साइंटिफिक-एनालिसिस संविधान पीठ के डर से राष्ट्रपति के फैसले में देरी :,शैलेन्द्र कुमार बिराणी

Pahado Ki Goonj

साइंटिफिक-एनालिसिस

संविधान पीठ के डर से राष्ट्रपति के फैसले में देरी!

26 नवम्बर को संविधान दिवस बना लिया गया, संसद के दोनों सदनों में चर्चा हो गई और एक संविधान व एक संविधान सभा के अध्यक्ष होते हुए भी पक्ष-विपक्ष आपस में तू-तू मैं-मैं करके धक्का-मुक्की भी कर ली | सबसे मजादार बाली बात दोनों पक्ष डॉ भीमराव अम्बेडकर का सम्मान कर उनके बताये मार्ग पर चलने की बात कह रहे थे | जब एक संविधान उसके 75 वर्ष होने पर संविधान-दिवस बनाने के अलग-अलग कार्यक्रम को लेकर राष्ट्रपति व मुख्य न्यायाधीश में ही संवैधानिक मर्यादा की दरार पडी है तो संसद में उस संविधान को लेकर मारा-मारी करना, तू-तडाक करना, संसद के काम को ठप करना व अध्यक्षों द्वारा अपनी नाकामी छिपाकर सदनों को स्थगित कर सांसदों को काम करने से मुक्त कर देना तो सांसदों का मूल कर्तव्य व अधिकार बन जाता है। इसे ही शायद आज का नया लोकतन्त्र कहते हैं |

आपको ज्ञात है कि 26 नवम्बर को राष्ट्रपति की अगुवाई में संविधान दिवस का कार्यक्रम अलग से बनाया गया और मुख्य न्यायाधीश ने अलग कार्यक्रम बनाया | राष्ट्रीय स्तर पर इस तरह की फूट व संविधान की मर्यादा टूटने के पीछे राष्ट्रपति स्वयं हैं या मुख्य ने ऐसा किया हैं। यह मामला राष्ट्रपति महोदय के संज्ञान में ला दिया गया हैं तब भी उन्होंने अति संवेदनशील व लोकतन्त्र के लिए अति महत्वपूर्ण होने पर भी फैसला नहीं दिया हैं | इस देरी की वजह से संसद का हाल आपने देखा जो और खतरनाक होता चला जायेगा व 26 जनवरी पास आने से न्यायपालिका वाला लोकतान्त्रिक स्तम्भ के ध्वस्थ हो जाने का खतरा मंडराने लगा हैं। संसद के अन्दर के टकराव व उसकी सीमाओं से बाहर निकल अस्पताल के गहन चिकित्सा कक्ष (आई.सी.यू.) में पहुंचने व पुलिस चौकी में सुनहरे अक्षों में आमने-सामने की प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफ.आई.आर.) दर्ज कराके दोनों पक्षों की अपने-अपने कलेजे को ठंडक देने की राजनीति से संसद का आने वाला बजट सत्र और खतरनाक हो जायेगा | ,यह पेंच संविधान व उसके निर्माता पर फंसा हैं और वह आम बजट से भी सर्वोपरी हैं इसलिए कोई भी पक्ष इस पर फैसले बिना बजट को पेश ही नहीं होने देगा |

राष्ट्रपति व फुल सीट संविधान पीठ को संविधान संरक्षक का दर्जा प्राप्त हैं इसलिए राष्ट्रपति संविधान दिवस पर दो कार्यक्रम पर फैसला देने से डर रही लगती हैं, कई मुख्य न्यायाधीश इस पर संविधान पीठ न गठित कर दे | जब न्यायाधीशों के चयन की कॉलिजीयम व्यवस्था के स्थान पर संविधान में 99वे संसोधन को लाकर न्यायिक नियुक्ति आयोग (एन.जे.सी.) की स्थापना करी गई थी तो उच्चतम न्यायालय ने एक जनहित याचिका पर संविधान पीठ गठित करी, जिसने 99वे संसोधन को असंवैधानिक करार दे दिया था |

संविधान दिवस के कार्यक्रम में राष्ट्रपति ने मुख्य न्यायाधीश को नहीं बुलाया या राष्ट्रपति ने मुख्य न्यायाधीश के उच्चतम न्यायालय के कार्यक्रम में आने के निमंत्रण को ठुकरा दिया तो दोषी राष्ट्रपति ही कहलायेंगे | राष्ट्रपति स्वयं को तो दोषी बताकर शायद ही फैसला लेगे वे दोषी मुख्य न्यायाधीश को ही बतायेंगें | राष्ट्रपति यह भी नहीं कह सकते हैं कि उन्होंने समय के अभाव में प्रधानमंत्री को भेज दिया क्योंकि उन्हें संविधान की शपथ मुख्य न्यायाधीश दिलाते हैं | मुख्य न्यायाधीश सही होने पर यह दोष अपने ऊपर नहीं लेंगे कि उन्होंने राष्ट्रपति के निमंत्रण को ठुकरा कर अपना अलग से संविधान-दिवस बनाकर राष्ट्रद्रोह किया हैं इसलिए वे स्वत: मामले को संज्ञान में लेकर संविधान पीठ गठित कर सकते हैं क्योंकि यह दोष उनके अकेले पर न आकर पुरी न्यायपालिका पर आयेगा |

सुप्रिम कोर्ट बार एसोसिएशन मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ प्रस्ताव पास करने का अधिकार रखती हैं परन्तु जब न्यायपालिका के लोकतान्त्रिक स्तम्भ के प्रमुख के नाते मुख्य न्यायाधीश का अपमान व निरादर होता हैं तो चुप रहती हैं | इस तरह के अपमान से पहले ही सारी जानकारी उन्हें दे दी गई थी तब भी और बाद में भी चुप्पी साध ली शायद उन्हें कार्यपालिका से मंत्री व अन्य पद का लालच रहा होगा | देश के अन्य वकीलों से उम्मीद भी नहीं कर सकते हैं क्योंकि सुप्रिम कोर्ट ने अपने अलग ध्वज और चिह्न को लाकर उनके काम व कर्तव्य को राष्ट्रीय ध्वज, राष्ट्रीय चिह्न के साथ राष्ट्रीयता से अलग कर सिर्फ पैसों के प्रति निष्ठा रखने का टैग चस्पा कर दिया हैं |

शैलेन्द्र कुमार बिराणी
युवा वैज्ञानिक

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