है? मेरी मानें तो आप महिलाओं को अब और झूठे महिमामंडन की नहीं, स्त्री-सुलभ शालीनता के साथ थोड़ी स्वतंत्र सोच, थोड़े स्वतंत्र व्यक्तित्व और बहुत-सी आक्रामकता की ज़रूरत है।
आपकी ज़िन्दगी कैसी हो, इसे आपके सिवा किसी और को तय करने का अधिकार नहीं। अगर सहमत हैं तो आज महिला दिवस पर मेरी तरफ से बधाई नहीं, एक मज़बूत-सी लाठी स्वीकार करें। इसे सहेज कर रखें और हम टुच्चे, मूर्ख और अहंकारी मर्दों के ख़िलाफ़ ज़रूरत-बेज़रूरत इस्तेमाल करते रहें! कभी-कभार उन स्त्रियों के ख़िलाफ़ भी जो धर्म और अच्छे संस्कारों के नाम पर बचपन से बुढ़ापे तक आपमें हीन-ग्रंथियां भरती रही हैं।