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मकरसंक्रांति के पावन पर्व में माँ नर्वदा में स्नान करते हुए पूज्य शंकराचार्य स्वामी श्री स्वरूपानंद सरस्वती महाराज जी 

Pahado Ki Goonj

त्वदीय पाद् पंकजम् नमामि देवी नर्मदे

भगवान भास्कर

जबलपुर मध्यप्रदेश शंकर घाट,   गुरुवार  ( श्री सूर्य नारायण) के दक्षिणायन से उत्तरायण होने का संधिकाल  मकरसंक्रांति के पावन पुनीत पर्व पर पूज्य पाद् ज्योतिष्पीठाधीश्वर एवं द्वारकाशारदापीठाधीश्वर श्रीमद् जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी श्री स्वरूपानंद सरस्वती जी महाराज द्वारा पतित पावनी माँ नर्मदा जी में भगवान आद्य गुरु शंकराचार्य जी की दीक्षा- स्थली श्री शंकराचार्य शंकर घाट पर माँ नर्मदा जी मे स्नान ,पूजन ,दण्ड तर्पण किया ।

गुरु जी के सानिध्य में अनेकों साधुओं, एवं गुरु जी माँ नर्मदा जी के  भक्तों, ने इस पर्व पर स्नान कर पुण्य लाभ अर्जित किया

🌴श्रीगोविन्दनाथ वन🌴🌷दण्ड दीक्षा-स्थली🌷🌞 श्री सांकल घाट

नर्वदा की महिमा

यहां पानी भी कहता है हर-हर महादेव

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अमरकंटक से भरूच तक नर्मदा के हर घाट पर विराजमान हैं शिवशंकर, महादेव की पुत्री कहलाती हैं नर्मदा

नर्मदा के जिलहरीघाट स्थित कांच मंदिर में विरामान भगवान शिव की प्रतिमा।
जबलपुर। धरती पर एक ऐसी नदी है जिसकी लहरें भी हर-हर महादेव की ध्वनि पर लहराती हैं। आप सही समझे बात हो रही है मां नर्मदा की..। शिव पुत्री कहलाने वाली नर्मदा के हर कंकड़ को शंकर की उपाधि प्राप्त है। तभी तो अमरकंटक से लेकर भरूच तक इनके हर घाट पर महादेव विराजमान हैं। देश के सबसे प्रसिद्ध व प्राचीन शिवालय नर्मदा के किनारे ही स्थित हैं। शास्त्रों के अनुसार नर्मदा एक मात्र ऐसी नदी है कि जिसके हर पत्थर को शिवलिंग यानी नर्मदेश्वर का दर्जा प्राप्त है। पुराणों में नर्मदेश्वर को स्वयं सिद्ध व स्वप्रतिष्ठित माना गया है। इनकी प्राण प्रतिष्ठा की आवश्यकता ही नहीं पड़ती..। माना जाता है कि हर-हर महादेव के उच्चारण के साथ नर्मदा में स्नान करने से प्रारब्ध के कई पाप नष्ट हो जाते हैं।

नर्मदा

यहीं हैं 45 प्रतिशत प्राचीन शिवालय
वैसे तो नर्मदा के हर घाट पर कई शिव मंदिर बने हुए हैं। लोग अंजुली में जल लेकर इन शिवपिंडों पर चढ़ाते व धन्य होते हैं। लेकिन शिव मंदिरों की गणना करने वाले जानकार बताते हैं कि अमरकंटक से खंबात की खाड़ी तक लगभग 1310 किमी लंबी रेवा नदी के तट पर हर दो किलो मीटर पर 1 प्रसिद्ध शिव मंदिर स्थित है। यह आंकड़ा प्रदेश में शिव के कुल मंदिरों की संख्या का लगभग 25 प्रतिशत बताया जाता है। वहीं शिव के अति प्राचीन मंदिरों की बात करें तो यह आंकड़ा 45 प्रतिशत को भी पार कर जाता है।

