उत्तराखंड सरकार द्वारा मेडिकल कालेज में अब डाक्टर नहीं कसाई बनाये जाएंगे
ये डॉक्टर लूटेगा नही तो क्या करेगा ?
राज्य के निजी उच्च शिक्षण संस्थानों में जहां झंड़ा 110-120 फुट ऊपर तक लहराया जा रहा है वहीं अब मेडिकल कॉलेज की फीस भी ऊंचाईयों तक पहुचने वाली है.सवाल ये उठता है कि ईमानदारी से वेतन पाने वाले मध्यम वर्ग के परिवार के लोग अब अपने बच्चे को डॉक्टर बनाने का सपना भी नहीं देख सकते हैं। ईमानदारी की तनख्वाह से भला वो अपना घर चलाये या फिर बच्चे को डॉक्टरी की पढ़ाई करायें। देश के भीतर किसी भी राज्य में निजी मेडिकल कॉलेजों को फीस निर्धारित करने का अधिकार किसी भी राज्य सरकार ने नहीं दिया है। मगर हमारी उत्तराखंड सरकार ने ये अधिकार निजी मेडिकल कॉलेजों को देकर जहां गरीब अभिभावकों को बैकफूट पर लाकर खड़ा कर दिया है वहीं अब निजी मेडिकल कॉलेजों की पौ-बारह होने वाली है । भले ही निजी मेडिकल कॉलेजों कई बार अपनी फीस बढ़ाने की मांग को लेकर चिकित्सा शिक्षा विभाग में फ़रियाद लगा चुके हैं लेकिन हर बार उनकी फ़रियाद को खारिज किया गया लेकिन इस बार उन्होंने उच्च शिक्षा मंत्री धन सिंह रावत के दर पर अपनी फ़रियाद पहुंचाई जहां से मंत्री ने भी आनन-फानन में इस प्रस्ताव को कैबिनेट में रख दिया। जिस पर त्रिवेंद्र रावत के सभी साथी सहमत भी हो गये और आखिरकार कैबिनेट ने इस पर मुहर भी लगा दी। अब हालात ये हो गए हैं कि जो मेडिकल कोर्स की जो फीस 7 से 10 लाख सालाना थी वो अब तमाम निजी कॉलेज प्रबंधन की मर्ज़ी से 20 से 25 लाख तक सालाना हो जाएगी। हालांकि निजी मेडिकल कॉलेजों के प्रवक्ताओं की दलील है कि उनका संस्थान हर प्रकार की आधुनिक सुविधाओं से लैस है । लिहाजा फीस उसी हिसाब से बढ़ाई जानी चाहिए। उनका जिस हिसाब से खर्चा आ रहा है , क्योंकि मेडिकल कॉलेज भी तो उनको चलाना है और उनके मेडिकल कॉलेज के स्टाफ की तनख्वाह कहां से निकलेगी। ख़ैर ये सभी निजी मेडिकल कॉलेजों के प्रवक्ताओं के अपने-अपने तर्क हैं।
पर हमारा सवाल ये है जब कोई एक करोड़ खर्च कर अपनी पढ़ाई करेगा और डॉक्टर बनेगा । तो क्या आपको लगता है कि वो सीधे पहाड़ जा कर अपनी सेवाएं देगा। भविष्य में एक करोड़ खर्च कर डॉक्टर बनेंगे। क्या आप उन्हे पहाड़ चढ़ा पाएंगे। हमें तो अभी नहीं लगता। क्योंकि आज आपके सरकारी डॉक्टर 10 अप्रैल से हिल अलाउंस न मिलने के कारण हड़ताल पर जाने का ऐलान कर चुके हैं। वैसे हमें इस बात को याद रखना पड़ेगा कि 15-15 लाख में भी श्रीनगर के मेडिकल कॉलेज ने डॉक्टर बनाए। पर उन में से कोई भी पहाड़ में अपनी सेवाएं देने को तैयार नहीं था। पहाड़ तो छोड़ो वो उत्तराखंड ही छोड़ कर चल दिए। अब जो अभिभावक अपने बच्चों को जैसे-तैसे कर्ज लेकर अपना घर-बार बेचकर अपने जेवरात गिरवी रखकर डॉक्टर बनाएंगे और खर्चा आएगा पूरे एक करोड़ का। वो डॉक्टर बनने के बाद सबसे पहले अपनी पढ़ाई में लगे पैसे निकालने का पूरा प्रयास करेगा। अगर कर्ज लेकर पढ़ा होगा तो कर्ज देने का काम करेगा। बस सरकार से ये सवाल पूछ रहे हैं। कि क्या वों डॉक्टर ईमानदारी से अपनी सेवाएं गरीब जनता को दे पाएगा। आपकी पहाड़ की उस जनता को दे पाएगा जिन्होंने डबल इज़न की सरकार बनाई हालांकि प्रदेश के मुखिया मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत का बयान सुनने में आया है कि प्रदेश के अंदर कई सरकारी मेडिकल कॉलेज है छात्र वहां भी दाखिला ले सकते हैं। लेकिन सवाल ये उठता है कि सीटों कितनी सुरक्षित होगी सुनने में आया है कि मुख्यमंत्री जी ने बोला है कि निजी मेडिकल कॉलेज के प्रबंधक 500 से 700 करोड़ रूपए खर्चा कर रहे हैं ऐसे में छात्रों और अभिभावकों को उनको नही रोकना चाहिए। मुख्यमंत्री ने ये भी कहा है कि प्रदेश में अगर इनवेस्टर को रोका जाएगा तो प्रदेश का अहित हो जाएगा। बहरहाल हम तो सिर्फ यही जानते है कि दून के प्राइवेट अस्पतालों की मनमानी आए दिन देखने को मिलती है जहां मरीज़ का इलाज के दौरान मौत होने के बाद लाश के लिए भी एड़ी-चोटी का ज़ोर लगाना पड़ता है। ऐसे में सवाल ये खड़ा होता है कि जब 1 करोड़ खर्च कर कोई डॉक्टर बनेगा तो वो लूटेगा नही तो क्या करेगा। उत्तराखंड संम्पूर्ण भारत क्रान्ति पार्टी इस आसाय के सुझाव का विरोध प्रकट करती है।