नयी दिल्ली। चीन के शियामेन में आयोजित नौवें ब्रिक्स सम्मेलन में वैसा कुछ नहीं हुआ, जैसा डोकलाम विवाद की वजह से सोचा जा रहा था। हालांकि अब भी चीन ने डोकलाम विवाद सहित आतंकवाद को लेकर जो रुख अपनाया है, वह कहीं न कहीं उसके गुप्त एजेंडे का हिस्सा लग रहा है। इससे इन्कार नहीं किया जा सकता कि अंतरराष्ट्रीय पटल पर अपनी कूटनीतिक तस्वीर चमकाने के लिए चीन ने ब्रिक्स सम्मेलन से पहले डोकलाम विवाद को सुलझाने का दिखावा किया हो। जिस तरह उसने इस क्षेत्र पर पिछले ढाई महीने से निरंतर अपनी गैर-जिम्मेदाराना बयानबाजी की उससे लगता है कि वह सीमा विवाद को फिर खड़ा कर सकता है।
बहरहाल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग की सम्मेलन से इतर हुई द्विपक्षीय बातचीत में डोकलाम जैसे विवादों से किनारा कर आपसी सहमति से आगे बढ़ने का विचार सुखद है। इस पर चीन द्वारा पंचशील के सिद्धांतों का पुन:स्मरण किया जाना भी कहीं न कहीं उसकी सकारात्मक राजनीतिक इच्छाशक्ति को दर्शाता है। मगर भारत-चीन के रिश्तों की असली तस्वीर तो आने वाले समय में ही देखी जा सकेगी। दोनों देशों के बीच संबंध वैश्विक राजनीतिक स्थितियों के अनुसार ही तय होंगे।
बहरहाल मोदी ने ब्रिक्स सम्मेलन के अपने भाषण में आतंकवाद को केंद्रीय मुद्दा बनाकर उसके उन्मूलन के लिए वैश्विक सहमति बनाने की कोशिश की। अभी तक चीन पाकिस्तान स्थित आतंकी समूहों को पाक द्वारा संरक्षण दिए जाने के मसले पर तटस्थ बना हुआ था। चीन ने अपनी व्यापारिक लालसा के लिए ही ऐसा रवैया अपनाया हुआ था। भले ही वह पाकिस्तान की मदद यह सोचकर नहीं करता होगा कि पाक उसकी मदद से भारत में आतंकवाद फैलाए, लेकिन पाक तो मिलने वाले धन-संसाधान का दुरुपयोग ही करता रहा है। यह धारणा चीन को या तो समझ ही नहीं आई अथवा उसने जानबूझकर इस पर मौन साधे रखा। ऐसा इसलिए भी हुआ क्योंकि वह खुद आतंक से पीड़ित नहीं रहा।
मगर अब ब्रिक्स सम्मेलन के घोषणा पत्र में आतंकवाद के उल्लेख पर चीन ने अपना रुख जाहिर किया है और पाकिस्तान को आतंकी समूहों की शरणस्थली कहने में हिचकिचाहट नहीं दिखाई। इससे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आतंकवाद को लेकर उपजे मतभेद अवश्य ही खत्म होंगे। शी चिनफिंग ने जिस तरह आतंकवाद के संदर्भ में अपनी बात रखी, वह निश्चित रूप से भारत की कूटनीतिक बढ़त कही जाएगी। चीनी राष्ट्रपति के अनुसार आतंकवाद के लक्षण और मूल कारण पहचान कर ही इसे समाप्त किया जाना चाहिए ताकि आतंकियों के छिपने के लिए दुनिया में कोई जगह ही न बचे।
ब्रिक्स के घोषणा पत्र में पाकिस्तान स्थित लश्कर-ए-तैयबा, हक्कानी नेटवर्क और जैश-ए-मोहम्मद जैसे आतंकी समूहों द्वारा एशिया प्रशांत मेंजारी आतंकी हिंसा की निंदा की गई है। यह आतंक को लेकर मौजूदा सरकार की वैश्विक कूटनीति की बड़ी सफलता है। तमाम मुद्दों पर रोड़ा अटकाने वाला चीन अब ब्रिक्स घोषणा पत्र के माध्यम से जैश-ए-मोहम्मद सहित अन्य पाकिस्तानी समूहों को आतंकवाद के लिए जिम्मेदार मान चुका है। इस घोषणा से पाकिस्तान के लिए आतंक को संरक्षण देने के दोषी राष्ट्र के रूप में बड़े संकट खड़े हो गए हैं। अभी तक अंतरराष्ट्रीय बिरादरी में एकमात्र प्रभावशील देश चीन ही था, जो आर्थिक गलियारे के निर्माण की अपनी महत्वाकांक्षा के कारण इसकी अनदेखी कर रहा था।