 

शिवमय है हर घाट
रेवा तट पर बसे सभी शहरों में जबलपुर का महत्वपूर्ण स्थान है। नर्मदा यहां न सिर्फ संगमरमरी वादियों से होकर निकलती हैं, बल्कि यहां स्थित प्राचीन शिव मंदिर नर्मदा के वैभव को और भी बढ़ा देते हैं। जबलपुर दर्शन से जुड़े संजय वर्मा बताते हैं कि जबलपुर में नर्मदा किनारे लगभग 9 से ज्यादा घाट हैं। इसमें काली घाट, भटौली घाट, जिलहरी घाट, सिद्धघाट, ग्वारीघाट, खारीघाट, तिलवारा घाट, भेड़ाघाट, सरस्वती घाट समेत लम्हेटा घाट प्रमुख हैं। इन सभी घाटों पर विभिन्न नामों के साथ शिव विराजमान हैं।

अद्भुत है महिमा
ज्योतिषाचार्य पं. जनार्दन शुक्ल का कहना है कि पुराणों के अनुसार भगवान शिव व मां नर्मदा का पिता-पुत्री का संबंध है। यही कारण है कि शिव को नर्मदेश्वर कहते हैं और अमरकंटक से लेकर जहां तक नर्मदा का बहाव है, वहां तक भगवान शिव की महिमा भी विद्यमान है। रेवा तटों पर विराजमान शिव की महिमा अद्भुत है। नर्मदा के दर्शन मात्र से कष्टों का क्षय हो जाता है।

जबलपुर के में नर्मदा तट पर ये हैं कुछ खास शिवालय
– लम्हेटा के समीप त्रिशुल भेद स्थित त्रिशुल घाट पर बेहद प्राचीन शिव लिंग है। मान्यता है कि यहां स्वयं भगवान शिव ने अपना त्रिशूल स्थापित किया था।
– गुप्तेश्वर स्थित स्वयं-भू सिद्धपीठ गुप्तेश्वर महादेव मंदिर। मान्यता है कि इस शिव लिंग की स्थापना वनवास के दौरान भगवान श्रीराम ने की थी।
– तिलवाराघाट स्थित तिलवांडेश्वर मंदिर भीर अति प्राचीन है। माना जाता है इस स्थान पर सप्त ऋषियों ने शिव पूजा की थी।
– जिलहरीघाट स्थित कांच मंदिर जो करीब 300 साल पुराना है। यहां कांच के रिफ्लेक्शन से कई मूर्तियां दिखाई देती हैं
– जिलहरीघाट में ही लुखेश्वर शिव मंदिर है जो साढे. 500 साल से भी अधिक प्राचीन है। यहां शिव पिंड में नाग आलिंगन बद्ध है।
– भेड़ाघाट स्थित पचमठा मंदिर। 700 वर्षों से भी अधिक प्राचीन इस मंदिर में शिव व उनके परिवार से जुड़े पांच मंदिरों का समूह स्थित है।
– भेड़ाघाट स्थित चौसठ योगिनी मंदिर। यह करीब 1100 वर्ष प्राचीन है। यह विश्व की एक मात्र शिव प्रतिमा है जहां शिवजी पार्वती के साथ नंदी पर सवार दिख रहे हैं।
– लम्हेटाघाट स्थित पिपलेश्वर मंदिर। यह मंदिर 600 साल से भी अधिक प्राचीन है। यहां शिव के साथ गणपति का भी अद्भुत स्वरूप देखने को मिलता है।
– लम्हेटाघाट स्थित कुंभकेश्वर मंदिर। यह मंदिर हजारों वर्ष प्राचीन है। मान्यता है कि कुंभज ऋषि ने यहां पर पूजन किया था।
– गोपालपुर स्थित पशुपतिनाथ मंदिर। यह मंदिर भी चार सौ साल से अधिक पुराना है। मान्यता है कि गोंड राजाओं ने इसे स्थापित कराया था।

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