देहरादून। फाल्गुन माह की पूर्णिमा को होली का त्योहार मनाया जाता है। इस बार होली दस मार्च मंगलवार को मनाई जाएगी। इससे पहले नौ मार्च को होलिका दहन किया जाएगा। ज्योतिषों के अनुसार, इस बार काफी सालों बाद होलिका दहन भद्रा से मुक्त रहेगा। उत्तराखंड विद्वत सभा के प्रवक्ता आचार्य विजेंद्र प्रसाद ममगाईं ने बताया कि होलिका दहन शाम 6 बजकर 12 मिनट के बाद होगा। नौ मार्च को दोपहर 1.30 बजे तक भद्रा रहेगी। 1.30 बजे के बाद होली पूजन शुरू हो जाएगा। शाम 6.12 बजे के बाद होलिका दहन किया जा सकता है। देर रात तक होलिका दहन का मुहूर्त रहेगा। होली सिर्फ रंगों का ही नहीं एकता, सद्भावना और प्रेम का प्रतीक भी माना जाता है। होलिका की अग्नि में गाय का गोबर, गाय का घी और अन्य हवन सामग्री का दहन करना शुभ होता है। होली के दौरान शराब और मांस का सेवन नहीं करना चाहिए। होली बुराईयों का नाश करने वाला त्योहार है। उसकी भस्म उसी सौभाग्य का प्रतीक है। इसलिए उसे शुभ माना जाता है। मान्यता है कि होली की भस्म में देवताओं की कृपा होती है। इस भस्म को माथे पर लगाने से भाग्य अच्छा होता है और बुद्धि बढ़ती है। होलिका जलने के बाद वहां की राख को घर में लाकर कोनों में रखना चाहिए। इससे सकारात्मक माहौल बना रहता है। सालों पहले हिरण्यकश्यप नाम का एक अत्याचारी राजा था। उसने अपनी प्रजा को आदेश दिया कि ईश्वर की आराधना न करके उसकी पूजा की जाए। वहीं उसका पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का भक्त था। हिरण्यकश्यप ने अपने बेटे को सबक सिखाने के लिए अग्नि में जलाकर भस्म करने की योजना बनाई।इसके लिए उसने अपनी अग्नि में न जलने का वरदान प्राप्त कर चुकी बहन होलिका की गोद में प्रह्लाद को बैठाकर अग्नि के हवाले कर दिया। भगवान विष्णु की कृपा से इसमें होलिका भस्म हो गई और भक्त प्रह्लाद की रक्षा हुई। तभी से हम बुराइयों और पाप के अंत के रूप में होलिका का दहन करते हैं।