यमुना घाटी में चार दिवसीय गंगनानी बसंत मेला केा देव डोलियों के सानिध्य में आगाज । बडकोट।। (मदन पैन्यूली) यमुना घाटी का सुप्रसिद्ध पौराणिक बसंत मेला कुंड की जातिर का आगाज पौराणिक परंपरा के अनुसार स्थानीय देव डोली बाबा बोखनाग, मां भद्रकाली ,तटेश्वर महादेव के सानिध्य में मेले का शुभारंभ हो गया है ,यह मेला आगामी 16 फरवरी तक चलेगा ,मेले का शुभारंभ में मुख्य अतिथि ब्लाक प्रमुख सरोज पवार नगर पंचायत अध्यक्ष नौगांव शशि मोहन सिंह राणा ,नगर पालिका अध्यक्ष बड़कोट श्रीमती अनुपमा रावत एवं स्वतंत्रता सेनानी चिन्द्रिया लाल के द्वारा दीप प्रज्वलित कर मेले का शुभारंभ किया गया । मेले में सरकारी व गैर सरकारी विभागों द्वारा स्टाल लगाए गए हैं स्टालों में वन विभाग उद्यान विभाग ,कृषि विभाग, समाज कल्याण, स्वास्थ्य विभाग,रवाई की रसोई , सहित अनेक विभागों द्वारा लोगों को जानकारी दी जा रही है । सांस्कृतिक कार्यक्रमों में कस्तूरबा गांधी आवासीय विद्यालय गंगनानी, विजय पब्लिक स्कूल नौगांव एवं नरेश ज्वाला ,रीता बहुगुणा सहित अनेक कलाकारों ने शानदार प्रस्तुति दी, मेलार्थियों ने मेले में पहुँची देव डोलियों के साथ के साथ नृत्य कर रवाई घाटी की संस्कृति का आनंद उठाया । यहां मेला प्रतिवर्ष जिला पंचायत उत्तरकाशी के द्वारा आयोजित किया जाता है । इस अवसर पर जिला पंचायत अध्यक्ष दीपक बिजल्वाण ने कहा है गंगनानी बसंत मेला (कुंड की जातिर )हमारी पौराणिक संस्कृति है और पौराणिक धरोहर को जीवित रखना हमारा प्रयास रहेगा इस अवसर पर क्रीडा प्रतियोगिता भी आयोजित की गई हैं । इस अवसर पर सुमन प्रसाद डिमरी, दिनेश भारती पूर्व जिलाध्यक्ष श्याम डोभाल, आजाद डिमरी, जयेंद्र सिंह रावत, रणवीर सिंह रावत सहित जनप्रतिनिधि तथा सैकडो मेलार्थी मेले में मौजूद रहे ।
गंगनानी मेला (कुंड की जातर)
एक विचित्र भूगर्भीय घटना जिसमें गंगा नदी का जल अपने पारंपरिक प्रवाह से विपरीत जमीन के भीतर ही भीतर यमुना तट पर उदघटित होता है। यही गंगा जल का लघु जलाशय गंगनानी के कुंड के नाम से प्रसिद्ध है।
पेयजल के स्रोत से बड़ा इस कुंड का एक आध्यात्मिक और सामाजिक महत्व है। गंगा स्नान और धार्मिक कर्मकांडों का यह यमुनाघाटी में मुख्य केंद्र है। यह यमुना के तट का पहला प्रयाग और मोक्षधाम है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार महर्षि जमदग्नि यमुना के तट पर बसे थान गांव से नित्य गंगा स्नान को रोज आया-जाया करते थे। वृद्धावस्था में यह नियमित रूप से कर पाना संभव ना था। इसलिऐ मुनि महाराज के तपोबल से गंगाजी की एक धारा यहाँ फूट पड़ी। गंगा जमुना के जल के संगम होने से इसका धार्मिक महत्व और बढ़ गया और यह एक तीर्थ हो गया। आज बच्चों के चूड़ा कर्म, विवाह, स्नान, और अंतिम संस्कार तक के सारे धार्मिक अनुष्ठानों गतिविधियों का यह मुख्य केंद्र हैं।