नई दिल्ली। भारत में योग सिखाने को लेकर पिछले दिनों रांची की एक लड़की राफिया नाज पर मुस्लिम कट्टरपंथियों ने जमकर निशाना साधा था। कहा जा रहा था कि जो काम वह कर रही है वह सब इस्लाम के खिलाफ है। लेकिन इन सभी के उलट इस्लाम की जन्मस्थली सऊदी अरब ने योग को खेलकूद का दर्जा देकर अपनी कट्टरवादी सोच को बदलने का सराहनीय कदम उठाया है। सऊदी अरब का यह कदम दुनिया के सभी इस्लामी देशों के साथ साथ भारत में कट्टरवादी सोच रखने वाले लोगों के लिए भी एक नसीहत है। ऑल इंडिया इमाम आर्गेनाइजेशन के चीफ इमाम डॉ. उमेर अहमद इलियासी ने इस फैसले के लिए सऊदी अरब को मुबारकबाद दी है।
बदलाव लाना जरूरी
डॉक्टर इलियासी का कहना है आज ग्लोबलाइजेशन के दौर में इस तरह का बदलाव लाना सऊदी अरब के लिए बेहद जरूरी है। उनका कहना है कि यह हमारे लिए बेहद गर्व की बात है कि जिस योग को भारत ने शुरू किया वह आज पूरी दुनिया में पहुंच रहा है। पूरी दुनिया के लोग आज योग कर अपने स्वास्थ्य को सही रख रहे हैं। उन्होंने साफतौर पर कहा कि भारत में जो लोग इसकी मुखालफत कर रहे हैं उन्हें जरा योग करके देख लेना चाहिए।
कामयाब हुई मारावी की जद्दोजहद
अरब के कट्टर समाज में योग को खेल का दर्जा दिलाने का श्रेय 37 वर्षीय महिला योग गुरु नॉउफ मारावी को जाता है। वह 2005 से ही सरकार की विभिन्न एजेंसियों से योग को मान्यता देने के लिए जद्दोजहद कर रही थीं। मारावी सऊदी अरब में योग और आयुर्वेद की आधिकारिक प्रमोटर भी हैं। वह खुद 1998 से योग कर रही हैं। मारावी ने 2009 में योग पद्धति और चीनी इलाज पद्धति आधारित चिकित्सा केंद्र की स्थापना की। इससे पहले 2008 में उन्होंने सऊदी अरब योग स्कूल भी खोला। 2009 में अंतराष्ट्रीय योग खाड़ी क्षेत्र की निदेशक बनी। 2010 में सऊदी में अंतरराष्ट्रीय योग संघ की मानद सचिव बनीं। 2012 में वह भारत में योगलिंपिक समिति की उपाध्यक्ष नियुक्त हुईं। मारावी 2005 से अब तक तीन हजार छात्रों को योग की शिक्षा दे चुकी हैं। जबकि 2009-14 के बीच 70 से अधिक शिक्षकों को योग सिखाने के लिए प्रमाणपत्र दिया। उनके लिए केरल सरकार ने उन्हें योगचारिणी की उपाधि दी है।
कट्टरवादी छवि बदल रहा सऊदी अरब
अगर हाल के कुछ वर्षों की बात की जाए तो यह सऊदी अरब की बदलती छवि को साफतौर पर देखा और समझा जा सकता है। इसे इस तरह से भी समझा जा सकता है कि पहले सऊदी अरब में की महिलाओं ने पहली बार 2012 के ओलंपिक गेम्स में हिस्सा लिया था। इसके अलावा दिसंबर 2015 में सऊदी अरब ने पहली बार महिलाओं को वोटिंग का अधिकार दिया। इसके तहत महिलाओं को न सिर्फ अपने वोट करने का अधिकार मिला बल्कि उन्हें खुद चुनाव में खड़े होने की भी आजादी मिल गई। 2015 में यहां क़रीब तीन करोड़ की आबादी वाले देश में पांच लाख पंजीकृत मतदाता था जिसमें महिलाओं की संख्या केवल 20 फीसद थी।
सऊदी अरब के ऐतिहासिक निर्णय
लगातार बदल रहे सऊदी अरब ने सितंबर 2017 में एक बार फिर बड़ा और ऐतिहासिक निर्णय लेते हुए महिलाओं को ड्राइविंग का अधिकार दिया। हालांकि यह अधिकार सही मायने में अगले वर्ष यानि 2018 से लागू होना है लेकिन इस तरफ कदम बढ़ाना सऊदी अरब में हो रहे बड़े सुधारों को दुनिया के सामने प्रदर्शित जरूर करता है। वहीं अगर कुछ वर्ष पहले चले जाएं तो महिलाओं को ड्राइविंग का अधिकार मांगने पर उन्हें जेल में डाल दिया जाता था। बारिया जो ‘महिलाओं गाड़ी चलाएं’ अभियान से जुड़ी हुई हैं उन्हें पूर्व में इसके लिए 70 दिनों की जेल की सजा भुगतनी पड़ी थी। इसके बाद योग को लेकर लिया गया निर्णय भी सऊदी अरब के 2030 मिशन को साफतौर पर दर्शाता है।
विजन 2030
इस मिशन का मकसद पहले ही सऊदी अरब, क्रॉउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान पूरी तरह से साफ कर चुके हैं। उनके विजन 2030 एजेंडे को लागू करने के लिए भविष्य में दूसरे आर्थिक और सामाजिक सुधारों को भी लागू किया जा सकता है। सऊदी अरब महिलाओं को लेकर जिस तरह से अपने फैसले उनके हक में ले रहा है और अपनी कट्टरवादी सोच को बदल रहा है उसका पूरी दुनिया में स्वागत किया जा रहा है। उनके इन कदमों को हर तरफ से सराहना मिल रही है। अमेरिका इनकी तारीफ करते हुए कहा है कि यह देश को सही दिशा में ले जाने के लिए बेहतरीन कदम है।
योग को दिया खेलकूद का दर्जा
योग को लेकर लिए गए ताजा फैसले के तहत सऊदी अरब में सार्वजनिक तौर पर योग किया जा सकता है। अपनी कट्टर छवि से पीछा छुड़ाने की कोशिश कर रहे सऊदी अरब ने भारत की पांच हजार साल पुरानी योग पद्धति को खेलकूद की गतिविधि का दर्जा दिया है। रिपोर्ट के मुताबिक व्यापार एवं उद्योग मंत्रलय ने योग को खेल पद्धति के रूप में मान्यता देने संबंधी प्रस्ताव को हरी झंडी दी। साथ ही सरकार अब योग शिक्षकों को भी लाइसेंस जारी करेगी। सऊदी अरब उन 18 देशों में शामिल था, जो 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाने के लिए भारत की ओर से संयुक्त राष्ट्र में रखे प्रस्ताव का सह प्रायोजक नहीं थे। ऐसे में सऊदी अरब का यह फैसला अहम है।