देहरादून। दून को कभी टार्यट और रिटायर्ड लोगो का शहर कहा जाता था। दून घाटी सेना और प्रशासनिक सेवाओं से रिटायर होने वाले अधिकारियों की पसंदीदा जगह हुआ करती थी। दून के बाजार भी इसी तर्ज पर विकसित हुए थे। राज्य बनने के बाद जब तेजी से शहर का विस्तार शुरु हुआ तो आमदनी के ज्यादा जरिए न होने पर लोगों ने अपने घरों में ही छोटी-मोटी दुकानें खोलनी शुरु कर दीं। लेकिन अब देहरादून नगर-निगम सालों से विकसित हुए इस सिस्टम को झटके से बदलने की कोशिश कर रहा है। निगम की चली तो देहरादून सिर्फ मॉल्स और रेहड़ियों का शहर रह जाएगा। मसूरी बाइपास पर नेहरु ग्राम की गढ़वाली कॉलोनी में रहने वाले सुरेंद्र बिष्ट अपने घर के बाहर निकाली गई एक दुकान में किराना स्टोर चलाते हैं। आस-पास के लोग अपनी जरूरत की चीजें यहां से ले लेते हैं और सुरेंद्र का परिवार इससे पल रहा है।
नगर निगम के सभी छोटे-बड़े व्यापारियों पर लाइसेंस शुल्क लगाने के प्रस्ताव से सुरेंद्र चिंतित हैं। बता दें कि निगम ने सब्जी, फल, दूध, जनरल स्टोर, रिटेल, होल सेल, होटल, चाय की दुकान सहित सभी प्रकार के व्यापार पर लाइसेंस शुल्क लेना तय किया है जो 5000 से 80000 रुपये तक होगा। सुरेंद्र महीने में 10-12 हजार रुपये तक कमा पाते हैं। घर अपना है तो इससे उनका काम चल जाता है लेकिन जब भारी-भरकम टैक्स देना पड़ेगा तो। उनके लिए यह चुनौतीपूर्ण काम होगा।
सुरेंद्र कहते हैं, “अगर नहीं चल पाएगा तो बाहर जाना पड़ेगा, नौकरी के लिए. क्या करेगा आदमी, परिवार को तो पालना ही है न”।
इस टैक्स का प्रस्ताव देते समय नगर निगम को शायद ही यह अंदाजा होगा कि वह पलायन की समस्या को बढ़ाने जा रहा है। पलायन को दूर करने की बातें शायद हर सार्वजनिक सभा में होती है, प्रदेश की नीति बनाते वक्त इसका ध्यान रखने का दावा किया जाता है। नगर निगम के इस कदम से सुरेंद्र जैसे न जाने कितने छोटे दुकानदारों के सामने अपना छोटा सा व्यवसाय छोड़कर पलायन करने का खतरा पैदा हो सकता है।