देहरादून। देवभूमि उत्तराखण्ड में रेलवे स्टेशनों के नाम अब हिन्दी और उर्दू क्ी बजाये हिन्दी और संस्कृत में लिखे जाने को लेकर राजनीतिक संग्राम शुरू हो गया है। कांग्रेस ने इसका विरोध करते हुए इसे भाजपा की छोटी सोच बताया है वहीं भाजपा का कहना है कि कांग्रेस के पास कोई काम नहीं है इसलिए छोटी छोटी बातों को तूल देती रहती है।
इस मुद्दे पर कांग्रेकस प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह का कहना है कि वह इसका विरोध नहीं कर रहे है कि रेलवे स्टेशन का नाम संस्कृत में क्यों लिखा जा रहा है। वह इसका स्वागत करते है उनका विरोध है कि जब उर्दू में भी लिखा जाता रहा है तो इसे मिटाया क्यों जा रहा है? यह भाजपा की संकीर्ण सोच है एक तरफ वह सबके साथ की बात करते है। उन्होने कहा कि जब देश के हिन्दु मुस्लिम सिख ईसाई सब बराबर है तो फिर यह भेदभाव क्यों? भाजपा संस्कृत में भी नाम लिखवा सकती है क्या फर्क पड़ता है कि दो की बजाय तीन भाषाओं में नाम लिखे जाये।
उनका कहना है कि भाजपा बंटवारे की राजनीति करती है, लड़ाने की राजनीति करती है। इस तरह के काम भाजपा द्वारा इसलिए भी किये जाते है जिससे देश की ज्वलंत समस्याओं से लोगो का ध्यान हटाया जा सके। अब कोई भाजपा नेता मंहगाई, बेरोजगारी व महिला सुरक्षा और देश की अर्थव्यवस्था पर बात करने को तैयार नहीं है। लोग भी इन मुद्दों को भूलकर हिन्दी, उर्दू और संस्कृत में उलझे रहे यही चाहती है भाजपा।
उधर भाजपा नेताओं का कहना है कि कांग्रेस खाली है उसके पास कोई काम नहीं है इसलिए हर बात का विरोध करना ही उसका काम है। रेल राज्य मंत्री सुरेश अंगड़ी का कहना है कि राज्य सरकार ने जो रिकमेन्ड किया है हमने वैसा ही कर दिया है। कर्नाटक में कन्नड और पंजाब में तो पंजाबी में नाम लिखे जाते है उत्तराखण्ड अगर देवभूमि है तो फिर वहंा संस्कृत पर आपत्ति क्यों। उनका कहना है कि संस्कृत सभी भाषाओं की जननी है। राज्य सरकार का सुझाव था कि रेलवे स्टेशनों का नाम हिन्दी उर्दू की बजाय हिन्दी और संस्कृत में लिखा जाये। इसमें विवाद किस बात का, भले ही भाजपा को कोई विवाद नजर न आ रहा हो लेकिन आने वाले समय में इस विवाद को तूल पकड़ना तय है।