देहरादून : जम्मू-कश्मीर में शहीद राकेश चंद्र रतूड़ी की अंतिम यात्रा में भारी जनसैलाब उमड़ पड़ा। इससे पहले शहीद के पार्थिव शरीर को श्रद्धांजलि दी गई। वहीं, परिजनों का रो-रोकर बुरा हाल था।
गौरतलब है कि जम्मू कश्मीर के सुंंजवां में तीन दिन पहले आतंकियों ने हमला किया था। इस दौरान आतंकियों से लोहा लेते हुए हवलदार राकेश रतूड़ी(44 वर्ष) गंभीर रूप से घायल हो गए। जिसके बाद उन्हें उपचार के लिए सेना के अस्पताल ले जाया गया, जहां उन्होंने अंतिम सांस ली। जवान राकेश रतूड़ी मूलरूप से पौड़ी गढ़वाल के पाबौ ब्लॉक की बाली कंडारस्यूं पट्टी स्थित सांकर सैंण गांव के रहने वाले थे। सालभर पहले ही उन्होंने प्रेमनगर के बड़ोवाला में घर बनाया था।
मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत, हरिद्वार सांसद डा रमेश पोखरियाल निशंक, उच्च शिक्षा राज्य मंत्री डा धन सिंह रावत, मसूरी विधायक गणेश जोशी, कैंट विधायक विनोद चमोली, सहसपुर विधायक सहदेव पुंडीर, कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह, उपाध्याक्ष सूर्यकांत धस्माना, भाजपा महानगर अध्यक्ष विनय गोयल, सुनील उनियाल गामा, जिलाधिकारी एसए मुरुगेशन, एसएसपी निवेदिता कुकरेती समेत सब एरिया के अधिकारियों ने शहीद को श्रद्धांजलि दी। इसके बाद शव यात्रा हरिद्वार के लिए निकाली गई। दोपहर में हरिद्वार के खड़खड़ी घाट में शहीद का अंतिम संस्कार किया गया।
पीछे छोड़ गए भरापूरा परिवार
शहीद राकेश चंद्र रतूड़ी अपने पीछे पत्नी नंदा देवी और दो बच्चों नितिन और किरण को छोड़ गए हैं। उनके बड़े भाई रेवती नंदन ने बताया कि वह साल 1996 में फौज में भर्ती हुए थे। उनकी शिक्षा राजकीय इंटर कॉलेज सांकरसैंण में हुई। वह अभी तीन जनवरी को छुट्टी पर आए थे और 9 जनवरी को ड्यूटी पर लौट गए।
परिवार में टूटा दुखों का पहाड़
चाचा शेखरानंद रतूड़ी ने बताया कि पिछले तीन दिन से राकेश का फोन नहीं उठ रहा था। इस वजह से परिवार चिंतित था। सोमवार रात उनकी शहादत की खबर मिली तो घर वालों पर एकाएक दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। उनकी पत्नी नंदा रो-रोकर अचेत हो गईं। 17 वर्षीय बेटा नितिन व 19 वर्षीय बेटी किरण नम आंखों से मां को ढांढस बंधा रहे थे। मां के सामने किसी तरह अपने आंसू रोके रखे। लेकिन जैसे कुछ पल उनसे अलग होते फफक कर रो पड़ते। मंगलवार देरशाम शहीद का पार्थिव शरीर दून पहुंच गया था।
पिता की ही तरह सेना में जाने की ख्वाहिश
शहीद का बेटा नितिन एसजीआरआर, पटेलनगर में ग्यारहवीं का छात्र है। बेटी किरण पत्राचार से बीए कर रही है। पिता की शहादत की खबर ने उन्हें झकझोर दिया है, लेकिन जज्बा पिता की ही तरह मजबूत है। बेटा नितिन कहता है कि पिता की तरह वह भी सेना में जाकर देश की सेवा करना चाहते हैं। आगे चलकर वह भी दादा और पिता के पदचिह्नों पर चलेंगे।
एक साल बाद होना था रिटायर
शहीद राकेश चंद्र रतूड़ी की रेजीमेंट लद्दाख तैनात हो गई थी। रतूड़ी उन चंद लोगों में से थे, जिन्हें रिलीव नहीं किया गया था। वर्ष 2013 तक वह एनएसजी में रहे। इसके बाद राष्ट्रीय राइफल का हिस्सा बने। सेना में एक साल की सेवा और करने के बाद उन्हें 2019 सेवानिवृत होना था।
पाकिस्तान से हो आर-पार की जंग
राकेश की शहादत की खबर फैलते ही पूरा क्षेत्र शोक में डूबा है। साथ ही लोगों में पाकिस्तान के खिलाफ गुस्सा भी है। शहीद के भाई रेवती नंदन रतूड़ी कहते हैं कि पाकिस्तान से अब आर-पार की लड़ाई होनी चाहिए। एक के बाद एक हो रही शहादतें अब बंद होनी चाहिए।
सालभर पहले ही दून में बनाया घर
शहीद का परिवार मूलरूप से पौड़ी गढ़वाल के पाबौ ब्लॉक की पïट्टी बाली कंडारस्यूं स्थित ग्राम सांकरसैंण का रहने वाला है। तकरीबन एक साल पहले ही शहीद राकेश ने दून के बड़ोवाला में कृष्णा विहार घर बनाया था। उनके पिता महेशानंद रतूड़ी भी नौसेना से रिटायर थे। करीब दो साल पहले लंबी बीमारी के चलते उनका निधन हो गया।
सीएम ने जताया शोक
मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत ने शहीद राकेश चंद्र रतूड़ी की शहादत पर गहरा शोक व्यक्त किया है। दिवंगत आत्मा की शांति व दुख की इस घड़ी में परिजनों को धैर्य प्रदान करने की कामना ईश्वर से की। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार शहीद के परिवार की हर संभव मदद करेगी। साथ ही वह पाकिस्तान पर भी बरसे। कहा कि वह समझौते का उलंघन कर रहा है।
कुछ दिन बाद आना था छुट्टी
शहीद राकेश 22 फरवरी को भतीजी की शादी में शामिल होने के लिए दून आने वाले थे। परिवार में शादी की तैयारियां जोरों पर थी। राकेश हर दिन फोन करके शादी के लिए हो रही खरीदारी की जानकारी लेते थे। नाते-रिश्तेदार बताते हैं कि वह बेहद मिलनसार और खुशमिजाज थे। अलग-अलग जगहों पर पोस्टिंग होने के बाद भी उन्होंने गांव और नाते-रिश्तेदारों से नजदीकियां बनाए रखीं।