देहरादून। राज्य गठन के 19 वर्ष गुजरजाने के बाद भी राज्य के पहाड़ी क्षेत्रों से पलायन रोकना चुनौती बना हुआ है। अब तो खुद राज्यों में होने वाले चुनाव में पलायन को मुद्दा बनाने वाले नेता ही बड़ी संख्या में पहाड़ो से पलायन कर प्रदेश की राजधानी दून व अन्य जनपदों के निवासी होने लगे है।
उत्तराखंड का स्थापना दिवस है. 9 नवंबर 2000 को उत्तर प्रदेश से अलग होकर उत्तराखंड का गठन हुआ था। प्रदेश के 20वें स्थापना दिवस को लेकर काफी उत्साह देखा जा रहा है। स्थापना दिवस के अवसर पर राज्य के विकास को किस तरह से आगे बढ़ाया जाए इसका संकल्प लिया जा रहा है। साथ ही पर्वतीय क्षेत्रों से तेजी से हो रहे पलायन को रोकने के लिए भी सरकार हरसंभव प्रयास कर रही है। सवाल यह है कि पहाड़ी क्षेत्रों का जनमानस अपनी जरूरतों के लिए पलायन कर रहा है, तो वहीं राजनेता अपने सियासी भविष्य के लिए पलायन कर रहे हैं, जिसमें कई नाम शामिल हैं। उत्तराखंड राज्य के 20वें स्थापना दिवस के इस शुभ अवसर पर जहां उत्तराखंड राज्य के आंदोलन में शहादत देने वाले शहीद राज्य आंदोलनकारियों को नमन किया किया गया। वहीं प्रदेश के पहाड़ी इलाकों से तेजी से हुए पलायन पर चर्चा होना भी स्वाभाविक है। प्रदेश के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत भले ही रिवर्स माइग्रेशन को को बढ़ावा दे रहे हैं, बावजूद इसके सरकार के तमाम प्रयास पूरी तरह से सफल होते नजर नहीं आ रहे हैं।
पहाड़ी क्षेत्रों से मैदानी क्षेत्रों की ओर होने वाला पलायन इस बात की तस्दीक कर रहा है। यही नहीं पर्वतीय ग्रामीण क्षेत्रों के तमाम बेरोजगार युवा रोजगार के लिए, कई परिवार अच्छी शिक्षा और बेहतर स्वास्थ्य के लिए पलायन कर चुके हैं। नतीजा आज पहाड़ी क्षेत्रों के गांव खाली-खाली से नजर आने लगे हैं। यही नहीं जो नेता प्रत्येक चुनाव में पलायन को रोकने का मुद्दा बनाते हैं, उनमे से तमाम नेता खुद पलायन कर चुके है। पहाड़ के ग्रामीण बेहतर जिंदगी और तरक्की के लिए ही पलायन कर रहा है। मूलभूत सुविधाओं के अभाव के चलते लोग पलायन करने को मजबूर हैं। उत्तराखंड के नेता खुद ही पलायन कर गए हैं। यही नहीं पहाड़ की विधानसभा को छोड़कर मैदानी क्षेत्रों से चुनाव लड़ रहे हैं। वहीं राजनीतिक विशेषज्ञ जय सिंह रावत ने बताया कि राज्य सरकार ने पौड़ी में पलायन आयोग जरूर खोला है, ताकि पलायन होने की असल वजह का पता चल सके, लेकिन पलायन आयोग के अधिकारी खुद ही पलायन कर गए हैं। यही नहीं मुख्यमंत्री और तमाम मंत्री खुद पहाड़ों से पलायन कर गए हैं। नेताओं को पहाड़ों पर वोटर नहीं मिल रहे हैं। दूसरी ओर भाजपा के प्रदेश मीडिया प्रभारी देवेंद्र भसीन ने बताया कि पलायन उत्तराखंड की एक गम्भीर समस्या है। सीमांत क्षेत्र के करीब 700 गांव खाली हो गए हैं, लेकिन उत्तराखंड में भाजपा सरकार बनने के बाद पलायन को रोकने के लिए रिवर्स प्लान के लिए कार्य प्रारंभ किया गया है। हालांकि जो जनप्रतिनिधि चुने गए हैं वह अपने क्षेत्र से चुने गए हैं। लेकिन देहरादून एक महत्वपूर्ण नगर और राजधानी हैं, ऐसे में जनप्रतिनिधियों को यहां पर काम के सिलसिले में आना पड़ता है. इसलिए इन्होंने अपने आधार देहरादून में बनाए हुए हैं, लेकिन वो अपने क्षेत्र के विकास और समस्याओं को दूर करने के लिये कार्य कर रहे हैं। वहीं कांग्रेस प्रदेश उपाध्यक्ष सूर्यकांत धस्माना ने मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत पर हमला करते हुए बताया कि मुख्यमंत्री खुद अपनी पहाड़ की विधानसभा को छोड़कर मैदानी क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। मुख्यमंत्री की पत्नी जिनकी सर्विस पहाड़ में है उनकी पोस्टिंग मैदानी क्षेत्रों में कर दी है। ऐसे में पलायन रोकने और रिवर्स पलायन की बात वो नेता करे जो खुद पहाड़ में रहते हों. अगर रिवर्स पलायन करना है तो पहले नेता खुद रिवर्स पलायन करें।