इससे पहले महाराज ने संगतों को गुरुमंत्र दिया। गुरुमंत्र को आत्मसात करते हुए संगतों ने श्री झंडा साहिब और महाराज का आशीर्वाद लिया। इस मौके पर महाराज श्री महंत देवेंद्र दास ने कहा कि जो व्यक्ति गुरु के बताए मार्ग पर चलता है, उसे पृथ्वी पर ही स्वर्ग की अनुभूति हो जाती है।
परंपरा के अनुसार झंडे जी के आरोहण से पहले ही पूरब की संगत विदा हो गई। इस मौके पर महाराज ने पूरब की संगत को पगड़ी, ताबीज और प्रसाद बांटकर विदाई दी।
बताया गया कि सुबह आठ बजे से झंडा मेला कार्यक्रम का शुभारंभ हो गया। सबसे पहले पुराने झंडे जी को उतारा गया। इसके बाद सेवक ने नए झंडे का अभिषेक किया। सुबह दस बजे से नए झंडे जी पर गिलाफ चढ़ने शुरू हो गए। सबसे पहले सादे गिलाफ चढ़ाए गए। इसके बाद शनील और अंत में दर्शनी गिलाफ चढ़े।
मेला थाना हुआ शुरू
श्री झंडे जी आरोहण के मुख्य कार्यक्रम और मेले की सुरक्षा के मद्देनजर पुलिस प्रशासन ने पुख्ता इंतजाम किए हैं। मेला स्थल पर मेला थाना खोला गया है। इसमें 2 प्लाटून पीएसी (पुरुष), एक प्लाटून पीएसी (महिला) मेला सुरक्षा के लिए आरक्षित रखी गई है। साथ ही, एक एसओ, नौ उपनिरीक्षक, तीन सहायक उपनिरीक्षक, सात हेड कांस्टेबल, 45 कांस्टेबल (पुरुष), दस महिला कांस्टेबल, आठ यातायात पुलिसकर्मी और 18 होमगार्ड सुरक्षा व्यवस्था को संभाल रहे हैं।
श्री महंत इंदिरेश अस्पताल की मेडिकल टीम जुटी
श्री महंत इंदिरेश अस्पताल के डॉक्टरों की टीम मेला स्थल पर इलाज के लिए उपलब्ध है। अस्पताल की ओर से रोगियों को निशुल्क दवा दी जा रही है। किसी भी अप्रिय घटना से निपटने के लिए एंबुलेंस उपलब्ध रहेगी।
स्क्रीन पर लाइव चलेगा कार्यक्रम
श्री दरबार साहिब प्रबंधन की ओर से मेला परिसर में बड़ी स्क्रीन लगाई गई हैं। मेला स्थल पर संगत कार्यक्रम सीधे झंडे आरोहण का प्रसारण देख पाएंगी। साथ ही, ड्रोन भी मुख्य आकर्षण रहेगा।
चार सौ साल पुराना इतिहास
श्री दरबार साहिब का चार सौ वर्ष पुराना इतिहास है। यहां प्रत्येक वर्ष गुरु महाराज के जन्मदिवस पर श्री झंडे जी चढ़ाए जाते हैं। माना जाता है कि गुरु महाराज के आशीर्वाद से लोगों के सभी दुख दूर हो जाते हैं। सभी की मन्नत पूरी होती है।
दून के संस्थापक हैं महाराज
श्री झंडे मेले का इतिहास दून के अस्तित्व से जुड़ा है। श्री गुरु रामराय जी का पदार्पण वर्ष 1676 में हुआ था। उन्होंने यहां की सुंदरता से मुग्ध होकर ऊंची-नीची धरती को डेरा बनाया। इसके बाद इस जगह का नाम डेरादीन पड़ा। जो बाद में डेरादून और फिर देहरादून हो गया। महाराज ने इस धरती को अपनी कर्मस्थली बनाया। श्री गुरु महाराज ने दरबार साहिब में लोक कल्याण के लिए विशाल झंडा लगाकर लोगों को इसी ध्वज से आशीर्वाद प्राप्त करने का संदेश दिया। साथ ही, झंडा साहिब के दर्शन की परंपरा शुरू हुई। श्री गुरु रामराय महाराज को दून का संस्थापक कहा जाता है। श्री गुरु रामराय महाराज सिखों के सातवें गुरु श्री गुरु हर राय जी के ज्येष्ठ पुत्र थे। उनका जन्म होली के पांचवें दिन वर्ष 1646 को पंजाब के जिला होशियारपुर (अब रोपण) के कीरतपुर में हुआ था।