भू-राजनीतिकरण के इस पक्ष में चीन को किसी भी देश का खुला समर्थन कभी नहीं मिला। साथ ही दक्षिण चीन सागर में भी अपनी विस्तारवादी नीति के चलते दक्षिण एशियाई देशों सहित यूरोपीय संघ की नजरों में संदेहास्पद राष्ट्र के रूप में उभरने के दुष्परिणाम चीन को साफ नजर आने लगे थे। इस लिहाजा से डोकलाम पर उसके दावे के समर्थन में उसे उस पाकिस्तान तक का खुला समर्थन नहीं मिला, जिसे वह मदद करता रहा है। नौवें ब्रिक्स सम्मेलन में पहली बार हुआ कि आतंकवाद की निंदा करते हुए चरमपंथी समूहों का जिक्र किया गया। सम्मेलन की प्रमुख सामूहिक घोषणाओं के मद्देनजर आतंकी समूहों की सूची बनाई गई।
यह भी पहली बार ही हुआ कि राष्ट्र प्रमुखों के वक्तव्य को ध्यान में रखते हुए आतंकी समूहों की सूची बनाई गई और उनका नाम लेकर उन पर प्रतिबंध के लिए संकल्प लिया गया। घोषणा पत्र के अनुसार, ‘हम ब्रिक्स देशों सहित पूरी दुनिया में हुए आतंकी हमलों की निंदा करते हैं। हम हर प्रकार के आतंकवाद की निंदा करते हैं, चाहे वह कहीं भी घटित हुआ हो। इसके पक्ष में कोई तर्क नहीं दिया जा सकता। हम इस क्षेत्र में तालिबान, आइएस, लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद, तहरीक-ए-तालिबान, हिज्ब-उत-ताहिरअल-कायदा द्वारा की जा रही हिंसा की निंदा करते हैं और क्षेत्र की स्थिति को लेकर चिंतित हैं।’
ब्रिक्स मंच के माध्यम से मोदी ने सुरक्षा परिषद और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के पुनर्गठन पर जोर दिया। भारत की ओर से ब्रिक्स में गरीबी हटाने, स्वास्थ्य, कौशल विकास, खाद्य सुरक्षा, लैंगिक समानता, शिक्षा के विषयों पर वैश्विक सहयोग के लिए आगे आने का आह्वान किया गया। भारत ने कहा कि उसने कालेधन के खिलाफ लड़ाई छेड़ी है। इस मसले पर ब्रिक्स के सदस्य देशों से सहकारिता की अपेक्षा की गई। मोदी ने सुझाव दिया कि ब्रिक्स देश सौर ऊर्जा के क्षेत्र में भारतीय सौर संघ के साथ काम कर सकते हैं।
वैसे तो ब्रिक्स का उद्देश्य व्यापारिक गतिविधियों में दक्षिण एशियाई देशों की भूमिका को विश्व स्तर पर सम्मान व पहचान दिलाना था, पर जिन यूरोपीय देशों से व्यापार में उपेक्षा व अनदेखी के बाद प्रतिस्पर्धात्मक रवैये के साथ ब्रिक्स साकार हुआ था, वह पिछले नौ वर्षो में भारत-चीन के बीच विभिन्न प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष विवादों के कारण कुछ हद तक प्रभावित हुआ। विडंबना ही कही जाएगी कि ब्रिक्स जैसे मंच का प्रमुख मुद्दा भी इसके नौवें सम्मलेन में आतंकवाद ही रहा।
यह इसलिए कि आतंकवाद के संरक्षक देशों में अपने व्यापारिक प्रतिष्ठान, संरचनाएं, बंदरगाह आदि बनाने की इच्छा से चीन ने जो ढीला रवैया आतंक और अंतरराष्ट्रीय नियम-कानूनों के संदर्भ में अंगीकार किया हुआ था, इस बार भारतीय कूटनीति के तहत उसे तोड़ने के लिए ब्रिक्स सम्मेलन के मुख्य मुद्दे के इतर आतंकवाद को केंद्रीय मुद्दा बनाना पड़ा। इसे भारतीय कूटनीति की बढ़त कहा जा सकता है, लेकिन यह कार्रवाई के रूप में जमीन पर कितना उतरता है,यह मायने रखता है। इसके लिए हमें इंतजार करना होगा।