?जीतू बगड्वाल-भरणा-एक अमर प्रेम कथा ?
बॉलीवुड की लैला-मजनूं, हीर-रांझा जैसे प्रेम-प्रसंगों के बीच हमारा पहाड़ भी ऐसे कई प्रेम-आख्यानों से जुड़ा हुआ है। राजुला-मालूशाह हो या सरुली-गढ़ सुम्याळ हो चाहे जितू-भरणा, इन सब प्रेम पथिकों की प्रणय-गाथा को उत्तराखंड के जनमानस में आज भी जीवंत रख पाने में इन लोक गाथाओं का इस तरह मंचन कर संरक्षण किया जाना सराहनीय है। जीतू बगड्वाल के जीवन का 6 गते अषाढ़ की रोपाई का वह दिन है जो अपने आप में विरह-वेदना की एक मार्मिक स्मृत्ति समेटे हुए है। एक बार गढ़वाल साम्राज्य के बगूड़ी गाँव का जीतू अपनी बहिन शोभनी को मायके बुलाने उसके ससुराल रैथल पहुंचता है। बहन शोभनी की नणद यानी रिश्ते में उसकी स्याली भरणा और स्वयं जीतू के बीच अगाध प्रेम था। मनमोहक नौसुर्या मुरली (नौ सुरों वाली बांसुरी) बजाने में माहिर जीतू जब एक दिन खैट पहाड़ के जंगलों में जाकर बांसुरी बजाने लगा तो उसकी धुन सुन मोहित हो चुकी जंगलों की आछरियों (वनदेवियों) ने जीतू के प्राण हरण कर अपने साथ ले जाने की ठान ली।
(बावरो छयो जीतू उलार्या ज्वान
मुरली को हौंसिया छौ रूप को रसिया
घुराए मुरली वैन खैट का बणों
डांडी बीजिन कांठी
बौण का मिर्गुन चरण छोड़ी दिने
पंछियोन छोडि दिने मुख को गाल़ो
कू होलू चुचों स्यो घाबड्या मुरल्या
तैकी मुरली मा क्या मोहणी होली
बिज़ी गैन बिज़ी गैन खेंट की आंछरी)
जीतू को प्रेमिका से पास रहते हुए जब उससे दूर जाने का कष्ट हुआ तो उसने अपने कुल देवता बगूड़ी के भैरव का स्मरण किया। तब जाकर आछरियों ने जीतू को छः गते बैशाख को रोपाई की समापन तक का समय देकर छोड़ दिया। फिर जीतू बहन के घर अपनी प्रेमिका स्याली भरणा से मिलने पहुँचता है। वो भरणा से बोलता है-
तेरा खातिर छोडि स्याळी बांकी बगूड़ी
बांकी बगूड़ी छोड़े राणियों कि दगूड़ी
छतीस कुटुंब छोड़े बतीस परिवार
दिन को खाणो छोड़ी रात की सेणी
तेरी माया न स्याली जिकुड़ी लपेटी
कोरी कोरी खांदो तेरी माया को मुंडारो
जिकुड़ी को ल्वे पिलैक अपणी
परोसणो छौं तेरी माया की डाळी
जल्द ही वो घड़ी भी आ जाती है जब आछरियों से किये वादे के मुताबिक़ अब जीतू को अपनी प्रेमिका भरणा से हमेशा के लिए दूर जाना पड़ता है…जीतू कहता है-
डाळीयूँ मा तेरा फूल फुलला
झपन्याळी होली बुरांस डाळी
ऋतू बोडि औली दाईं जसो फेरो
पर तेरी मेरी भेंट स्याळी
कु जाणी होंदी कि नी होंदी ?
ऐसा कहते हुए जीतू स्याली भरणा को छोड़ वापस अपने बगूड़ी पहुँच जाता है। जहाँ छः गते बैशाख के दिन रोपणी के सेरे (रोपाई के खेत) में जीतू के प्राण नौ बैणी आछरियों ने हर लिए और उसका शरीर बगूड़ी के रोपाई के खेत में हमेशा के लिए धरती में समा जाता है।
नौ बैणी आंछरी ऐन, बार बैणी भराडी
क्वी बैणी बैठींन कंदुड़यो स्वर
क्वी बैणी बैठींन आंख्युं का ध्वर
छावो पिने खून , आलो खाये माँस पिंड
स्यूं बल्दुं जोड़ी जीतू डूबी ग्ये
रोपणी का सेरा जीतू ख्वे ग्ये। इस नाटक को देखने का सौभाग्य जनपद चमोली की सांस्कृतिक टीम द्वारा गोविंदघाट बद्रीनाथ के पत्रकार सम्मेलन में देखने का मौका मिला ! (मदन पैन्यूली)