देहरादून,सम्मानित साथियों को हर्ष होगा कि पोर्टल के टेंडर उत्तराखंड वेब पोर्टल एसोसिएशन के अध्यक्ष द्वारा लिखे गये निर्णय पर हुए है मंजूर अब अक्ल से काम करने में मनुष्य का बोध होता है बधाई स्वीकार करें।
हाँ पर हाँ गुरुप बाजी से बुद्धि मान नहीं होता है। जिन्होंने टेंडर भरे उन्हो सब क्यों नहीं लिया गया है यदि किसी ने कराये हैं। अब उनके टेंडर मजूर नहीं हुये हैं तो उनकी हम क्या मदद करसकते है। यह ?? नहीं है।पत्रकार सब कुछ जानकारी ई o डॉक्टर, जज,वकील कार्यपालिका ,विधायिका विदेश नीति सभी का नॉलिज रखने के लिए पढ़ना जरूरी है।गुरूप बना कर भीड़ इकट्ठी हो सकती है ।काम कराने का तो तरीका कागज में नियम के ज्ञान से बनाया जाता है।इसका प्रयास हम सभी को करने चाहिए।आपका साथी टेंडर डालने पर व बाद में भी नहीं रहा, खुलने पर भी नही रहा ।उसके बाद में भी नही रहा। जीतमणि पैन्यूली भीड़ का हिस्सा नहीं है । सबको अपने लिखे हुए निर्णय को स्वीकार करने का किसा वर्ष 1973 से चलाते आ रहा है। किसी को नेतृत्व करना पर हमें परहेज नहीं है ।पर समय बर्बाद करने से कई वर्ष पीछे हम चले जाते हैं यह दुखव्यक्त करते हुए कहना पड़ रहा है कि आदमी कीशक्ति का समाज के लिए उपयोग करने में लाभकारी है। 2साल से ऊपर हमारे साथीयों की कलम घिसने के सोक से हमें समय बर्बाद करना पड़ रहा है। आप कलम घिसने से पहले दो चार लोगों से राय लिया तो करें । 3.6 लाख के करीब नुकसान उठाना पड़ा इसकी भरपाई कोन संघठन करायेगा और करने जारहा है। है किसी मे मादा तो आगे आये।नहीं तो हाँ कहने में बुराई क्या है। भगवान का ध्यान कर सोचें।अपनी चलाने से कितने घरों के चूल्हे चलाने में में दिक्कत होती है सोचा किसी ने कभी दूसरे के बारे में।मूर्खो के नेता हम बनने लगते हैं बुद्धि मान हमें मूर्ख में गिनाने लगते हैं। मेरा लिखें पर मनन करने से उत्तराखंड के बुद्धिजीवियों में गिने हम गिने जाएंगे बाकी ।प्रयास करने पट निर्भर करेगा।
उत्तराखंड का पत्रकार प्रेम और मोह में जिसदिन अंतर समझने लगे गा ।उस दिन उसे मानवीय कल्याण करते हुए आत्म सम्मान का बोध होगा । जय बद्रीविशाल।आपका सेवक जीतमणि पैन्यूली।