#विक्रमादित्य_के_युद्ध_का_स्वरूप
विक्रमादित्य के युद्धो को जनता आज भी आदर्श दिग्विजय मानती है, वह रक्तपात कर खून की नदियां बहाने वाला क्रूर राजा नही था । वह एक सन्यासी था, जो राजा विक्रमादित्य की शरण मे आये, वह पहले की तुलना में दुगना सम्मान लेकर लौटे, विक्रमादित्य ने उनका अपमान नही किया, बल्कि उन्हें राष्ट्र के एकीकरण का महान सहयोगी बताक़र उनके सम्मान को ओर ज़्यादा बढ़ा दिया, विक्रमादित्य के अधीन होकर कोई भी अन्य राजा खुद को अपमानित नही, बल्कि गौरवशाली महसूस करता था । विक्रमादित्य ने किसी का प्रदेश तो छीना ही नही, बल्कि उस प्रदेश की शासन व्यवस्था को अपने अनुरूप चलाया, उन्होंने राजा नही बदले, बल्कि राजव्यवस्था बदली ।। दूसरी बड़ी बात यह थी की विक्रमादित्य ने कोई अश्वमेध यज्ञ नही किया, उन्होंने किसी को मजबूर नही किया, वह अधीन आये, केवल कुछ युद्धो में उन्होंने शत्रुओ को अपने पराक्रम की ऐसी धमक सुना दी, की अन्य शत्रु खुद इतने भयभीत हो गए, कि वह विक्रमादित्य की शरण मे आ गए ।। वर्तमान में विश्व का जो गणतांत्रिक स्वरूप है, वह विक्रमादित्य की ही देन है । लोकतंत्र के प्रथम प्रणेता राजा विक्रमशील विक्रमादित्य ही है ।।
विक्रमादित्य के समय मे राजा आनुवंशिक होता था, लेकिन बाकी के सभी नेताओं का चुनाव जनता स्वयं करती थी, ऐसा कालिदास ने स्वयं लिखा है ।
#बौद्धों के ” अहिंसा परमोधर्म ” के सिद्धांत ने भारत को एक तरह से पंगु बना दिया, विदेशी आक्रमण होते रहे, ओर हम अहिंसा का जाप करते रहें । वैदिक धर्म का सूर्य अस्ताचल में लीन हो गया , प्रजा दुःखी थी, देश मे शकों के आक्रमण के कारण अत्याचारो से त्राहिमाम त्राहिमाम मचा हुआ था । ऐसे महान विपत्तिकाल में गौ ब्राह्मण हितायार्थ ” की कहानी को चरितार्थ करने वाला सत्य तथा धर्म का प्रचारक वीर विक्रमादित्य का जन्म हुआ :-
विक्रम कितने दयालु थे, कितने वीर थे, कितने दानी थे, उसका थोड़ा सा चित्रण गुणाढ्य कवियों की निम्न पंक्तियों से होता है ।
स पिता पितृहनिनामंबन्धुनां स वान्धवः।
अनाथानां च नाथः प्रजानां कः स नामवत्।।
महावीरोप्यभूदराजा स भीरूः परलोकतः ।
शुरोपिचाचण्डकरः कुमर्ताप्यड़गनप्रियः।।
अर्थात :- वह पितृहीनो का पिता, भाृतहीनो का भाई, ओर अनाथों का नाथ था , वह प्रजा का राजा नही, प्रजा का मित्र था, वह प्रजा का क्या नही था ?? महावीर होने पर भी वह परलोक से डरता था, ओर शूरवीर होने पर भी वह प्रचंडकर नही था :–
●वर्तमान में भारत की सेना – 25 लाख के आसपास है ( रिजर्व एक्टिव मिळाकर)
●चीन की एक्टिव सेना 25 लाख है , हो सकता है, इतनी ही रिजर्व सेना हो ।
●अमेरिका की कुल सेना 60 लाख के ऊपर है, रिजर्व हम जोड़ ले, तो भी 1 करोड़ के आसपास होगी ।
●रूस की कुल सेना 20 लाख के आसपास है ।
ओर विक्रमादित्य की सेना कितनी थी, अगर आप यह जानेंगे, तो आपको पता चलेगा, की कितना सुनहरे अतीत को हम छोड़ आये है :-
रघुवंश में विक्रम की सेना की संख्या जो बताई गई है :- उसमे विक्रमादित्य के पास 3 करोड़ की पैदल सेना, उसके 10 कमांडर , 90,000 हाथी, ओर पांच लाख की नोसेना थी । वर्तमान में भारत, चीन, रूस, अमेरिका की कुल सैनिक शक्ति भी विक्रमादित्य की सैनिक शक्ति से कम थी ।। इससे अनुमान लगाया जा सकता है, की वह कितना बड़ा ओर शक्तिशाली राजा था :-
विक्रमादित्य ने शकों के आक्रमण को कुचलकर रख दिया था , ओर केवल इतना ही नही, इन शकों के जो सहयोगी राजा थे, उन्हें भी मसलकर रख दिया , अपनी शक्ति की उन्होंने चहुँओर धाक जमा दी ।
विक्रमादित्य ने चारों ओर से शकों को घेरकर मारा, ओर इतना ही नही, रोम ( इटली से लेकर मिस्र ) तक के राजा को बांधकर उज्जैन ले आया ।
बौद्धों के प्रबल प्रचार और विदेशी सहयोग से अयोध्या जी पूरी तरह नष्ट हो गयी थी, भगवान राम के जन्मस्थान अयोध्या जी की पतितावस्था विक्रम से देखी न गयी, भगवान राम की नगरी की चहल पहल नष्ठ होकर बौद्धों की बस्ती में परिवर्तित हो गयी, स्वधर्म ओर आर्य सभ्यता का प्रचारक विक्रम इस बात को सहन नही कर सका, पतितपावनी सरयू के तट पर अयोध्या की यह दुर्दशा विक्रम से देखी नही गयी, सरयू की पवित्र नदी में स्नान करके उसने भीषण प्रतिज्ञा की, ” जिस तरह बौद्धों ने अयोध्या को उजाड़ा है, में उसी तरह श्रावस्ती का सर्वनाश ना कर डालूं, तब तक मैं चैन से नही बैठूंगा !! ओर यह कार्य उन्होंने शीघ्र ही किया ।।
अपनी पूरी सैनिक शक्ति के साथ विक्रम में अयोध्या के बौद्ध राजा पर धावा बोला, ओर उसे मारकर #श्रावस्ती का विध्वंस कर दिया । इतना ही नही, उन्होंने बौद्धों का मानमर्दन करके काशी के पंडितों को आश्वासन दिया, कि इन नास्तिकों से डरने की कोई जरूरत नही, वह अब सनातन वैदिक धर्म का प्रचार निडर होकर कर सकते है ।।
#श्रीविक्रम के बारे में वर्णन मिलता है, की वह इतना निडर ओर शक्तिशाली था, की शत्रुओ के केम्पो में भी अकेला घूम आता था ।
साभार
✍🏻अजित कुमार पुरी